जिस मंदिर का संरक्षक एक मगरमच्छ हैं जानिए ऐसे मंदिर के बारेमें……

Ananthapura Lake Temple

आमतौर पर देखा गया है की दक्षिण भारत का हिस्सा देश के अन्य प्रदेश से बिलकुल अलग है। दक्षिण भारत की संस्कृति काफी प्राचीन है। इसी वजह से इस प्रदेश में देवी और देवताओ के मन्दिर भी बड़ी संख्या में देखने को मिलते है। आमतौर पर कोई भी मंदिर हम देखते है तो किसी भी मंदिर को जमीन पर बनाया जाता है।

लेकिन दक्षिण भारत में एक जगह ऐसी भी है जहापर मंदिर को जमीन पर नहीं बनाया गया। उस मंदिर को पानी में बनाया गया है। इस खास मंदिर का नाम अनंता सरोवर मंदिर है और यह अनोखा मंदिर केरल में स्थित है।

इस मंदिर के झील में एक और खास बात है क्यों इस झील में एक मगरमच्छ है। अक्सर मगरमच्छ को देखकर लोग डर जाते है। लेकिन इस झील की जो मगरमच्छ है वह अन्य मगरमच्छ से बिलकुल अलग है। लोग इस मगरमच्छ से बिलकुल भी नहीं डरते।

मगर सवाल यह है की आखिर क्यों लोगो को इस मगरमच्छ से डर नहीं लगता इसके पीछे भी एक रहस्यमयी कहानी छिपी है। उस रोचक कहानी को भी हम आपके सामने रखेंगे। लेकिन उससे पहले हम आपको इस मंदिर की पूरी जानकारी देंगे और बाद में इस मगरमच्छ के बारे में बताएँगे।

Ananthapura Lake Temple

जिस मंदिर का संरक्षक एक मगरमच्छ हैं जानिए ऐसे मंदिर के बारेमें……

अनंत सरोवर मंदिर केरल में स्थित है और यह मंदिर एक झील के बीचोबीच स्थित है। यह मंदिर अनंथापुरा गाव में है जो कुम्बल शहर से केवल 6 किमी की दुरी पर स्थित है और यह मंदिर कासरगोड जिले के मंजेस्वरम तहसील में स्थित है। इस मंदिर को अनंथापद्मानाभस्वामी मंदिर भी कहा जाता है।

पुरे केरल में झील में स्थित केवल यही मंदिर है और ऐसा कहा जाता है की अनंथापद्मानाभस्वामी यही पर रहते थे। एक कहाँनी के मुताबिक अनंथापुरम में इसी जगह पर अनंथापद्मानाभस्वामी रहते थे।

इस झील के अन्दर बनाया गया मंदिर करीब 2 एकर में फैला हुआ है। इस मंदिर में जाते वक्त एक और खास बात देखने जैसी है क्यों की जैसे ही कोई मंदिर की तरफ़ जाता है तो इस झील के दाये कोने में एक गुफा दिखाई देती है।

ऐसा कहा जाता है की इस गुफा के रास्ते से अनंथापद्मानाभस्वामी थिरुवनंथपुरम में जाते थे। इसीलिए इन दोनों भी जगह को एक जैसा ही नाम दिया गया है लेकिन यह दोनों जगह एक दुसरे से काफी दूर है।

अनंता सरोवर मंदिर का इतिहास – Ananthapura Lake Temple History

इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना होने की वजह से इस मंदिर से जुडी कई बाते लोगो को मालूम नहीं। कई सालों पहले इस जगह पर दिवाकर मुनी विल्वामंगालम नाम के महान तुलु ब्राह्मण ऋषि ने कड़ी तपस्या की थी।

जब ऋषि कड़ी तपस्या कर रहे थे तब एक दिन वहापर भगवान नारायण एक छोटे बालक के रूप में उनके सामने आ गए।

उस छोटे बालक के मुख पर जो तेज था उसे देखकर ऋषि काफी आनंदित हो उठे। लेकिन ऋषि को थोड़ी चिंता भी हुई इसीलिए उन्होंने उस छोटेसे बच्चे से पूछा की वह कौन है।

पूछने पर बालक ने बताया की उसके कोई माता पिता नहीं और उसके घर में भी कोई नहीं। यह जानकर ऋषि को बहुत दुख हुआ और उन्होंने उस बालक को उनके साथ में रहने की अनुमति दी।

उस बालक ने उनके साथ में रहने के लिए हा कर दी लेकिन उसमे एक शर्त रखी की जब कभी उसे अपमानित किया गया ऐसा महसूस होगा उस समय वह ऋषि को छोड़ के चला जायेगा।

