अरबिंदो घोष एक महान कवि, अध्यात्मकि गुरु, विद्वान्, दार्शनिक, योगी एवं स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने देश को गुलामी की बेड़ियों से आजादी दिलवाने के लिए काफी संघर्ष किया था।
इसके साथ ही उन्होंने भारत की राजनीति को नई दिशा दी एवं अपनी अंग्रेजी दैनिक पत्रिका वंदे मातरम के माध्यम से ब्रिटिश सरकार का जमकर विरोध किया एवं देशवासियों को अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह में हिस्सेदारी निभाने के लिए जागरूक किया।
उनका मकसद मानव जीवन में दिव्य शक्ति और दिव्य आत्मा को लाना था, तो आइए जानते हैं भारत के प्रकंड विद्वान् अरबिंदो घोष के जीवन के बारे में-
देश की आजादी में अपनी महत्पूर्ण भूमिका निभाने वाले अरबिंदो घोष की जीवनी – Arvind Ghosh in Hindi
एक नजर में –
पूरा नाम (Name) | अरविंद कृष्णघन घोष |
जन्म (Birthday) | 15 अगस्त 1872 कोलकता (पं. बंगाल) |
पिता (Father Name) | कृष्णघन |
माता (Mother Name) | स्वर्णलता देवी |
विवाह (Wife Name) | मृणालिनी के साथ (1901 में)। |
मृत्यु (Death) | 5 दिसंबर, 1950 |
जन्म, बचपन, परिवार एवं शिक्षा –
अरबिन्दोघोष 15 अगस्त 1872 में बंगाल प्रान्त के कोलकाता (भारत) में जन्में थे। कृष्ण धुन घोष उनके पिताजी थे और स्वर्णलता देवी उनकी माँ थी। उनके पिताजी बंगाल के रंगपुर में सहायक सर्जन थे और उन्हें अग्रेजो की संस्कृति काफी प्रभावित करती थी इसलिए उन्होंने उनके बच्चो को इंग्लिश स्कूल में डाल दिया था। क्यों की वो यह भी चाहते थे की उनके बच्चे ख्रिश्चन धर्मं के बारे में भी बहुत कुछ जान सके।
अरबिन्दो घोष को उनके भाइयो के साथ में दार्जिलिंग के लोरेटो हाउस बोर्डिंग में पढाई के लिए भेज दिया गया था। यह अंग्रेज सरकार के संस्कृति का मुख्य केंद्र माना जाता था। अरबिन्दो घोष के परदादा ब्राह्मो समाज जैसी धार्मिक सुधारना आन्दोलन में काफी सक्रिय रहते थे। उनसे प्रेरित होकर ही अरबिन्दो घोष सामाजिक सुधारना लाना चाहते थे। जब अरविन्द घोष केवल सात साल के थे तब उन्हें इंग्लैंड भेज दिया गया था और वहां पर वे करीब 14 साल तक रहे।
इंग्लैंड में अरबिन्दों घोष ने अपनी पढाई की शुरुवात सैंट पौल्स स्कूल (1884) से की और छात्रवृत्ति मिलने के बाद में उन्होंने कैम्ब्रिज के किंग्स कॉलेज (1890) में पढाई पूरी की। वो अपने पढाई में काफी चतुर और बुद्धिमान थे जिसके चलते उन्होंने भारतीय सनदी सेवा की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली थी। 28 साल की उम्र में साल1901 में अरबिन्दों घोष ने भूपाल चन्द्र बोस की लड़की मृणालिनी से विवाह किया था। लेकिन दिसंबर 1918 में इन्फ्लुएंजा के संक्रमण से मृणालिनी की मृत्यु हो गयी थी।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका –
जब अरबिन्दो घोष को साल 1893 में बरोदा के गायकवाड के यहाँ नौकरी मिल गयी तो वह भारत वापस आ गए थे। उन्हें अन्य देशों की कई सारी भाषाएं आती थी, लेकिन उन्हें भारतीय संस्कृति के बारे में बहुत ही कम जानकारी थी। उन्होंने बरोदा में 12 साल तक शिक्षक रूप में काम किया, कुछ समय के लिए वह गायकवाड महाराजा के सचिव भी थे।
कुछ समय के लिए उन्होंने बरोदा कॉलेज के वाईस प्रिंसिपल पद पर भी काम किया जिसकी वजह से उन्हें भारतीय सस्कृति और भाषा के बारे में जानकारी हासिल हुई। कुछ सालों तक भारत में रहने के बाद में अरबिन्दो घोष को एहसास हुआ कि अंग्रेजों ने भारतीय संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश की है और इसलिए धीरे धीरे वह राजनीति में रुचि लेने लगे थे। उन्होंने शुरू से ही भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की मांग पर जोर दिया था।
