Badami cave temple – बादामी की प्रसिद्ध गुफाये भारत की सबसे पुराणी गुफा में गिनी जाती है। इन गुफाओ में हमें हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्मं का मिश्रण देखने को मिलता है। इस बादामी गुफा के भारत के कर्नाटक राज्य के बागलकोट जिले में बादामी नाम के शहर में ये गुफाएं हैं।
चालुक्य वंश के वास्तुशिल्प का प्रतिक बादामी गुफा – Badami cave temple in Hindi
बादामी में जो चार गुफाये बनवाई गयी थी उन सभी को 6 वी शताब्दी के बाद ही बनवाया था। इस गुफा को भारत की सबसे पुराणी गुफा माना जाता है।
बादामी की इन मशहूर गुफाओ के निर्माण का सारा श्रेय चालुक्य वंश को जाता है। पुराणी गुफाये होने के बाद भी सभी गुफाये आज भी अच्छी हालात में है। यहाँ की सभी गुफाये नगारा और द्रविड़ शैली में बनवाई गयी थी। इस शैली में बनाने के कारण यहा की सभी गुफाये बहुत ही सुन्दर दिखती है।
प्राचीन समय में बादामी को “वातापी बादामी” नाम से बुलाया जाता था और उस वक्त बादामी चालुक्य वंश की 6 वी शताब्दी और 8 वी शताब्दी के दौरान राजधानी भी हुआ करती थी। बादामी एक मानव निर्मित झील के किनारे स्थित है और इसके उत्तर और दक्षिण दिशा में बाद में कुछ किले भी बनवाये गए थे।
यहापर जो गुफाये वो चार तरह की गुफाये है और वो सभी एक ही रास्ते में लगते है। यहाँ की जो पहली गुफा है उसमे हिन्दू धर्म के देवी देवता की बहुत सारी मुर्तिया है मगर इस गुफा में ध्यान आकर्षित करनेवाली भगवान शिव की तांडव करती हुई नटराज की मूर्ति है।
दूसरी गुफा आकार और दिखने में बिलकुल पहली गुफा की तरह ही है और इस गुफा में भगवान विष्णु की सबसे बड़ी त्रिविक्रमा अवतार की मूर्ति है।
यहाँ की सबसे बड़ी गुफा तीसरे नंबर की गुफा है। इस गुफा में भगवान विष्णु से जुडी कई सारी कहानिया है। इस गुफा की एक ओर खास बात यह है की इस गुफा में बड़ी ही सुन्दरता से नक्काशी का काम किया है।
यहाँ की जो चौथी गुफा है वो जैन धर्मं के देवी देवता को समर्पित है।
2015 में यहाँ से केवल 500 मीटर की दुरी पर एक ओर गुफा खोजी गयी उस गुफा में लगभग 27 हिन्दू देवी देवता की मुर्तिया मिली है।
बादामी गुफा की वास्तुकला – Architecture of Badami Cave
पहाड़ी पर स्थित बादामी की सभी गुफाये बादामी पत्थर से बनवाई गयी थी। इन चारो गुफाओ में प्रवेश करने के लिए एक बहुत बड़ा सा मंडप बनवाया है और इसे बनाने के लिए पत्थारो का इस्तेमाल किया गया था। इस मंडप से आगे जाने के बाद महा मंडप आता है और सबसे आखिरी में एक छोटासा मंदिर लगता है।
इस बादामी गुफा को यूनेस्को की विश्व विरासत में भी शामिल किया गया और उसे ‘मंदिर वास्तुकला का विकास- ऐहोले बादामी पत्तदकल’ नाम भी दिया था।
6 वी और 7 वी शताब्दी में बनी पहली और दूसरी गुफा को दक्खन की शैली में बनवाया गया था और तीसरी गुफा को उत्तर की नगारा शैली और दक्षिण की द्रविड़ शैली में बनवाया गया था।
तीसरी गुफा में वेसारा शैली में बनवाई गयी कई सारी मुर्तिया भी है। कर्नाटक में इस शैली में बनी कई सारी मुर्तिया और पेंटिंग भी देखने को मिलती है।
पुराने समय के जितने भी राजा हुए उन्होंने खुद का नाम इतिहास में शामिल दिया था। मगर उन्होंने अपने नाम के साथ कई सारी ऐसे चीजे बनाई जिनके कारण उनके वंश की संस्कृति के दर्शन भी होते है साथ ही कुछ ऐसे स्मारक बनवाये जाते है जिनके कारण उनके वंश की वो स्मारक पहचान बन जाती है।
इतिहास में किसी भी वंश ने शासन किया हो उन सभी ने अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने का काम किया ही है। उसी तरह से चालुक्य वंश के लोगो ने भी विभिन्न तरह की मंदिर, गुफाये बनवाये थे और समय के साथ साथ उनकी यही गुफाये, मंदिरे चालुक्य वंश की पहचान बन चुकी है।
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