Anti-Nuclear Movement
हर देश हमेशा बाकी देशो से आगे रहना चाहता है और उसकी इक्षा होती है की किसी के सामने झुके नहीं। इसके लिए उसे तेजी से उत्पादन बढाने के साथ साथ खुद को हथियारों के मामले में भी मजबूत बनाना चाहता है। इसके लिए वो इस्तेमाल करता है परमाणु ऊर्जा यानी की न्यूकिलियर एनर्जी जिससे देश में सैन्य और आर्थिक शक्ति तो बढती है लेकिन वो देश उतना ही गर्त में जाने लगता है।
इसके इस्तेमाल से पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है और इसका नजारा हम हिरोशिमा-नागासाकी में देख चुके है। इन्ही नुकसानो को देखते हुए विश्व के कई देशो में एंटी-न्यूकिलियर मूवमेंट – Anti-Nuclear Movement शुरू किये गए जो परमाणु ऊर्जा इस्तेमाल करने और उनसे बनाये जाने वाले हथियारों के खिलाफ थे।
एंटी-न्यूक्लियर मूवमेंट क्या हैं? – Anti-Nuclear Movement
एंटी-न्यूक्लियर मूवमेंट क्या है उद्देश्य – Purpose of Anti-Nuclear Movement
जैसे हर किसी मूवमेंट या आन्दोलन का उद्देश्य होता है वैसे ही इसका भी एक ख़ास उद्देश्य था। सरकारों को ये बताना की इस काम से हमारे समाज और पर्यावरण का कितना अधिक नुकसान हो रहा है। आम जनता के जीवन में कितना असर पड़ रहा है।
जहाँ ये प्लांट लगाये गए है वहां के सस्थानीय निवासी कैसी नर्क सी जिन्दगी जीने को मजबूर है। इसके आलवा आम लोगो को ये बताना की इन संयत्रों से हमारे समाज को कितना खतरा है। इसके लिए डिबेट्स, आन्दोलन, धरने आदि किये गए।
कब कब हुए आन्दोलन – Anti Nuclear Movement History
साल 1945 में जब हिरोशिमा-नागासाकी पर अमेरिका ने परमाणु हमला किया तो बाकी देश स्तब्ध रह गए और उन्हें इस हमले से झटका लगा। कई सारे देशो के लोग इस हमले की निंदा करने लगे और इसे गलत कहने लगे।
इसमें कई सारे वो वैज्ञानिक भी शामिल थे जो कही ना कही परमाणु ऊर्जा और इससे बनने वाले हथियारों के लिए काम कर रहे थे। इसके बाद कई सालो तक छोटे छोटे आन्दोलन होते रहे लेकिन साल 1970 में वेस्ट जर्मनी के WYHL में एक बहुत बड़ा आन्दोलन हुआ और ये परमाणु ऊर्जा संयत्रों के खिलाफ था।
इसका असर ऐसा हुआ की साल 1975 में कई सारे संयत्र बंद कर दिए गए जिससे बाकी संगठनों को लगा की ये आन्दोलन कारगर हो सकता है। इस साल हुए इस आन्दोलन का प्रभाव अमेरिका और यूरोप में भी पड़ा। इसके बाद स्पेन के BILBAO शहर में साल 1977 में लगभग बीस हजार लोग सडको में आ गए और न्यूकिलियर एनर्जी का विरोध करने लगे जिससे सरकारे हरकत में आई और उन्हें इसके बारे में विचार करना पड़ा।
इसके बाद साल 1979 में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में भी ऐसा ही हुआ और लगभग इतनी संख्या में ही लोग परमाणु का विरोध करने के लिए सडको में उतरे।
इसके बाद साल 1981 में जर्मनी में ब्रोकडोर्फ़ न्यूक्लियर पॉवर प्लांट के खिलाफ लगभग दस हजार लोग सडको में आकर आन्दोलन करने लगे और इस दौरान पुलिस से मुठभेड़ भी हुई। ऐसा पहली बार हुआ जब परमाणु के खिलाफ पुलिस और जनता आमने-सामने आई हो।
इसके बाद 12 जून 1982 को अमेरिका के न्यूयार्क शहर में लोगो ने एतिहासिक विरोध किया जिसमे लगभग दस लाख लोग शामिल हुए और उन्होंने परमाणु ऊर्जा और इससे बनने वाले हथियारों का विरोध करते हुए परमाणु संयत्रों को बंद करने की आवाज उठाई।
इसके ठीक एक साल बाद साल 1983 में लगभग छ लाख लोग वेस्ट बर्लिन की सडको में आ गए और इन्होने परमाणु हथियारों के खिलाफ आवाज उठाई और आन्दोलन किया।
इसके बाद साल 1986 में इटली की राजधानी रोम में लगभग दो लाख लोग अपने ही देश के न्यूकिलियर सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाने के लिए एक आन्दोलन के रूप में सबके सामने आये। इन सभी आंदोलनों का प्रभाव ऐसा हुआ की अमेरिका ने SHOREHAM, YANKEE ROWE, MILLSTONE1, RANCHO SECO और MAINE YAANKEE जैसे कई सारे न्यूकिलियर पॉवर प्लांट बंद कर दिए।