1905 मे व्हाईसरॉय लॉर्ड कर्झन ने बंगाल का विभाजन किया। पूारे देश मे बंगाल के विभाजन के खिलाफ आंदोलन शुरु हुए। पूरा राष्ट्र इस विभाजन के खिलाफ उठ खडा हुआ। ऐसे समय में जैसे क्रांतीकारक का चैन से बैठना नामुमकिन था। बंगाल का विभाजन होने के बाद वह सन 1906 में कोलकाता आ गए थे।
ऊपर से अरबिन्दो घोष असहकार और शांत तरीके से अंग्रेज सरकार का विरोध करते थे, लेकिन अंदर से वे क्रांतिकारी संघटना के साथ काम करते थे। बंगाल के अरबिंदो घोष कई क्रांतिकारियों के साथ में रहते थे और उन्होंने ही बाघा जतिन, जतिन बनर्जी और सुरेन्द्रनाथ टैगोर को प्रेरित किया था।
साथ ही कई सारी समितियां की स्थापना की थी जिसमें अनुशीलन समिति भी शामिल है। साल 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में भी उन्होंने हिस्सा लिया था और दादाभाई नौरोजी इस अधिवेशन के अध्यक्ष थे। उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन के चार मुख्य उद्देश- स्वराज, स्वदेश, बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा की पूर्ति के लिए काम किया था। उन्होंने सन 1907 में ‘वन्दे मातरम’ अखबार की शुरुवात की थी।
सरकार के अन्याय पर ‘वंदे मातरम्’ मे सें उन्होंने जोरदार आलोचना की। ‘वंदे मातरम्’ मे ब्रिटिश के खिलाफ लिखने की वजह से उनके उपर मामला दर्ज किया गया लेकीन वो छुट गए। सन 1907 में कांग्रेस मध्यम और चरमपंथी ऐसे दो गुटों में बट चूका थे। अरविन्द घोष चरमपंथी गुटों में शामिल थे और वह बाल गंगाधर तिलक का समर्थन करते थे। उसके बाद मे अरविन्द घोष पुणे, बरोदा बॉम्बे गए और वहापर उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए बहुत काम किया।
1908 मे खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी इन अनुशीलन समिती के दो युवकोंने किंग्जफोर्ड इस जुलमी जज को मार डालने की योजना बनाई। पर उसमे वो नाकाम रहे। खुदीराम बोस पुलिस के हाथों लगे। उन्हें फांसी दी गयी। पुलिस ने अनुशीलन समिती ने सदस्योंको पकड़ना शुरु किया। अरविंद घोष को भी गिरफ्तार किया गया।
अपनी पत्रिकाओं के माध्यम से किया अंग्रेजों का विरोध: अरबिन्द घोष एक ऐसे क्रांतिकारी थे, जिनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य पराधीनता की बेड़ियों से जकड़े हुए भारत देश को स्वतंत्र करवाना था। उस दौरान ब्रिटिश शासकों के अमानवीय व्यवहार और अत्याचारों को देखकर उनके मन में अंग्रेजों के नफरत भर गई थी, साथ ही विद्रोह की भावना पनपने लगी थी।
उन्होंने अपने ब्रटिश सरकार के खिलाफ मन में पनपे विद्रोही विचारों को अपनी पत्रिकाओं के माध्यम से उजागर किया और अपना बिना नाम दिए बिना कई लेख प्रकाशित किए, उनकी पत्रिकाओं के चलते देशवासियों के मन में भी अंग्रेजों के प्रति रोष व्याप्त हो गया था और कई युवा स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए भी प्रोत्साहित हुए। हालांकि उन्हें अपने विद्रोही लेखों की वजह से अंग्रेजों के अत्याचार भी सहने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
कारावास और आध्यात्म –
अरबिंदो घोष जब ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपने विद्रोह विचारों से देशवासियों के अंदर स्वतंत्रता पाने की अलख जगा रहे थे, इसी बीच इतिहास में चर्चित अलीपुर बम षडयंत्र कांड भी हुआ जिसके चलते अंग्रेज अफसरों के द्वारा उन्हें गिफ्तार कर लिया गया। जेल की सजा काटने के दौरान उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया।
उनका मन संसारिक कामों से अलग आध्यात्म की ओर तरफ लगा। ध्यान और योग की तरफ उनकी रुचि बढ़ने लगी और जेल से रिहाई के बाद उन्होंने खुद को पूरी तरह ध्यान, योग में समर्पित कर दिया।
श्री अरबिन्द आश्रम की स्थापना –
