मुगल शासकों ने लगभग 300 सालों तक भारत में अपनी हुकूमत चलाई इस दौरान मुगल साम्राज्य के कई महान और परमवीर योद्धा भी आए जिनका वर्णन भारतीय इतिहास में देखने को मिलता है लेकिन मुगल वंश के बाबर, न सिर्फ एक महान योद्धा थे बल्कि सबसे महान शासक भी थे जिन्होनें मुगल राजवंश की नींव रखी थी।
मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के इतिहास की जानकारी | Babar History in Hindi
नाम (Name) | जहीर-उद-दीन मुहम्मद बाबर |
जन्म (Birthday) | 14 फरवरी 1483 (अन्दिझान, उज्बेकिस्तान) |
माता (Mother Name) | कुतलुग निगार ख़ानुम |
पिता (Father Name) | उमर शेख मिर्जा 2, फरगाना के शेख |
पत्नियाँ (Wife Name) |
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पुत्र/पुत्रियां (Children Name) |
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भाई (Brother Name) | चंगेज़ खान |
मृत्यु (Death) | 26 दिसम्बर 1530 (आगरा, मुगल साम्राज्य) |
बाबर भारत के पहले मुगल सम्राट थे जिनका पूरा नाम जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर था। मुगल साम्राज्य के सम्राट बाबर फरगाना घाटी के शासक उमर शेख मिर्जा के सबसे बड़े बेटे थे। पिता की मौत के बाद महज 11 साल की उम्र में ही राज्य की जिम्मेदारी सौंप दी गई उन्हें कम उम्र में ही सिंहासन पर बिठा दिया गया इसकी वजह से उन्हें अपने रिश्तेदारों के विरोध का भी सामना करना पड़ा था।
छोटी सी उम्र से ही बहादुर योद्धा ने अपने क्षेत्रों का विस्तार करने के लिए सैन्य अभियानों की शुरुआत कर दी थी। हालांकि अपने शुरुआती अभियानों के दौरान इस वीर योद्धा ने फरगाना शहर में अपना नियंत्रण खो दिया था।
लेकिन उसने इस शुरुआती झटके को सत्ता की तलाश में नाकाम रहने दिया और सफदीक शासक इस्माइल प्रथम के साथ साझेदारी की और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों पर जीत हासिल की। आखिरकार उन्होनें भारतीय उपमहाद्धीप पर अपनी नजरें गढ़ाई और इब्राहिम लोदी द्धारा शासित दिल्ली सल्लतनत पर हमला कर दिया और इब्राहिम लोदी को पानीपत की पहली लड़ाई में हरा दिया।
इसी के साथ भारत में मुगल साम्राज्य की शुरुआत की गई। इसके बाद उन्हें जल्द ही मेवार के राणा सांगा के विरोध का सामना करना पड़ा, जिन्होनें बाबर को विदेशियों के रुप में माना और उन्हें चुनौती भी दी। बाबर ने खानवा की लड़ाई मे सफलतापूर्वक राणा को हराया। एक महत्वकांक्षी कवि होने के अलावा वह एक प्रतिभाशाली कवि और प्रकृति के प्रेमी थे।
बचपन और शुरुआती जीवन –
मुगल सम्राट बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 को आन्दीझान शहर के फरगना घाटी में जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर के रुप में हुआ था। बाबर के पिता का नाम उमरेशख मिर्जा था जो फरगना की जागीर का मालिक था और उसकी मां का नाम कुतुलनिगार खां था।
बाबर अपनी पिता की तरफ से तैमूर के वंशज और अपनी मां की तरफ से चंगेज खान के वंशज थे। इस तरह जीत हासिल करना और कुशल प्रशासन बाबर के खून में ही था।
मुगल बादशाह बाबर मंगोल मूल के बरला जनजाति से आए थे, लेकिन जनजाति के अलग-अलग सदस्य भाषा, रीति-रिवाज और लंब समय से तुर्की क्षेत्रों में रहने की वजह से खुद को तुर्की मानते थे। इसलिए मुगल सम्राट ने तुर्कों से बहुत समर्थन हासिल किया और जिस साम्राज्य की उन्होनें स्थापना की थी वह तुर्की थी।
