Ramaswamy Venkataraman – रामास्वामी वेंकटरमण एक भारतीय वकील, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे उन्होंने भारत की यूनियन मिनिस्टर और भारत के आठवे राष्ट्रपति बने रहते हुए सेवा की थी।
रामास्वामी वेंकटरमण की जीवनी – Ramaswamy Venkataraman Biography In Hindi
वेंकटरमण का जन्म तमिलनाडु के तंजौर जिले में पत्तुकोत्तई ग्राम के पास राजमदम में हुआ था। उन्होंने पत्तुकोत्तई की सरकारी बॉयज हायर सेकेंडरी स्कूल से प्राथमिक और ग्रेजुएशन के पहले की पढाई उन्होंने तिरुचिरापल्ली के नेशनल कॉलेज से प्राप्त की थी।
स्थानिक जगहों पर ही उन्होंने शिक्षा प्राप्त की और मद्रास शहर में वेंकटरमण ने मद्रास के लोयोला कॉलेज से अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद मद्रास के लॉ कॉलेज से वे लॉ के लिए क्वालीफाई किया। 1935 में वेंकटरमण ने खुद को मद्रास हाई कोर्ट और 1951 में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया।
लॉ का अभ्यास करते समय वेंकटरमण ने भारतीय स्वतंत्रता अभियान में भाग लेने के लिए खुद को ब्रिटेन कोलोनियल सुब्जूगेशन से खुद को निकाला। इसके बाद उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल होकर ब्रिटिश सरकार का विरोध किया और 1942 के भारत छोड़ अभियान में भी वे शामिल हुए। इस समय वेंकटरमण की लॉ पढने की इच्छा बढ़ते लगी थी।
1946 में जब ब्रिटिश ताकतों का भारत में स्थानांतरण हो रहा था, तब भारत सरकार ने उन्हें मलाया और सिंगापूर भेजे जाने वाले वकीलों में शामिल किया था।
1947 से 1950 में वेंकटरमण ने मद्रास प्रोविंशियल बार फेडरेशन के सेक्रेटरी बने रहे हुए सेवा की थी।
राजनीतिक करियर:
लॉ और ट्रेड कार्यो ने समाज में वेंकटरमण की पहचान और बढाई। वे उस घटक असेंबली के भी सदस्य थे जिन्होंने भारतीय संविधान की रचना की थी।
1950 में वे मुक्त भारत प्रोविजनल संसद (1950-1952) और पहली संसद (1952-1957) में चुने गये थे। उनके वैधानिक कार्यकाल के समय, वेंकटरमण 1952 के अंतर्राष्ट्रीय मजदूरो की मेटल ट्रेड कमिटी में मजदूरो के दूत बनकर उपस्थित थे।
न्यूज़ीलैण्ड में आयोजित कामनवेल्थ पार्लिमेंटरी कांफ्रेंस में वे भारतीय संसद दूतो के सदस्य भी थे। इसके साथ ही 1953 से 1954 के बीच वे कांग्रेस संसद पार्टी के सेक्रेटरी भी थे।
1957 में पुनः उनकी नियुक्ती संसद भवन में की गयी, वेंकटरमण ने इसके बाद मद्रास राज्य सरकार में मिनिस्टर के पद पर रहने के लिए लोक सभा की सीट से इस्तीफा दे दिया था। वहाँ रहते हुए वेंकटरमण ने उद्योग, मजदुर, सहयोग, पॉवर, यातायात और कमर्शियल टैक्स जैसे विभागों को 1957 से 1967 तक संभाला था। इस समय में वे उप्पर हाउस, विशेषतः मद्रास वैधानिक कौंसिल के भी लीडर थे।
सम्मान और उपलब्धियाँ:
वेंकटरमण को मद्रास यूनिवर्सिटी ने डॉक्टरेट ऑफ़ लॉ की उपाधि से सम्मानित किया है और साथ ही नागार्जुन यूनिवर्सिटी ने भी उन्हें डॉक्टरेट ऑफ़ लॉ की उपाधि से सम्मानित किया था। मद्रास मेडिकल कॉलेज के वे भूतपूर्व सम्माननीय सदस्य है और यूनिवर्सिटी ऑफ़ रूरकी में वे सामाजिक विज्ञान के डॉक्टर भी थे।
इसके बाद बुर्द्वान यूनिवर्सिटी में उन्हें डॉक्टर ऑफ़ लॉ की उपाधि से सम्मानित किया गया था। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की वजह से उन्हें ताम्र पत्र से भी सम्मानित किया गया था।
UN एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में प्रेसिडेंट के रूप में काम करने की वजह से यूनाइटेड नेशन के सेक्रेटरी जनरल ने उन्हें यादगार पुरस्कारों से सम्मानित भी किया था। कांचीपुरम के शंकराचार्य ने उन्हें “सत सेवा रत्न” के नाम का शीर्षक भी दिया था। वे कांची के परमाचार्य के भक्त थे।
बीमारी और मृत्यु:
12 जनवरी 2009 को वेंकटरमण को आर्मी रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल में उरोसेप्सिस की वजह से भर्ती किया गया था। 20 जनवरी को उनकी अवस्था और भी ज्यादा गंभीर होने लगी थी, इसकी वजन उनके शरीर में ब्लड प्रेशर की कमी होना था।
और अंततः 27 जनवरी 2009 को दोपहर 2:30 बजे नयी दिल्ली के आर्मी रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल में ऑर्गन फेलियर की वजह से 98 साल की आयु में उनका देहांत हो गया।
गणतंत्र दिवस के दुसरे दिन उनकी मृत्यु हुई थी और इसी वजह से भारत के राष्ट्रपति ने उनके सम्मान में कुछ कार्यक्रमों को रद्द भी कर दिया था। अंत में पुरे सम्मान के साथ राज घाट के पास एकता स्थल में पुरे सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।
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