आध्यात्म को लेकर अरबिंदों घोष ने कई लेख लिखे और साल 1910 में कलकत्ता छोड़ कर पांडिचेरी चले गए। और वहां वे पहले तो अपने साथियों के साथ रहे लेकिन फिर उनके विचारों से प्रभावित होकर दूर-दूर से लोग आने लगे और इस तरह एक योग आश्रम की स्थापना की।
इसके बाद करीब 4 सालों तक योग पर ध्यान लगाने के बाद अरबिंदों घोष ने अपने विचारों को दार्शनिक नामक पत्रिका में लिखकर शेयर किया और बाद में उनकी यह मैग्जीन काफी लोकप्रिय हो गई और बाद में एक टीवी सीरियल के रुप में भी प्रसारित की गई। आपको बता दें कि अरबिन्दों घोष ने इसमें वार एंड सेल्फ डिटरमिनेसन, द रेनेसां इन इंडिया, द फ्यूचर पोएट्री, द आइडियल ऑफ ह्मयूमन यूनिटी, शामिल थीं।
श्री अरबिंदो घोष का आध्यात्मिकता पर पूरा भरोसा था, उनके अनुसार आध्यात्मिकता ये हर एक इंसान से जुडी हुई है। 1926 में, उनके आध्यात्मिक सहकर्मियों, मिर्रा अल्फस्सा (माता), की मदद से श्री अरबिन्दो आश्रम की स्थापना की। श्री अरबिंदों घोष का मुख्य उद्देश मानवी विकास करना और मानवी जीवन और अधिक सुन्दर बनाना था।
पुरस्कार –
अरबिन्दो घोष को कविता, अध्यात्म और तत्त्वज्ञान में जो योगदान दिया उसके लिए उन्हें नोबेल का साहित्य पुरस्कार(1943) और नोबेल का शांति पुरस्कार(1950) के लिए भी नामित किया गया था।
मृत्यु –
5 दिसंबर, साल 1950 को श्री अरबिन्दो घोष की मृत्यु हो गयी थी।
उन्होंने अध्यात्म और तत्वज्ञान के क्षेत्र में जो अमूल्य योगदान दिया उसके लिए स्वतंत्र भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरु और भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भी उनकी काफी प्रशंसा की थी। देश को आजादी दिलाने में उन्होंने सभी रास्तो से प्रयास किए और उसमे वह सफल भी रहे। देश के युवा को जगाने के लिए और उनके दिल में आजादी की चिंगारी को और तीव्र करने के लिए उन्होंने ‘वन्दे मातरम’ अख़बार निकाला था।
इस अखबर के विचारो को पढ़कर कई क्रांतिकारी निर्माण हुए। देश को आजादी दिलाने के लिए उन्होंने कई सारे आन्दोलन किए। उनके आन्दोलन इतने उग्र होते थे की उसके लिए उन्हें एक बार जेल भी जाना पड़ा था। अरबिन्दो घोष सामाजिक सुधारकों की मदद से भी देश को बेहतर बनाना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने बहुत सारे सामाजिक आन्दोलन भी किये।
साहित्यिक प्रतिभा –
अहिंसात्मक प्रतिकार का सिध्दान्त, भारतीय नवजीवन वेद – रहस्य, दी लाईफ दिव्हाईन, यौगिक समन्वय आदी ग्रंथ बहोत प्रसिध्द है। इसके अलावा जब अरविन्द घोष इंग्लैंड में रहते थे तो वहां पर कविताएं भी लिखा करते थे।
कविता को समृद्ध बनाने में उन्होंने 1930 के दौरान बड़ा योगदान दिया है। उन्होंने “सावित्री” नाम की एक बड़ी 24000 लाइन वाली कविता लिखी है और उनकी यह कविता अध्यात्म पर आधारित है। इन सब के साथ-साथ वे दर्शनशास्त्री, कवि, अनुवादक और वेद, उपनिषद और भगवत् गीता पर लिखने का भी काम करते थे।
अरबिन्दों घोष को उनके द्वारा आजादी में दिए गए योगदान के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा।
I like this article. After seen this matter.I influenced to know about them and as primary teacher influence other to learn more about them.Thanks to all society member.
Very nice Biography of Aurobindo Ghosh. Thank you.
अरविन्द घोष ने स्वयं को घुड़सवारी के टेस्ट से अनुपस्थित रखा था, क्योंकि वे आईसीएस अधिकारी बनकर दमनकारी ब्रिटिश हुकुमत का हिस्सा बनना नहीं चाहते थे . ऐसा नहीं है कि उन्हें घुड़सवारी में अंक कम मिले .
खुदीराम बोस ने अंग्रेज जिलाधिकारी किंग्स्फोर्ड पर बम फैंका था . पर उस घोड़ागाड़ी में उसके स्थान पर दो ब्रिटिश महिलाएं बैठी थीं, वे बम का शिकार बनीं .
Sri aurobindo ka ics mein kaun sa paper ka exam diye the.please bataye
the social cycle , the ideal of human unity…..ye bhi unki rachnaye hai…