आपक बता दें कि बाबर का परिवार चगताई कबीले के सदस्य बन गया था उन्हें इस नाम से ही पुकारा जाता था। वो पितृ पक्ष की ओर से तैमूर के पांचवे वंशज और मातृ पक्ष की तरफ से चंगेज खां के 13वें वंशज थे।
बाबर ने जिस नए साम्राज्य की स्थापना की। वह तुर्की नस्ल का “चगताई वंश” का था। जिसका नाम चंगेज खां के दूसरे बेटे के नाम पर पड़ा था। बाबर की मातृ भाषा चगताई थी जिसमें वे निपुण थे बाबर ने बाबरनामा के नाम से चगताई भाषा में अपनी जीवनी भी लिखी थी लेकिन फारसी उस समय की आम बोलचाल की भाषा थी।
बाबर के पिता, उमर शेख मिर्जा ने फरगाना की घाटी पर शासन किया था। क्योंकि उस समय तुर्कों के बीच उत्तराधिकार का कोई निश्चत कानून नहीं था।
वहीं बाबर जब महज 11 साल के ही थे तब उनके पिता उमर शेख मिर्जा दुनिया को अलविदा कह गए जिससे छोटी से उम्र से ही बाबर जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गए। शुरुआती दौर बाबर के लिए काफी चुनौतीपूर्ण और संघर्षमय रहा है लेकिन बाद में इसी मुगल सम्राट ने भारत के कई हिस्सों पर राज किया।
आपको बता दें कि बाबर ने शुरुआती दौर में अपने पैतृक स्थान फरगना पर जीत तो हासिल कर ली थी लेकिन वे बहुत समय पर उस पर राज नहीं कर पाए और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था उस समय उन्हें बेहद कठिन दौर से गुजरना पड़ा था।
लेकिन इस समय मुगल सम्राट का कई सहयोगियों ने साथ नहीं छोड़ा था। वहीं कभी हार नहीं मानने वाले मुगल सम्राट ने एक ऐसा पासा फेंका कि अफगानिस्तान के शासक बन गए। दरअसल विलक्षण प्रतिभा के धनी सम्राट बाबर ने उस समय का फायदा उठा लिया जब उसके दुश्मन एक-दूसरे से दुश्मनी निभा रहे थे और 1502 में अफगानिस्तान के काबुल में जीत हासिल की।
जिसके बाद उन्हें ‘पादशाह’ की उपाधि धारण मिल गई। पादशाह से पहले बाबर ”मिर्जा” की पैतृक उपाधि धारण करता था।
फौलादी इरादों वाले इस मुगल बादशाह ने उस समय अपने पैतृक स्थान फरगना और समरकंद को भी जीत लिया।
Family Tree
आपको बता दें कि मुगल बादशाह बाबर ने 11 शादियां की थी उनकी 11 बेगम थी जिनके नाम आयेशा सुल्तन बेगम, जैनाब सुल्तान बेगम, मौसमा सुल्तान बेगम, महम बेगम, गुलरुख बेगम, दिलदार बेगम, मुबारका युरुफझाई और गुलनार अघाचा था।
अपनी बेगमों से बाबर के 20 बच्चे थे। बाबर ने अपने पहले बेटे हुमायूं को अपना उत्तरराधिकारी बनाया था।
भारत आने का न्योता –
मुगल सम्राट बाबर मध्य एशिया में अपना कब्जा जमाना चाहता था लेकिन बाबर मध्य एशिया में शासन करने में असफल रहा लेकिन फिर भी मुगल बादशाह के मजबूत इरादों ने उन्हें कभी हार नहीं मानने दी, उनके विचार हमेशा उनको आगे बढ़ने की प्रेरणा देते थे यही वजह है कि मुगल बादशाह की नजर भारत पर गई तब भारत की राजनीतिक दशा भी बिगड़ी हुई थी जिसका मुगल सम्राट ने फायदा उठाया और भारत में अपना साम्राज्य फैलाने का फैसला लिया।
उस समय दिल्ली के सुल्तान कई लड़ाईयां लड़ रहे थे जिस वजह से भारत में राजनैतिक बिखराव हो गया। आपको बता दें कि उस समय भारत के उत्तरी क्षेत्र में कुछ प्रदेश अफगान और कुछ राजपूत के अंदर थे, लेकिन इन्हीं के आस-पास के क्षेत्र स्वतंत्र थे, जो अफगानी और राजपूतों के क्षेत्र में नहीं आते थे।
उस समय जब बाबर ने दिल्ली पर हमला किया था तब बंगाल, मालवा, गुजरात, सिंध, कश्मीर, मेवाड़, दिल्ली खानदेश, विजयनगर एवं विच्चिन बहमनी रियासतें आदि अनेक स्वतंत्र राज्य थे।