इसके साथ इसी समय कुछ ऐसे ग्रुप्स को बैन भी कर दिया गया जो की न्यूकिलियर पॉवर प्लांट का विरोध कर रहे थे लेकिन बाद में उन्हें साल 2000 के लगभग वापिस काम करने की इजाजत दी गई और उनके ऊपर से बैन हटा लिया गया।
इसके बाद लम्बे समय तक हरित क्रांति, हरियाली, पर्यावरण और परमाणु के नुकसान की बात हुई और इसका असर हुआ की साल 2016 में ऑस्ट्रेलिया, डेनमार्क, ग्रीस, न्यूजीलैंड और नॉर्वे जैसे देशो अपने देश के सभी न्यूकिलियर पॉवर स्टेशन बंद कर दिए।
भारत में भी आन्दोलन – Anti Nuclear Movement in India
ऐसा नहीं है की केवल बाहरी देशो में ही परमाणु संयत्रों और उनके हथियारों को बंद करने के लिए आन्दोलन हुए बल्कि भारत में भी इसके लिए आन्दोलन हुआ। यह आन्दोलन लम्बे समय से चल रहा था जिसे “पीपुल्स राईट मूवमेंट के अंतर्गत किया जा रहा था और इसके समन्वयक थे एस.शिवसुब्रमणियम जो की सामाजिक कार्यकर्त्ता थे।
इस आन्दोलन का आस्तित्व सामने आया साल 2011 में जब यह भयानक रूप लेने लगा। यह आन्दोलन हुआ तमिलनाडु के कुडनकुलम में जहाँ परमाणु बिजली संयंत्र लगा हुआ था। सरकार ने भी इस आन्दोँलन को कुचलने की बहुत कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाई।
इसके बाद लगभग 12 या 13 सितम्बर 2012 को कुडनकुलम के लोगो ने जल सत्याग्रह किया। उन्होंने कई लोगो की एक श्रृंखला बनाई और समुद्र में जाकर खड़े हो गए और देखते ही देखते ये आन्दोलन हवा पकड़ने लगा और हर कोई इस संयत्र को बंद करने की मांग उठाने लगा।
इन आन्दोलनकारियों की प्रमुख मांगे थी जिनमे कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना के लिए ईंधन भरने की प्रक्रिया पर रोक, परमाणु विरोधी आंदोलन के नेताओं की गिरफ़्तारी की योजना पर रोक, जिन लोगों को नुकसान हुआ है, उनके पर्याप्त मुआवजा और हिरासत में लिए गए लोगों की रिहाई।
क्यों बंद होने चहिये परमाणु संयंत्र –
जहाँ देश को खतरा बढ़ रहा है और उर्जा की कमी हो रही है तो ऐसे में परमाणु संयत्रों को बंद करने और उनमे रोक लगाने की बात क्यों हो रही है? इसके पीछे कारण बड़ा साफ़ है।
दरअसल परमाणु बिजलीघरो की ऊँची चिमनियो से जो भाप निकलती है वह हमें सफ़ेद दिखती है या फिर कई बार ग्रीन दिखाई देती है लेकिन इसके बहुत नुकसान है। इसमें स्ट्रांसियम 90, आयोडीन 131, और केईसियम 137 जैसे भयानक रेडिओधर्मी तत्व मौजूद होते है जो की कई सालों तक वातावरण में रह सकते है।
इनका आकड़ा लगभग 600 सौ सालों का है। इसके बाद जब बारिश होती है तो यही कण जल के साथ मिलकर धरती में आते है और इनसे ब्लड कैंसर, थायराइड, हड्डी और शरीर की कमजोरी के साथ साथ मानसिक रोग भी होते है।
इसका उदाहरण है नागासाकी जहाँ आज भी लोगो में मानसिक विकृति पाई जाती है और वहां के लोग सामान्य नहीं है। भारत में रावतभाटा, तारापुर और काकड़ापार जैसे जगहें हैं जहाँ के आसपास रहने वालो लोगो में ये समस्याएं देखने को मिली है और ये बहुत गंभीर समस्या है।
इसके अलावा नाभिकीय रिएक्टर को ठंडा करने के लिए जो पानी संग्रहित किया जाता है वो भी आमजन के इस्तेमाल से बाहर आ जाता है जिससे पानी की कमी होने लगती है। वही परमाणु हथियारों से विश्व में शान्ति ना फैलने का डर बना हुआ है।
आज कई सारे ऐसे देशो के पास परमाणु हथियार है जिनके इरादे ठीक नहीं है और वो खत्म होने की कगार में है और ऐसे में उन्होंने अगर हमला किया तो बाकी के खुशहाल देश भी बर्बाद हो जायेगे।
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