अमर्त्य सेन की जीवनी और कार्य

Amartya Sen

भारत में सांप्रदायिक अलगाववाद की भावना जन्म ले चुकी थी। गुरु रवींद्रनाथ टैगोर की मृत्यु के बाद बंगाल में भी सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। देश के उस  माहौल को देखकर अमर्त्य सेन – Amartya Sen ने यह दृढ़ संकल्प लिया कि मैं मनुष्य की आर्थिक स्वतंत्रता के लिए काम करूंगा।

शांति निकेतन से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने सन 1951 में प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। अध्यापक अपने-अपने विषय के प्रति दक्ष थे और छात्रों में एक नया जोश उत्पन्न करते थे। इस कॉलेज में अमर्त्य कुमार के आने का उद्देश्य यह था कि वे अर्थशास्त्र के क्षेत्र में महारत हासिल करना चाहते थे। यही Amartya Sen जीवन का सपना था।

अमर्त्य सेन की जीवनी – Amartya Sen in Hindi

Amartya Sen

अमर्त्य सेन की जानकारी – Amartya Sen Information in Hindi

पूरा नाम (Name) अमर्त्य कुमार आशुतोष सेन (Economist India)
जन्म (Birthday) 3 नवंबर 1933, शांति निकेतन, कोलकता
पिता (Father Name)  आशुतोष
माता (Mother Name) अमिता
शिक्षा (Education) 
  • 1951 में प्रेंसिड़ेसी कॉलेज में प्रवेश
  • 1953 में स्नातक की डिग्री
विवाह (Wife Name)
  • पहला – नवनीता के साथ (1956),
  • दूसरा – ईवा के साथ (1985),
  • तिसरा – ऐक्मा रॉथशील के साथ

अमर्त्य सेन की बायोग्राफी – Amartya Sen Biography in Hindi

Amartya Sen का प्रमुख विषय अर्थशास्त्र था और इसके प्रति उनकी विशेष रूचि थी। अमर्त्य कुमार एक ऐसी अर्थव्यवस्था चाहते थे जिसके आर्थिक लाभ का कुछ हिस्सा गरीबों को भी मिले। अमर्त्य कुमार का झुकाव वामपंथी राजनीति की ओर हो गया।

सन 1943 में बंगाल में जो अकाल पड़ा था, उस अकाल में 25 लाख से भी अधिक लोग मौत के मुंह में समा गए थे। उस कल के पड़ने की एक वजह यह भी थी कि अंग्रेजी सरकार की वितरण प्रणाली कमजोर थी। उस समय विश्व के बहुत से अर्थशास्त्री तरह-तरह की आर्थिक नीतियों को खोज रहे थे।

उनका उद्देश्य विकसित देशों को लाभ पहुंचाना था। उनके अलावा और भी ऐसे बहुत से अर्थशास्त्री थे, जो विकासशील देशों के व्यापारियों की अर्थव्यवस्था को उछालने में लगे थे। अमर्त्य कुमार ने ऐसे ठोस उपाय खोज निकाले, जिनके व्दारा मनुष्य की दरिद्रता और गरीबी से उसे छुटकारा दिलाया जा सकता था।

उन्होंने आगे चलकर विश्व अर्थव्यवस्था की सभी अच्छाइयों और बुराइयों को देखा। इस आधार पर उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला था। विश्व में अरबों ऐसे लोग हैं, जिनका जीवन दुख-दरिद्रता से घिरा है। भारत में ऐसे लोगों की संख्या अधिक है। इतिहास इस बात का गवाह है कि बाहर से आए विदेशी शासकों और स्वदेशी शासकों ने भी आम आदमी की कमर तोड़कर रख  दी है।

आर्थिक मजबूरी उनके कंधों पर बोझ की तरह लदी हुई है। इस बोझ को ढोते-ढोते न जाने कितनी पीढियां बीत  चुकी हैं और आगे न जाने कितनी पीढियां इसके नीचे दबने को विवश थीं। Amartya Sen ने सन 1953 में प्रेसिडेंसी कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

उसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए। वहां कैंब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज में उन्होंने प्रवेश लिया। यहां उन्हें मिखाइल निकल्सन, चार्ल्स फिन्सटिन, लाल जयवर्धने और महबूब अली हक जैसे  साथी मिले। उनमें दो गुट बन गए थे, ट्रिनिटी कॉलेज में मॉर्क्सवादी मारिस डाब, उदारवादी डेनिस रॉबर्टसन और महान अर्थशास्त्री पियरो साफा अपनी सेवाएं दे रहे थे।

