बच्चो की कविता – Baccho ki Kavita

Baccho ki Kavita

बचपन जीवन का सबसे खुबसुरत समय होता हैं, उस समय हम मनमर्जी और दिल खोलकर जीते हैं। ना किसी बात का टेंशन ना किसी बात की चिंता। बचपन हम सभी को प्यारा होता हैं। बचपन में अगर हमें कोई पूछें की हमें बड़ा होकर क्या बनना हैं तो हम यही जवाब देते थे की हमें डॉक्टर, इंजीनियर बनना हैं लेकिन बड़ा होकर कोई पूछे तो हम सिर्फ यही कहेंगे की हमें फिर से बच्चा बनना हैं। यहाँ आज हम बच्चो की कविता – Baccho ki Kavita को पढेंगे जो आपको आपके बचपन की फिर से याद दिलाएंगे।

Baccho ki Kavita
Baccho ki Kavita

बच्चो की कविता – Baccho ki Kavita

Baccho ki Kavita

भालू दादा

पहन लिया क्या नया लबादा,
काले-काले भालू दादा?

ठुमक-ठुमककर पाँव बढ़ाते
खूब झटककर लंबे बाल,
दिखा रहे हैं कितनी बढ़िया
लाला झुमरूमल की चाल।
फिल्मी अभिनय जब दिखलाते,
गर्दन तब मटकाते ज्यादा!

कभी-कभी टीचर बन जाते
खूब बड़ा-सा लेकर डंडा,
हँसकर नमस्कार कर दो तो
सारा गुस्सा होता ठंडा।
घेरे खड़े अभी तक बच्चे-
फिर आओगे, पक्का वादा?

~ प्रकाश मनु

Bachon ki Poem

अच्छे बच्चे…

हम बच्चे अच्छे स्कूल के,
पक्के अपने हैं असूल के।

हिल-मिलकर सब संग में पढ़ते हैं,
दूरी रखते क्रूर से।

कदम बढ़ाकर पथ पे चलेंगे,
बुरे कर्म से सदा डरेंगे।
विजय पताका हम गाड़ेंगे,
लोग देखेंगे दूर से।

कटु वचन न हम बोलेंगे,
सच की तराजू पर तौलेंगे।
थाल सजा के करेंगे पूजा,
जलेंगे दीप कपूर के।

~ शम्भू नाथ

Bacho Wali Poem

जोकर

सबका मन बहलाता जोकर,
हँसता और हँसाता जोकर।

झूम-झामकर यह आता है,
नए करिश्मे दिखलाता है।

उछल बाँस पर चढ़ जाता है,
हाथ छोड़कर लहराता है।

सिर के बल यह चल सकता है,
आग हाथ पर मल सकता है।

जलती हुई आग की लपटें,
उछल, पार करता यह झट से।

अगले पल फिर हल्ला-गुल्ला,
गाल फुलाता ज्यों रसगुल्ला।

ढीला-ढाला खूब पजामा,
लगता है यह सचमुच गामा।

फुलझड़ियों-सी हैं मुसकानें,
फूलों-जैसे इसके गाने।

हरदम हँसता यह मस्ताना,
खुशियों का है भरा खजाना!

~ प्रकाश मनु

Bachpan par Kavita

पापा

मोबाइल में ज्ञान इस तरह,
का कुछ पापा भर दो।
हर आदेश हमारा माने,
विवश इस तरह कर दो।
हम मांगे रसगुल्ले उससे,
दौड़ लगाकर लाए।
अपने हाथों से हम लोगों,
के मुंह तक पहुंचाए।

अरे-अरे क्या कहते! बोले,
पापा बात निराली।
क्यों करते हो बात नकारों,
और निकम्मो वाली।

काम हाथ से करने वाले,
ही मंजिल पाते हैं।
जो निर्भर होते औरों पर,
राह वे भटक जाते हैं।

~ प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Bachpan Kavita

पापा, दीदी बहुत बुरी है!

पापा, दीदी बहुत बुरी है!
बिना बात करती है कुट्टी
सीधे मुँह न करती बात,
मैं कहता हूँ-खेलो मिलकर
मगर चला देती यह लात।
हरदम झल्लाया करती है,
हरदम इसकी नाक चढ़ी है!

मेरे सभी खिलौने लेकर
जिस-तिस को दिखलाया करती,
माँगूँ तो कह देती ना-ना,
मुझ पर रोब जताया करती।
सब दिन कहती-पढ़ो-पढ़ो, बस
आफत मेरे गले पड़ी है!

कभी न अपनी चिज्जी देती
उलटे मेरी हँसी उड़ाती,
कह देती है सब सखियों से
बुद्धू कहकर मुझे चिढ़ाती।
बातें करती मीठी-मीठी
पर भीतर से तेज छुरी है!

~ प्रकाश मनु

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