उस बालक ने कुछ समय तक उस ऋषि की सेवा की। लेकिन बहुत ही जल्द उस बालक ने छोटे बच्चो जैसी हरकते करना शुरू कर दिया जिसकी वजह से ऋषि उस बालक पर क्रोधित हुए।

ऋषि को क्रोधित होते ही बालक वहा से अदृश्य हो गया और जाते जाते उसने कहा था की अगर ऋषि को बालक को फिर से देखना है तो ऋषि को नागो के देवता अनंता के अनंथंकत जंगल में जाना होगा।

ऋषि जल्द ही समझ गए थे की वो बालक कोई साधारण बालक नहीं था बल्की भगवान थे और अपने किये पर उन्हें बड़ा पश्चाताप हुआ।

जिस गुफा से बालक अदृश्य हुआ था उसी गुफा के रास्ते से ऋषि उस बालक को ढूंढने लगे। ढूंढते ढूंढते ऋषि समुद्र तक पहुच गए और ऋषि आगे दक्षिण की तरफ चलते गए और आखिरी में समुद्र के नजदीक में जंगल में पहुच गए।

जो बालक विलावामंगलम ऋषि के सामने से अदृश्य हो गया था वह बालक फिर से एक बार ऋषि के सामने एक महुआ पेड़ के रूप में सामने आया लेकिन अचानक वह पेड़ भी निचे गिर गया और उस पेड़ की जगह पर भगवान विष्णु नजर आने लगे थे और भगवान विष्णु उस ऋषि के सामने प्रकट हुए तो भगवान विष्णु हजारों नागो पर विराजमान थे।

बबिया नाम की मगरमच्छ इस मंदिर की संरक्षक

इस मंदिर से एक और रोचक कहानी जुडी है और यह कहानी यहाँ की एक संरक्षक मगरमच्छ की है। कई सालों से यहाँ पर एक मगरमच्छ देखी जाती है। यहाँ के जल में मगरमच्छ रहती है उसमे सभी भक्त आराम से स्नान करते है क्यों की मगरमच्छ किसी को भी हानी नहीं पहुचाती। इस मगरमच्छ का नाम बबिया है।

यह मगरमच्छ इस मंदिर का संरक्षण करने का काम करती है। मंदिर में आनेवाले भक्त जो प्रसाद मगरमच्छ को देते है उसके अलावा यह मगरमच्छ कुछ भी नहीं खाती। यह प्रसाद चावल और गुड का बना रहता है।

भक्त भगवान की पूजा करने के बाद में बबिया को दोपहर में खाना देते है। मंदिर के अधिकारियो का कहना है की यह मगरमच्छ पूरी तरह से शाकाहारी है और यह किसीको भी तकलीफ नहीं देती यहातक की बबिया किसी मछली को भी नहीं खाती।

इस मगरमच्छ के पीछे एक बहुत ही रहस्यमयी और रोचक कहानी छिपी है। एक बार यहापर श्री विल्वामंगलम ऋषि भगवान विष्णु की कड़ी तपस्या कर रहे थे।

जब ऋषि तपस्या और प्रार्थना कर रहे थे तो उस समय भगवान कृष्ण एक छोटे बालक के रूप में उनके सामने आ गए और उन्हें तकलीफ देने लगे जिसकी वजह से ऋषि पूरी तरह से भगवान विष्णु की प्रार्थना कर नहीं पा रहे थे।

ऋषि को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने भगवान कृष्ण को बाये हाथ से खुद से अलग किया।

जिस वक्त ऋषि ने भगवान कृष्ण को अपने से अलग किया उसी समय भगवान बाजुवाली गुफा में अचानक अदृश्य हो गए और तब ऋषि को पता चला की वो कोई साधारण बालक नहीं था।

जिस जगह से बालक गुफा में गया था उसपर एक दरार पड़ी थी और वह दरार आज भी देखने को मिलती है। यह मगरमच्छ इसी गुफा के प्रवेशद्वार पर रहती है और मंदिर का संरक्षण करने का काम करती है।

सन 1945 में एक अंग्रेज सिपाही ने यहाँ की एक मगरमच्छ की गोली मारकर हत्या कर दी थी। लेकिन आश्चर्य की बात यह है की उसके कुछ दिन बाद ही साप के काटने से उस अंग्रेज सिपाही को मौत हो गयी थी।

लोग ऐसा मानते है की यह सब नागो के देवता अनंत ने ही किया था। लेकिन उस मगरमच्छ के मरने के बाद एक और नयी मगरमच्छ उस सरोवर में अचानक आ गयी।

एक और कहानी में बताया गया है की इस सरोवर के जल में एक समय पर केवल एक ही मगरमच्छ रहती है। जब एक मगरमच्छ मर जाती है तो उसकी जगह पर दूसरी मगरमच्छ अपने आप आ जाती है। इसीलिए सभी भक्त इस मगरमच्छ को बहुत मानते है।