आपको बता दें कि बाबर ने अपनी किताब बाबरनामा में भी पांच मुस्लिम शासक और दो हिन्दू शासकों का जिक्र किया है। सभी मुस्लिम शासक दिल्ली, मालवा, गुजरात और बहमनी से थे जबकि मेवाड़ और विजयनगर से दो हिन्दू शासक थे।
इसके साथ ही मुगल बादशाह बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में विजयनगर के तत्कालीन शासक कृष्णदेव राय को समकालीन भारत का सबसे ज्यादा बुद्धिमान और शक्तिशाली सम्राट कहा है।
जब मुगल बादशाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया था तब दिल्ली का सुल्तान इब्राहिम लोदी था लेकिन वो दिल्ली की सल्लतनत पर शासन करने में सक्षम नहीं था यहां तक की पंजाब के सूबेदार दौलत खान को भी इब्राहिम लोदी का काम रास नहीं रहा था उस समय इब्राहिम के चाचा आलम खान दिल्ली की सलतनत के लिए एक मुख्य दावेदार थे और वे बाबर की बहादुरी और उसके कुशल शासन की दक्षता से बेहद प्रभावित थे इसलिए दौलत खां लोदी और इब्राहिम के चाचा आलम खा लोदी ने मुगल सम्राट बाबर को भारत आने का न्योता भेजा था।
वहीं ये न्योता बाबर ने खुशी से स्वीकार किया क्योंकि बाबर की दिल्ली की सल्तनत पर पहले से ही नजर थी और उसने इस न्योते को अपना फायदा समझा और मुगल साम्राज्य का विस्तार भारत में करने के लिए दिल्ली चला गया।
आपको बता दें बाबर ने भारत पर पहला आक्रमण 1519 ईं में बाजौर पर किया था और उसी आक्रमण में ही उसने भेरा के किले को भी जीता था। बाबरनामा में मुगल बादशाह बाबर ने भेरा के किले की जीत का उल्लेख किया है वहीं इस लड़ाई में बहादुर शासक बाबर ने सबसे पहले बारूद और तोपखाने का भी इस्तेमाल किया था।
मुगल बादशाह बाबर पानीपत की लड़ाई में विजय हासिल करने से पहले भारत पर 4 बार आक्रमण कर चुका था और पानीपत की लड़ाई उसकी भारत में पांचवीं लड़ाई थी जिसमें उसने जीत हासिल की थी। और अपने साम्राज्य को आगे बढ़ाया था।
पानीपत की लड़ाई –
पानीपत की पहली लड़ाई बाबर की सबसे बड़ी लड़ाई थी। यह लड़ाई अप्रैल 1526 में शुरू की गई थी जब बाबर की सेना ने उत्तर भारत में लोदी साम्राज्य पर हमला किया था।
आपको बता दें कि इस लड़ाई के लिए इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खान और पंजाब के सूबेदार ने बाबर को पानीपत की लड़ाई के लिए न्योता भेजा था। वहीं कुशल शासक बाबर ने इस लड़ाई में लड़ने से 4 बार पहले पूरी इसकी जांच की थी।
वहीं इस दौरान जो लोग अफगानिस्तान के लोगों ने भी बाबर को अफगान में आक्रमण करने का भी न्योता दिया था। यही नहीं मेवाड़ के राजा राना संग्राम सिंह ने भी बाबर इब्राहिम लोदी के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए लिए कहा क्योंकि इब्राहिम लोदी से राणा सिंह ही पुरानी रंजिश थी और वे अपनी इस रंजिश का बदला लेना चाहते थे।
जिसके बाद बाबर ने पानीपत की लड़ाई लड़ने का फैसला लिया। यह मुगल बादशाह द्धारा लड़ी सबसे पुरानी लड़ाई थी जिसमें गनपाउडर आग्नेयास्त्रों और तोपखाने का इस्तेमाल किया गया था। इस युद्ध में इब्राहिम लोदी ने खुद को हारता देख खुद को मार डाला।
जिसके बाद बाबर ने मुगल साम्राज्य का भारत में विस्तार करने की ठानी। पानीपत की लड़ाई में जीत मुगल सम्राट की पहली जीत थी। इस जीत से उन्होनें भारत में मुगल साम्राज्य की शक्ति का प्रदर्शन किया था। और ये मुगलों की भी भारतीय इतिहास में सबसे बड़ी जीत भी थी।
खानवा की लड़ाई –
खानवा की लड़ाई भी मुगल सम्राट बाबर द्धारा लड़ी गई लड़ाईयों में से प्रमुख लड़ाई थी। बाबर ने खानवा के गांव के पास यह लड़ाई लड़ी थी।
