अजमेर शरीफ़ दरगाह का इतिहास | Ajmer Sharif Dargah History In Hindi

Ajmer Sharif Dargah in Hindi

भारत देश एक पूण्यभूमि हैं, यहाँ ऐसे कई तीर्थ स्थान है जहा हर धर्म के लोग आस्था के साथ जाते है ऐसा ही एक तीर्थ स्थान है अजमेर शरीफ़ दरगाह – Ajmer Sharif Dargah, कहा जाता है की Ajmer Dargah में आप जो भी मन्नत मागते हो वो पूरी हो जाती है। यह दरगाह ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का दरगाह है।

अजमेर शरीफ़ दरगाह का इतिहास – Ajmer Sharif Dargah History In Hindi

Ajmer Sharif Dargah

कहां स्थित है (Ajmer Sharif Dargah Location) अजमेर, राजस्थान
मजार (Ajmer Sharif Mazar) ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की कब्र
प्रसिद्धि पवित्र तीर्थ स्थल, लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र

राजस्थान राज्य के अजमेर में स्थित ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। यह दरगाह, पिंकसिटी जयपुर से करीब 135 किलोमीटर दूर, चारों तरफ अरावली की पहाड़ियों से घिरे अजमेर शहर में स्थित है। अजमेर शरीफ की दरगाह के नाम से यह पूरे देश में प्रसिद्ध है।

इस दरगाह से सभी धर्मों के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। इसे सर्वधर्म सद्भाव की अदभुत मिसाल भी माना जाता है। ख्वाजा साहब की दरगाह में हर मजहब के लोग अपना मत्था टेकने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी ख्वाजा के दर पर आता है कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता है, यहां आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी होती है।

ख्वाजा की मजार पर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, बीजेपी के दिग्गत नेता स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी, देश की पहली महिला पीएम इंदिरा गांधी, बराक ओबामा समेत कई नामचीन और मशहूर शख्सियतों ने अपना मत्था टेका है। इसके साथ ही  ख्वाजा के दरबार में अक्सर बड़े-बड़े राजनेता एवं सेलिब्रिटीज आते रहते हैं  और अपनी अकीदत के फूल पेश करते हैं एवं आस्था की चादर चढ़ाते हैं।

ऐसा माना जाता है, लाखों धर्मों की आस्था से जुड़ी अजमेर शरीफ की दरगाह का निर्माण सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने करवाया था इसके बाद मुगल सम्राट हुमायूं समेत कई मुगल शासकों ने इसका विकास करवाया। इस दरगाह में कोई भी सिर खोल कर नहीं जा सकता है, बाल ढककर ही ख्वाजा की मजार पर मत्था टेकने की अनुमति है, आइए जानते हैं, अजमेर शरीफ का इतिहास, इसकी बनावट, नियम एवं इससे जुड़े कुछ अनसुने एवं रोचक तथ्यों के बारे में –

ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह का इतिहास – Moinuddin Chishti History

अजमेर शरीफ, ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का बेहद भव्य एवं आर्कषक मकबरा है। इसे ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह के नाम से भी जाना जाता है। आपको बता दें कि ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती एक प्रसिद्ध सूफी संत होने के साथ-साथ इस्लामिक विद्धान और दार्शनिक थे।

उनकी ख्याति इस्लाम के महान उपदेशक के रुप में भी विश्व भर में फैली हुई थी। उन्होंने अपने महान विचारों और शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया एवं उन्हें भारत में इस्लाम का संस्थापक भी माना जाता था। उन्हें ख्वाजा गरीब नवाज के नाम से भी जाना जाता था। उनकी अद्भुत एवं चमत्कारी शक्तियों की वजह से वे मुगल बादशाहों के बीच भी काफी लोकप्रिय हो गए थे।

उन्होंने अपने गुरु उस्मान हरूनी से मुस्लिम धर्म की शिक्षा ली एवं इसके बाद उन्होंने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कई यात्राएं की एवं अपने महान उपदेश दिए। ख्वाजा गरीब नवाज ने पैदल ही हज यात्रा की थी।

वहीं ऐसा माना जाता है कि करीब 1192 से 1195 के बीच में वे मदीना से भारत यात्रा पर आए थे, वे भारत में मुहम्मद से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे, ख्वाजा साहब भारत आने के बाद शुरुआत में थोड़े दिन दिल्ली रुके और फिर लाहौर चले गए, एवं अंत में वे मुइज्ज़ अल- दिन मुहम्मद के साथ अजमेर आए और यहां की वास्तविकता से काफी प्रभावित हुए। इसके बाद उन्होंने अजमेर रहने का ही फैसला लिया।