अनंता सरोवर मंदिर की संरचना – Ananthapura Lake Temple Architecture

इस मंदिर को बहुत ही अच्छे तरीके से बनाया गया है। झील के बिच में 302 फीट की जमीन पर इस मंदिर को बड़ी सुन्दरता से बनाया गया है। इस झील में पुरे साल भर पानी रहता है। इस सरोवर के चारो तरफ़ मंदिर के पुराने अवशेष दिखाई देते है इनसे पता चलता है की इस मंदिर का परिसर कितना बड़ा हो सकता है।

इस सरोवर में श्रीकोविल (मंदिर का गर्भगृह), नमस्कार मंडप, थितापल्ली, जलदुर्ग और गुफा का प्रवेशद्वार सब कुछ देखने को मिलता है। नमस्कार मंडप और पूर्व में एक बड़ा पत्थर है और इनके बिच में एक पुल बनाया गया जिसकी मदत से श्रीकोविल तक जाने का रास्ता है।

भगवान विष्णु इस मंदिर की मुख्य देवता है। इस मंदिर की एक और विशेष बात यह भी है इस मंदिर में जो भगवान की मुर्तिया है वह किसी धातु या पत्थर से नहीं बनायीं गयी।

इस मंदिर की मूर्तियों के बनाने के लिए 70 से भी अधिक औषधि वस्तु का इस्तेमाल किया गया और यह सभी वस्तु बड़ी मुश्किल से मिल पाती है। इन सभी औषधि वस्तु को ‘कडू शर्करा योगम’ कहा जाता है।

लेकिन सन 1972 में इन सभी मूर्तियों की जगह पर पंचलोहा से बनायीं गयी मूर्तियों को स्थापित किया गया। इन नयी मूर्तियों को कांची कामकोटी मठाधिपति जयेंद्र सरस्वती थिरुवातिकल ने भेट के रूप में दिया था।

लेकिन अभी फिर से इस मंदिर में कडू शर्करा योगम की मुर्तिया स्थापित करने का विचार किया जा रहा है।

भगवान विष्णु पाच नागो के देवता अनंता पर बैठे हुए स्थिति में विराजमान है। इस मंदिर में सभी धर्म और जाती के लोगो को आने की अनुमति है। इस मंदिर की देखभाल और सँभालने की जिम्मेदारी जिला पर्यटन संवर्धन परिषद की है।

इस मंदिर के मंडप पर सुन्दर नक्काशी में काम किया गया है। इन नक्काशी में भगवान विष्णु के सभी दशावतार को दर्शाया गया है। मुक्त मंडप में सभी नौ ग्रहों को चित्रित किया गया है। श्रीकोविल के एक बाजु में लकडियो पर द्वारपालक को बड़ी सुन्दरता से बनाया गया है।

सभी धर्म और जाती के लोगो के लिए यह मंदिर खुला है। अनंथापुरा सरोवल मंदिर तक आने के लिए कासरगोड रेलवे स्टेशन है जो की यहाँ से केवल 12 किमी की दुरी पर है। कुम्बल में भी एक रेलवे स्टेशन है। मंगलोर का हवाई अड्डा इस मंदिर से केवल 60 किमी की दुरी पर स्थित है।

कोज़िकोड़े का करिपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा इस मंदिर से केवल 200 किमी की दुरी पर है। मंदिर तक पहुचने के लिए कुम्बल-बदियादका रास्ते से भी जाने की व्यवस्था है।

केरल के इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना और प्राचीन है। इसीलिए बहुत लोगो को इस मंदिर के बारे में अधिक जानकारी नहीं।

इस मंदिर से सालों से कई कहानिया जुडी है। कुछ कहानिया पुराणी है तो कुछ कहानिया नयी है। लेकिन इस मंदिर की हर कहानी रोचक है।

हर कहानी के पीछे कोई ना कोई रहस्य छिपा है। इस मंदिर के देवता भगवान विष्णु होने के कारण इस मंदिर की कहानिया और भी रोचक लगती है। इस मंदिर के बाजु में जो गुफा है उसकी वजह से तो यह मंदिर और भी रहस्यमयी लगता है।

कहा जाता है की इस गुफा संरक्षण करने का काम मगरमच्छ करती है। इसके अलावा भी इस मंदिर के चारो तरफ़ जल होने के कारण यह मंदिर और भी सुन्दर दीखता है। इस तरह के मंदिर बहुत कम होते है। इसीलिए इस मंदिर में भगवान के दर्शन करने के लिए एक बार अवश्य आना चाहिए।

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