आपको बता दें कि पानीपत के युद्ध में जीत के बाद भी बाबर की भारत में मजबूत स्थिति नहीं थी दरअसल जिस राजपूत शासक राणा शासक ने बाबर को लोदी के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए भारत आने के लिए नयोता दिया अब उन्हें ही बाबर की पानीपत में जीत और उसके भारत में रहने का फैसला खटकने लगा था।
राणा सांगा मुगल सम्राट बाबर को विदेशी मानते थे और चाहते थे कि बाबर काबुल वापस चला जाए। इसी वजह से राणा सांगा ने बाबर के भारत में शासन का विरोध किया और बाबर को भारत से बाहर निकालने के साथ दिल्ली और आगरा को जोड़कर अपने क्षेत्र का विस्तार करने का फैसला किया।
हालांकि बाबर ने भी राणा सिंह को खुली चुनौती दी और राणा संग्राम सिंह की इस योजना को बुरी तरह फेल कर दिया और बाबर की सेना ने राणा सांगा की सेना को कुचल दिया। आपको बता दें कि खनवा की लड़ाई में राणा संग्राम सिंह के साथ कुछ अफगानी शासक भी जुड़ गए थे।
लेकिन अफगानी चीफ को भी हार का सामना करना पड़ा था। खनवा की लड़ाई 17 मार्च 1527 में लड़ी गई इस लड़ाई में बाबर की सेना ने युद्द में इस्तेमाल होने वाले नए उपकरणों का इस्तेमाल किया गया जबकि राजपूतों ने हमेशा की तरह अपनी लड़ाई लड़ी और वे इस लड़ाई में बाबर से बुरी तरह हार गए।
घागरा की लड़ाई –
राजपूत शासक राणा संग्राम सिंह को हराकर बाबर ने जीत तो हासिल कर ली लेकिन इसके बाबजूद भी भारत में मुगल शासक बाबर की स्थिति इतनी मजबूत नहीं हुई थी दरअसल उस समय बिहार और बंगाल में कुछ अफगानी शासक शासन कर रहे थे जिन्हें बाबर का भारत में राज करना रास नहीं आ रहा था जिसके बाद बाबर को अफगानी शासकों के विरोध का सामना करना पड़ा था। मई 1529 में बाबर ने घागरा में सभी अफगानी शासकों को हराकर जीत हासिल की।
बाबर कम उम्र से ही अपने जीवन में इतनी लड़ाइयां लड़ चुका था कि अब तक वो एक मजबूत शासक बन गया था और उसके पास एक बड़ी सेना भी तैयार हो गई थी अब बाबर को चुनौती देने से कोई भी शासक डरने लगा था।
Mughal Empire Coins
इस तरह से भारत में तेजी से मुगल साम्राज्य का विस्तार किया और भारत में जमकर लूट-पाट की। इतिहास के पन्नों पर बाबर की वीरता के साथ उसके क्रूरता के भी कई उदाहरण हैं दरअसल बाबर अपने फायदे के लिए नरसंहार करने से भी नहीं हिचकिचाता था।
बाबर पूजा-पाठ में यकीन नहीं करता था उसने अपने शासनकाल में भारत में कभी किसी हिन्दू को मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए नहीं कहा। बाबर ने अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए आगरा, उत्तरप्रदेश में एक सुंदर सा बगीचा भी बनवाया था।
मुगल साम्राज्य की स्थापना –
बाबर अब भारत में तेजी से मुगल साम्राज्य का विस्तार कर रहा था और अब तक बाबर का शासन कंधार से बंगाल की सीमा के साथ राजपूत रेगिस्तान और रणथंभौर, ग्वालियर और चंदेरी के किले समेत दक्षिणी सीमा के अंदर सुरक्षित हो चुका था।
हालांकि, कोई स्थगित प्रशासन नहीं था, केवल झगड़ा करने वाले प्रमुखों की एक कन्जरी थी। मुगल शासक ने अपना साम्राज्य का विस्तार तो कर लिया था लेकिन अभी भी उसे शांत और संगठित किया जाना था। इस यह एक अनिश्चित विरासत थी जिसे बाबर – Babur की मौत के बाद उसके बड़े बेटे हुमायूं को सौंप दी गई।
मृत्यु –
