सफलता की मिसाल – सिक्किम की पहली महिला IPS अपराजिता

Aparajita Rai

“मंजिल उन्ही को मिलती है जिनके सपनो में जान होती है,
पंखो से कुछ नहीं होता हौसलों से ही उड़ान होती है!!”

ये पंक्तियां सिक्किम की पहली महिला IPS ऑफिसर अपराजिता रॉय पर एकदम सटीक बैठती हैं, उन्होंने अपने जीवन में तमाम संघर्षों के बाबजूद भी अपनी कड़ी मेहनत, काबिलियत और कुछ कर दिखाने के जज्बे और जुनून के बल पर सफलता का इस मुकाम को हासिल किया है, और आज वे लाखों लोगों के लिए एक प्रेरणा हैं।

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सफलता की मिसाल – सिक्किम की पहली महिला IPS अपराजिता – Aparajita Rai First Female IPS Officer From Sikkim

IPS ऑफिसर अपराजिता के परिवार की आर्थिक हालत बेहद खराब थी, जब वे 8 साल की थी, तब उनके सिर से पिता का साया उठ गया, लेकिन अपराजिता के बुलंद हौंसलों के सामने उनके जीवन में आयी इतनी विकट परिस्थितियां और मजबूरियां बाधा नहीं बन सकीं। वे अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरी ईमानदारी और कड़ी मेहनत के साथ आगे बढ़ती रहीं।

पिता की मौत के बाद अपराजिता की मां रोमा ने, उनकी पूरी जिम्मेदारी संभाली। उन्होंने एक मां और बाप दोनों बनकर उनका पालन-पोषण किया और अपने खर्चे में कटौती कर अपराजिता को उचित शिक्षा ग्रहण करवाने में उसकी मदत की।

आपको बता दें कि अपराजिता की मां, टीचिंग कर जो भी कमाती थी, उसे उनकी पढ़ाई पर खर्च कर देती थी।

अपराजिता बचपन से ही बेहद होनहार छात्रा थी, उन्होंने अपनी 12वीं की परीक्षा में भी 95 फीसदी अंक हासिल कर बोर्ड में टॉप किया था, वहीं इसके लिए उन्हें ताशी नामग्याल एकेडमी में बेस्ट गर्ल ऑल राउंडर श्रीमती रत्ना प्रधान मेमोरियल ट्रॉफी से सम्मानित भी किया गया था।

इसके बाद साल 2009 में पश्चिम बंगाल स्थित नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ जुडिशल साइंस से अपराजिता ने अपनी बीए एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। इसमें भी उन्होंने गोल्ड मेडल हासिल किया था।

इसके बाद उन्होंने साल 2010 में पहली बार यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा दी, और इस एग्जाम में उन्होंने 768 वीं रैंक हासिल की। ज्यादा अच्छी रैंक नहीं आने पर साल 2011 में उन्होंने फिर से यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा का एग्जाम दिया और इस परीक्षा में उन्होंने 358 वीं रैंक हासिल की।

और वे सिक्किम की सबसे अच्छी रैंक हासिल करने वाली पहली महिला कैंडिडेट बन गई। यही नहीं अपराजिता ने अपनी मेहनत और काबिलियत के बल पर अपनी ट्रेनिंग के दौरान ‘बेस्ट लेडी आउटडोर’ की ट्रॉफी भी जीती।

इस तरह साल 1958 बैच की आईपीएस ऑफिसर अपराजिता बिना रुके अपनी जिंदगी में सफलता की ऊंचाईयों को छूती रहीं और उन्हें श्री उमेश चंद्र ट्रॉफी से भी सम्मानित किया गया।

आपको बता दें कि अपराजिता की प्रतिभा को उनके परिवार वाले बचपन में ही भाप गए थे, इसलिए आर्थिक हालत ठीक नहीं होने के बाबजूद उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहे। अपराजिता भी अपनी सफलता का श्रेय अपनी मां और परिवार वालों को देती है।

इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि जब एक बार अपराजिता ने सरकारी कर्मचारी के द्धारा किसी आम शख्स के साथ बुरा बर्ताव करते हुए देखा तो, उन्हें काफी दुख हुआ और तभी उन्होंने सिविल क्षेत्र में आने का फैसला लिया था, ताकि वे इस सिस्टम को मजबूत बना सकें।

तो इस तरह आर्थिक तंगी और छोटी सी उम्र में सिर से पिता का साया उठऩे के बाद अपराजिता ने सफलता का यह मुकाम हासिल किया है, जो कि वाकई प्रशंसनीय और प्रेरणादायक है।

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