यहां उन्हें काफी सम्मान भी मिला था। ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के पास कई चमत्कारी शक्तियां थी, जिसकी वजह से लोगों का इनके प्रति काफी विश्वास था। ख्वाजा साहब ने मुस्लिम और हिन्दुओं के बीच में भेदभाव को खत्म करने एवं मिलजुल कर रहने का संदेश दिया।

इस सूफी संत के महान उपदेशों और शिक्षाओं के बड़े-ब़ड़े मुगल बादशाह भी कायल थे। उन्होंने लोगों को कठिन परिस्थितियों में भी खुश रहना, अनुशासित रहना, सभी धर्मों का आदर करना, गरीबो, जरुरतमंदों की सहायता करना, आपस में प्रेम करना समेत कई महान उपदेश दिए।

उनके महान उपदेश और शिक्षाओं ने लोगों पर गहरा प्रभाव छोड़ा और वे उनके मुरीद हो गए। इस महान सूफी संत ने ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने करीब 114 साल की उम्र में ईश्वर की एकांत में प्रार्थना करने के लिए खुद को करीब 6 दिन तक एक कमरे में बंद कर लिया था और अपने नश्वर शरीर को अजमेर में ही त्याग दिया।

वहीं जहां उन्होंने अपनी देह त्यागी थी, वहीं ख्वाजा साहब का मकबरा बना दिया गया, जो कि अजमेर शरीफ की दरगाह, ख्वाजा मुईनुउद्दीन चिश्वती की दरगाह और ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के रुप में मशहूर है।

अजमेर शरीफ की दरगाह का निर्माण एवं बनावट – Ajmer Sharif Dargah Architecture

इतिहासकारों की माने तो  सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने करीब 1465  में अजमेर शरीफ की दरगाह का निर्माण करवाया था। वहीं बाद में मुगल सम्राट हुंमायूं, अकबर, शाहजहां और जहांगीर ने इस दरगाह का जमकर विकास करवाया। इसके साथ ही यहां कई संरचनाओं एवं मस्जिद का निर्माण भी किया गया।

इस दरगाह में प्रवेश के लिए चारों तरफ से बेहद भव्य एवं आर्कषक दरवाजे बनाए गए हैं जिसमें निजाम गेट, जन्नती दरवाजा, नक्कारखाना (शाहजहानी गेट), बुलंद दरावजा शामिल हैं। इसके अलावा ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के अंदर  बेहद सुंदर शाह जहानी मस्जिद भी बनी हुई है।

यह मस्जिद मुगलकालीन वास्तुकला की एक नायाब नमूना मानी जातीहै। इस आर्कषक मस्जिद की इमारत में अल्लाह के करीब 99 पवित्र नामों के 33 खूबसूरत छंद लिखे गए हैं। इसके अलावा यहां शफाखाना, अकबरी मस्जिद भी हैं, इस मस्जिद में वर्तमान में मुस्लिम समुदाय के बच्चों को इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रंथ कुरान की शिक्षा भी दी जाती है।

अजमेर शरीफ दरगाह की प्रमुख दर्शनीय स्मारक – Ajmer Sharif Tourist Place

  • निजाम गेट – Nizam Gate Ajmer

यह अजमेर शरीफ की दरगाह में बने चारों प्रमुख दरवाजों में से सबसे ज्यादा खूबसूत और आर्कषक दरवाजा है, जो कि मुख्य बाजार की तरफ है।

इस भव्य दरवाजे का निर्माण हैदराबाद डेक्कन के मीर उस्मान अली खां द्वारा करवाया गया था। इस विशाल गेट की चौड़ाई करीब 24 फीट एवं ऊंचाई 70 फीट है।

  • दरवाजा नक्कारखाना – Darwaja Nakkarkhana

ख्वाजा साहब की दरगाह में बने चार प्रमुख दरवाजों में नक्कारखाना भी आता है, जिसका निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां ने करवाया था। 

यह प्रचीनतम वास्तुकला का इस्तेमाल कर बनाया गया है। इस भव्य गेट के ऊपर शाही जमाने का नक्कारखाना बना हुआ है। यह दरवाजा नक्करखाना शाहजहांनी के नाम से भी प्रसिद्ध है।

  • जन्नती दरवाजा – Jannati Darwaza

अजमेर शरीफ की दरगाह में पश्चिम की तरफ एक बेहद खूबसूरत चांदी की पॉलिश किया हुआ भव्य दरवाजा है, जो कि जन्नती दरवाजा के नाम से प्रसिद्ध है।