मुगल बादशाह बाबर ने अपने आखिरी समय में लगभग भारत के ज्यादातर इलाकों में मुगल साम्राज्य का विस्तार कर दिया था बाबर ने पंजाब, दिल्ली और बिहार जीत लिया था। बाबर ने अपनी मौत से पहले अपनी आत्मकथा बाबरनामा लिखी थी जिसमें उसमें अपनी बहादुरी की सभी छोटी-बड़ी बातों का जिक्र किया था इसके साथ ही बाबरनामे में मुगल शासक ने उसके जीवन की सभी लड़ाइयों का भी का उल्लेख किया था।
1530 में बाबर की मौत बीमारी की वजह से हो गई थी बाबर का अंतिम संस्कार अफगानिस्तान में जाकर हुआ था। बाबर की मौत के बाद उसके बड़े बेटे हुमायूं को मुगल साम्राज्य का उत्तराधिकारी बनाया गया और उन्होनें दिल्ली की सल्तनत पर राज किया।
विरासत:
बाबर को मुगल साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है, भले ही मुगल साम्राज्य को उनके पोते अकबर ने मजबूती दी थी लेकिन बाबर का कुशल और शक्तिशाली नेतृत्व अगले दो पीढि़यों को प्रेरित करता रहा। बाबर का व्यक्तित्व संस्कृति, साहसिक उतार-चढ़ाव और सैन्य प्रतिभा जैसी खूबियों से भरा हुआ था।
बाबर एक आकर्षक और धनी प्रतिभा का व्यक्तित्व था। वो एक शक्तिशाली, साहसी, कुशल और भाग्यशाली होने के साथ मुगल साम्राज्य का निर्माता था। बाबर एक प्रतिभाशाली तुर्की कवि भी था, जो प्रकृति से बेहद प्रेम करता था।
जिसने अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए बगीचों का भी निर्माण करवाया था। इसके साथ ही बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा भी लिखी थी। जिसका तुर्की से फारसी में अनुवाद 1589 में अकबर के शासनकाल में किया गया था।
मुगल बादशाह बाबर को उजबेकिस्तान का राष्ट्रीय नायक भी माना जाता था, और उनकी कई कविताएं उनकी लोकप्रिय उज़्बेक लोक गीत बन गए। अक्टूबर 2005 में, पाकिस्तान ने उनके सम्मान में उनके नाम से बाबुर क्रूज मिसाइल विकसित की थी।
स्मारक –
१५२६ मे बाबर का भारत पर पूर्ण रूप से आधिपत्य स्थापित हो गया था, जिसमे १५२६ को पानिपत के प्रथम युध्द मे इब्राहीम लोदी को बाबर द्वारा करारी हार का सामना करना पडा था। इस विजय के बाद पानिपत मे बाबर ने एक मस्जिद का निर्माण किया था जिसे बाबर के पानिपत विजय के प्रतिक के रूप मे बनाया गया था। जिसे “पानिपत मस्जिद” के नाम से जाना जाता हैं।
अपने सैन्य के प्रमुख सेनापती मीर बांकी के निगराणी मे बाबर ने उत्तर प्रदेश के अयोध्या शहर मे रामकोट यानि के राम मंदिर के जगह पर एक मस्जिद बनाई थी जो के “बाबरी मस्जिद” के नाम से प्रसिध्द हुई थी।
हालाकि इन दोनो वास्तूओ के अतिरिक्त बाबर के कार्यकाल मे जामा मस्जिद, काबुली बाग मस्जिद इसके अलावा अन्य कुछ भी स्मारक के निर्माण की जानकारी उपलब्ध नही है।
FAQs
जवाब: पाँच बार।
जवाब: १५१९ से लेकर १५२६ तक कुल पाँच बार बाबर ने भारत पर आक्रमण किया था पर वो १५२६ मे भारत मे अपनी सत्ता स्थापित करने मे सफल हुआ।इस तरह १५२६ मे बाबर भारत मे पहली बार आया।
जवाब: वैसे तो बाबर को भारत मे आगरा शहर मे दफनाया गया था, पर उसकी अंतिम इच्छा थी के उसे काबुल मे दफनाया जाए इसलिये उसे पुनः अफगानिस्तान के काबुल शहर मे दफनाया गया जहा उसका मकबरा मौजूद है।
जवाब: झहीरुद्दिन मुहम्मद ‘बाबर’।
जवाब: २१ अप्रैल १५२६ को इब्राहीम लोदी और बाबर के बीच।
जवाब: पंजाब के शासक दौलतखान लोदी और मेवाड के शासक राणा सांगा ने बाबर को भारत आने का न्योता दिया था।
जवाब: खानवा का युध्द।
जवाब: ४ साल।
जवाब: २६ दिसंबर १५३० को आगरा शहर मे बाबर की मृत्यू हुई थी।
यह जानकारी मुझे बहुत सहायकारी साबित हुई।। धन्यवाद
History of Babar in Hindi