वे तीनों महान व्यक्ति अमर्त्य कुमार के लिए वरदान साबित हुए। उन्हीं की रह पर चलकर अमर्त्य कुमार ने अर्थशास्त्र की बारीकियों का बड़ी गहराई से अध्ययन किया। उन्होंने विश्वभर की अर्थव्यवस्थाओं का अध्ययन किया। उन्होंने शोध के लिए ‘डी च्वाइस ऑफ टेक्निक्स’ को अपना विषय चुना।

यह विषय समाजवादी अर्थव्यवस्था से संबंधित था। मॉरीस डाब तथा एक अन्य प्रोफेसर जॉन रॉबिन्सन ने अमर्त्य  कुमार के विषय के प्रति अपनी खुशी जाहिर की और उन्हें सहयोग देने का वचन भी दिया। अमर्त्य कुमार ने उस विषय पर अथक मेहनत करके सभी प्रोफेसरों को आश्चर्य में डाल दिया।

एक वर्ष के भीतर ही उनका शोध कार्य बहुत आगे निकल गया। अत: वे कॉलेज से लंबी छुट्टी लेकर भारत चले आए। यहां श्री ए.के. दासगुप्ता की देख-रेख में उन्होंने अपने शोध कार्य को आगे बढ़ाया। वे भी गरीबोँ की आर्थिक आजादी के प्रबल समर्थक थे और अमर्त्य कुमार जैसा मेधावी शोधकर्ता पाकर खुशी से झूम उठे थे।

सन 1956 में अमर्त्य कुमार को जाधवपुर विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र का प्रवक्ता चुना गया। बाद में उनकी असाधारण अर्थशास्त्र की क्षमता को देखकर उन्हें अर्थशास्त्र विभाग का अध्यक्ष पद भी मिल गया। अमर्त्य कुमार निर्धारित समय से पहले ही अपना शोध पूरा करके इंग्लैंड चले गए। अमर्त्य कुमार ने अपने शोध विषय की पृष्ठभूमि को मजबूत बनाने के लिए दर्शक शास्त्र और तर्कशास्त्र का अध्ययन किया। दर्शन शास्त्र के प्रति भी उनकी गहरी रूचि थी।

सन 1963 में अमर्त्य कुमार का दिल्ली आना हुआ। यहां उन्हें दिल्ली स्कुल ऑफ इकोनॉमिक्स और दिल्ली विश्वविद्यालय में अपनी सेवाएं देने का मौका मिला। दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के छात्रों की रूचि ‘सामाजिक अभिरुचि’ विषय के प्रति अधिक थी। यही विषय अमर्त्य कुमार का भी एक प्रमुख विषय था। इसका संबंध गरीबी, बेरोजगारी, असमानता और आर्थिक संकट से था।

उसके साथ ही वे एक पूस्तक की तैयारी में जुटे हुए थे। उस पूस्तक का नाम ‘कलेक्टिव च्वाइस एण्ड सोशल वेलफेयर’ है। इसका प्रकाशन सन 1970 में हुआ था। इस पूस्तक में ‘सामाजिक अभिरुचि’ के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। अमर्त्य कुमार को जब भारत में जाधवपुर विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग का हेड बनाया गया था, उसी दौरान उन्होंने नवनीता देव के साथ विवाह रचाया था। दोनों में वैचारिक मतभेद उत्पन्न हो गए। अमर्त्य कुमार कभी भारत में रहते तो कभी इंग्लैंड जाते थे।

भारत से इंग्लैंड जाने के बाद वे हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे। पार्ट टाइम में उनका लेखन कार्य भी चलता रहा। इंग्लैंड में रहकर वे अपनी पत्नी की भावनाओं की कद्र नहीं कर सके। अंत में दोनों में इतनी कटुता हो गई कि उनके बिच तलाक हो गया। नवनीत के दो बच्चे हैं – ‘बेटी का नाम अंतरा (Amartya Sen daughter) है और बेटे का नंदन’।

सन 1971 में वे एक अंग्रेज लड़की ईवा कोर्लोनी के संपर्क में आए, अमर्त्य कुमार से उनके विचार मिलते – जुलते थे। ईवा के विचारों और सामाजिक भावनाओं से प्रभावित होकर अमर्त्य कुमार ने उनके साथ विवाह कर लिया। गरीबों की आर्थिक आजादी के लिए विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं की खोज करना ही अमर्त्य कुमार का मिशन था। लेकिन ईवा आजीवन उनका साथ न निभा सकीं। ईवा ने एक पुत्री इंदिरानी और एक पुत्र कबीर को जन्म दिया। उसके बाद उनका कैंसर की बीमारी से सन 1985 में निधन हुआ।