दरगाह के इस दरवाजे को साल में सिर्फ 4 बार भी विशेष मौकों पर खोला जाता है। आपको बता दें कि जन्नती दरवाजा, ख्वाजा शवाब की पीर के उर्स पर, वार्षिक उर्स के वक्त एवं दो बार ईद पर खोला जाता है।

  • बुलंद दरवाजा – Buland Darwaza Ajmer

बुलंद दरवाजा, अजमेर शरीफ की दरगाह में बने प्रमुख चारों दरवाजों में से एक है, यह एक भव्य और विशाल गेट है । जिसका निर्माण महमूद खिलजी और उनके उत्तराधिकारियों द्वारा करवाया गया है।

उर्स महोत्सव की शुरुआत से पहले इस भव्य गेट के ऊपर ध्वज फहराया जाता है। यह दरवाजा, अजमेर शरीफ के सभी दरवाजों में सबसे ऊंचा है, इसलिए इसे बुलंद दरवाजा कहा जाता है।

  • चार यार की मजार – Chaar Yaar Mazar Ajmer

अजमेर शरीफ की दरगाह में जामा मस्जिद के पास एक काफी बड़ा कब्रिस्तान बना हुआ है, जहाम कई बड़े-बड़े सूफियों, फकीरों, आलिमों और फाजिलों की कब्र बनी हुई हैं।

वहीं इस कब्रिस्तान में उन चार संतों की भी कब्रे बनी हुई हैं, जो कि ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के साथ भारत यात्रा पर आए थे, इसलिए इसे चार यार की मजार भी कहते हैं। यहां हर साल भव्य मेला लगता है, जिसे देखने दूर-दूर से सैलानी आते हैं।

  • अकबरी मस्जिद – Akbari Masjid

अकबरी मस्जिद का निर्माण  मुगल सम्राट अकबर ने उस वक्त करवाया था, जब जहांगीर के रुप में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी।

दरअसल,मुगल सम्राट अकबरने ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर पुत्र रत्न की दुआ मांगी थी, वहीं जहांगीर के जन्म के बाद वे आगरा से करीब 437 किमी. दूर पैदल चलकर नंगे पैर इस दरगाह पर आए थे और जियारत पेश की थी एवं उसी वक्त अकबर ने इस मस्जिद के निर्माण का आदेश दिया था।

आज के समय इस मस्जिद में इस्लाम समुदाय के बच्चों को कुरान की तामिल दी जाती है।

  • सेहन का चिराग – Sehan Ka Chirag

अजमेर शरीफ की दरगाह के इस सबसे ऊंचे बुलंद दरवाजे के थोड़ा सा आगे बढऩे पर सामने की तरफ एक एक गुम्बद की तरह सुंदर सी छतरी है। इसमें एक काफी पुराने प्रकार का पीतल का चिराग रखा है। इसको सेहन का चिराग कहते हैं।

  • अजमेर शऱीफ में रखे दो बड़े-बड़े कढ़ाहे (देग):

अजमेर शरीफ की प्रसिद्ध दरगाह के अंदर दो काफी बड़े-बड़े कढ़ाहे रखे गए हैं,चितौड़गढ़ से युद्ध जीतने के बाद मुगल सम्राट अकबर ने इसे बड़े कढ़ाहे को ददान किया था, जबकि जहांगीर द्धारा छोटा कढाहा भेंट किया गया था।

आपको बता दें कि बड़े कढ़ाहे में एक बार में करीब 31.8 किलो चावल पक सकते हैं, जबकि छोटे कढ़ाहे में 12.7 किलो चावल पकाए जा सकते हैं। कढ़ाहे में रात में खाना बनाया जाता है, और रोज सुबह प्रसाद के रुप में यहां आने वाले भक्तों को बांटा जाता है।

  • महफिलखाना या फिर शामखाना:

अजमेर शरीफ के हॉल महफि़ल-ए-समां या महफिलखाना में सूफी गायकों के द्धारा रोजाना नमाज के बाद बेहद खूबसूरत दिल छू लेने वाली कव्वाली गाईं जाती हैं, जिसका यहां आने वाले भक्त लुफ्त उठा सकते हैं। इसके अलावा ख्वाजा गरीब नवाज की इस दरगाह में सनडली मस्जिद, ऑलिया मस्जिद, बाबाफिरिद का चिली, बीबी हाफिज जमाल की मजार समेत अन्य स्मारक भी बने हुए हैं।

इसके साथ ही इस दरगाह के अंदर एक बेहद शानदार नक्काशी किया हुआ चांदी का कटघरा है, जिसके अंदर ख्वाजा मुईउद्दीन चिश्ती की भव्य मजार बनी हुई है। इस चांदी के कटघरा का निर्माण  जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने  करवाया था।