बाद अमर्त्य कुमार अपने बच्चों को लेकर अमेरिका गए। वे ‘यूनिवर्सिटी ऑफ टैक्सास, हार्वर्ड, स्टेनफोर्ड और प्रिंसटन’ जैसे कई विश्वविद्यालयों को अपनी सेवाएं देने लगे। अमर्त्य कुमार अपने बच्चें पर विशेष ध्यान रखते थे। अमर्त्य कुमार अमेरिका में रहकर भी इंग्लैंड के कई विश्वविद्यालयों और संस्थानों से जुड़े रहे। जब उन्हें कोई मानवतावादी अर्थशास्त्री कहता है तो उन्हें बहुत खुशी होती है।

अमर्त्य कुमार ने अर्थशास्त्र पर लगभग 215 शोध लेख तैयार किए। उन्होंने अर्थशास्त्र के अपने शोध पर 24 पुस्तकें भी तैयार कीं। वे पुस्तकें विश्वभर में बहुत लोकप्रिय हुईं। समाजवाद के क्षेत्र में उठाए गए उनके ठोस क़दमों का विश्व के अर्थशात्रियों ने जोरदार स्वागत किया था।

अमर्त्य कुमार देश-विदेश के समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में अपने लेख भी लिखते रहे। सन 1982 में ‘च्वाइस वेलफेयर मेजरमेंट एन्ड रिसोर्सेज’ नामक उनकी एक पुस्तक प्रकाशित हुई। उन्होंने भारत में रह रहे स्त्री-पुरुषों की कार्य क्षमता और लिंग के आधार पर आर्थिक व् औदयोगिक क्षेत्रों में किए जाने वाले भेद-भाव पर कई आंकड़ों का अध्ययन भी किया था। गरीबी और अकाल पर किया गया अमर्त्य कुमार का आर्थिक विश्लेषण अंतराष्ट्रीय स्तर पर खूब सहारा गया। सन 1998 में उनका नाम नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया।

अमर्त्य कुमार को जब इसकी सूचना मिली तो उन्होंने अपनी मां के पास फोन किया, उनकी मां को यकीन ही नहीं हुआ कि उनके बेटे को नोबेल पुरस्कार मिलने जा रहा है, देश-विदेश के समाचार पत्रों में नोबेल पुरस्कार के लिए जब उनके नाम की विधिवत घोषणा की गई, तब उनकी मां को यकीन हुआ।

अमर्त्य कुमार ने ‘नोबेल पुरस्कार’ में मिली धनराशि से एक ट्रस्ट बनाया और उस धनराशि का उपयोग भारत के गरीब विद्यार्थियों को विदेश में शिक्षा प्राप्त करने के लिए करने पर बल दिया। नोबेल पुरस्कार में मिली पांच करोड़ की धनराशि को अमर्त्य कुमार ने अपने व्यक्तिगत उपयोग में बिलकुल नहीं लगाया। इसके लिए देश-विदेश में उनके नेक विचारों की खूब सराहना की गई।

अमर्त्य कुमार को कल्याणकारी अर्थव्यवस्था का जनक कहा जाता है और Best Economist India। उन्होंने लोक कल्याणकारी अर्थव्यवस्था का खाका विश्व के समक्ष प्रस्तुत कर दिया है। अमर्त्य कुमार पहले ऐसे अर्थशास्त्री हैं, जिनका ध्यान गरीबों को गरीबी से मुक्त करके पर गया है। उनका मानना है की भारत में गरीबी का मुख्य कारण शिक्षा का अभाव और साधनहीनता है।

उन्हें अपने भाग्य को कोसने के बजाय कर्म करने पर विशेष ध्यान देना चाहिए। अमर्त्य कुमार का मानना है की विश्व में गरीबी का मूल कारण शिक्षा का पिछड़ापन है। धन किस प्रकार कमाया जाए, इसका ज्ञान भी हमें शिक्षा से ही होता है। शिक्षा से अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाया जाता है। शिक्षित व्यक्ति अंधविश्वास के चक्कर में पड़कर धर्म के नाम पर कभी गुमराह नहीं होता।

शुद्ध आचरण और शुद्ध व्यवहार करने वाला व्यक्ति खुद को अज्ञानता के खतरे से बचाता है और अपने आर्थिक स्तर को ऊंचा उठाने के लिए तरह-तरह के रास्ते तलाशता है। इस आधार पर सरकार को शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिए। ताकि शिक्षित समाज बने और देश का विकास हो। लोग उनसे आज भी अर्थशास्त्र पर नए-नए शोध की उम्मीद करते हैं। आशा है की वे अपने चाहने वालोँ की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे।

अमर्त्य  सेन पूस्तक – Amartya Sen Books

  • 1970 में “कलेक्टिव च्वाइस एण्ड सोशल वेलफेयर”।
  • 1982 में च्वाइस वेलफेयर मेजरमेंट एण्ड रिसोर्सेज।
  • लगभग 24 पुस्तके।

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