बता दें कि दरगाह के अंदर बना जहालरा ख्वाजा गरीब नवाज के समय से हैं, जो कि पहले पानी का प्रमुख स्त्रोत होता था। वहीं वर्तमान में इसका इस्तेमाल दरगार के पवित्र कामों के लिए किया जाता है।

अजमेर शरीफ दरगाह के नियम – Ajmer Sharif Dargah Rules

  • ख्वाजा की मजार पर कोई भी व्यक्ति सिर खोलकर नहीं जा सकता है।
  • मजार के दर्शन के लिए किसी भी तरह के बैग या सामान ले जाने की सख्त मनाही है। इसके साथ ही कैमरा ले जाने की भी रोक है।
  • ख्वाजा के दर पर बिना हाथ-पैर साफ किए प्रवेश करने की अनुमति नहीं है, यहां आने वाले भक्तों को पहले यहां मौजूद जहालरा में अपने हाथ-पैर साफ करने पड़ते हैं।

अजमेर शरीफ की दरगाह से जुड़ी कुछ रोचक एवं दिलचस्प बातें – Ajmer Sharif Dargah Miracle

  • अजमेर शरीफ की दरगाह में प्रवेश करने वाला पहला शख्स मोहम्मद बिन तुगलक हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती था, जिसने 1332 ईसवी में इस पवित्र तीर्थ स्थल की यात्रा की थी।
  • निजाम सिक्का नामक एक साधारण शख्स ने एक बार मुगल सम्राट हुमायूं को बचाया था। जिसके बाद इनाम के तौर पर उसे यहां का एक दिन का नवाब भी घोषित किया गया था। वहीं ख्वाजा गरीब नवाज की इस दरगाह के अंदर निजाम सिक्का का मकबरा भी बना हुआ है।
  • अजमेर शरीफ की दरगाह में रोजना शाम की नवाज से 15 मिनट पहले दैनिक पूजा के रूप में दरगाह के लोगों द्वारा दीपक जलाते हुए  ड्रम की धुन पर फारसी छंद  गाये जाते हैं। इस छंद गायन के बाद ये दीपक मीनार के चारों तरफ रखे जाते हैं। दरगाह में इस रिवाज को को ‘रोशनी’ कहते हैं।
  • ख्वाजा मोइउद्दीन चिश्ती की पुण्यतिथि पर मनाए जाने वाले उर्स के दौरान अल्लाह के मुरीदों के द्वारा गरम जलते कढ़ाहे के अंदर खड़े होकर भक्तों को खाना बांटा जाता है।
  • भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह, भारत सरकार द्धारा दरगाह ख्वाजा साहेब एक्ट 1955 के तहत मान्यता प्राप्त है। लाखों लोगों की आस्था से जुड़ी इस दरगाह के लिए भारत सरकार द्धारा एक समिति भी बनाई गई है, जो की इस दरगाह में चढ़ने वाले चढ़ावे का लेखा-जोखा रखती है एवं दरगाह की व्यवस्थाओं का ध्यान रखती है। हालांकि, इस दरगाह की अंदर की सभी व्यवस्थाएं खादिम देखते हैं और भक्तों की सभी सुख-सुविधाओं का भी पूरा ध्यान रखते हैं।

अजमेर शरीफ में उर्स – Urs Ajmer Sharif

अजमेर शरीफ में सूफी संत मोईउद्दीन चिश्ती की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में उर्स के रूप में 6 दिन का वार्षिक उत्सव बड़े हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया जाता है। इस उर्स की शुरुआत बुलंद दरवाजा पर ध्वज फहराने से होती है। उर्स का पर्व रजब के महीने में चांद दिखने के बाद मनाया जाता है।

ऐसी मान्यता है कि  ख्वाजा साहब ने अपने जीवन के अंतिम 6 दिन खुद को एक कमरे में बंद कर अल्लाह की इबादत की थी और अपना शरीर छोड़ दिया था। इसलिए उर्स का पर्व 6 दिन तक चलता है। वहीं उर्स के दौरान अजमेर शरीफ के रोज किए जाने वाले प्रोग्राम में बदलाव किया जाता है।

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101 thoughts on “अजमेर शरीफ़ दरगाह का इतिहास | Ajmer Sharif Dargah History In Hindi”

  1. बहुत ही सुकून मिलता हैं आप की मजार है पर…… दिल बोलता हैं एक पल और ठहरा जा यही

  2. pradyuumn Srivastav

    Mera yarr hai khwaj. mera pyar hai khwaja. bada sukoon mila tumse Millar kabhii mujhse Milne aao to Meri bhi bat bane.

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