Bahadur Shah Zafar History in Hindi
बहादुर शाह जफर आखिरी मुगल सम्राट था, जिसने भारत पर साल 1837 से 1857 में आजादी के पहले स्वतंत्रता संग्राम के समय तक शासन किया था। उसका शासनकाल काफी संकट भरा रहा है, जब वह मुगल साम्राज्य की गद्दी पर बैठा था, उस समय तक मुगलों की शक्तियां कमजोर पड़ने लगीं थी और भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना प्रभुत्व जमा लिया था।
साथ ही अंग्रेजों की भारत में नींव मजबूत होती जा रही थी। वहीं बहादुर शाह जफर को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के द्धारा दी गई पेंशन से गुजारा करना पड़ता था। वह महज एक नाममात्र का शासक था। हालांकि, 1857 में हुए विद्रोह में बहादुर शाह जफर ने हिन्दुस्तान से अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए विरोद्रियों और क्रांतिकारियों का एक सम्राट के रुप में साथ दिया और हिन्दू-मुस्लिम को एकजुट कर भारत की एकता की शक्ति को प्रमाणित किया।
हालांकि इस लड़ाई में उन्हें अंग्रेजों से पराजय का सामना करना पड़ा था। इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें गिफ्तार कर लिया गया था और रंगून निर्वासित कर दिया था, जहां उन्होंने अपनी जिंदगी की आखिरी सांस ली थी। वहीं बहादुर शाह जफर के शासनकाल के दौरान उर्दू शायरी का काफी विकास हुआ। वे खुद भी एक बेहद अच्छे शायर और कवि थे, जिनकी उर्दू शायरी और हिन्दुस्तान से उनकी मोहब्बत का जिक्र आज तक होता है।
उन्होंने साहित्यिक क्षेत्र में भी अपना काफी योगदान दिया था। वह राजनेता और कवि होने के साथ-साथ संगीतकार एवं सौंदर्यानुरागी व्यक्ति थे। उन्हें सूफी संत की उपाधि भी दी गई थी, आइए जानते हैं बहादुर शाह जफर के बारे में कुछ खास बातें-
आखिरी मुगल शासक बहादुर शाह जफर – Bahadur Shah Zafar History In Hindi
बहादुर शाह जफर के बारे में एक नजर में – Bahadur Shah Zafar Information
पूरा नाम (Name) | मिर्जा अबू ज़फ़र सिराजुद्दीन महम्मद बहादुर शाह ज़ाफ़र |
जन्म (Birthday) | 24 अक्टूबर सन् 1775, दिल्ली |
मृत्यु (Death) | 7 नवंबर, 1862, रंगून, बर्मा |
पिता (Father Name) | अकबर शाह द्वितीय |
माता (Mother Name) | लालबाई |
पत्नियां (Wife Name) |
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पुत्र (Childrens |
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बहादुर शाह जफर का जन्म, शिक्षा और प्रारंभिक जीवन – Bahadur Shah Zafar Biography
बादशाह शाह जफर 24 अक्टूबर, 1775 में हिन्दू महिला लाल बाई के गर्भ से जन्में थे। उन्हें बहादुर शाह द्धितीय के नाम से भी जाना जाता है। उन्होनें शुरुआत में उर्दू, अरेबिक और पर्शियन की शिक्षा भी ली थी। इसके साथ ही उन्हें घुड़सवारी, तीरंदाजी आदि का भी ज्ञान था। बचपन से ही उनका रुझान कविताओं, साहित्य, सूफी, संगीत आदि में था। वे बचपन में इब्राहिम जोक और असद उल्लाह खान गालिब की कविताएं पढ़ा करते थे।
बहादुर शाह का विवाह – Bahadur Shah Zafar Wife
बहादुरशाह की 4 शादियां हुईं थी, जिनमें से उनकी सबसे प्रिय पत्नी जीनत महल थी, जिनसे उनकी शादी नवंबर, 1840 में हुई थी।
बहादुरशाह का शासनकाल – Bahadur Shah Zafar Reign
उनके पिता अकबर शाह द्धितीय की मौत के बाद सन् 1837 में बहादुरशाह जफर मुगल सिंहासन की गद्दी पर बैठे, लेकिन जब उन्हें मुगलों की सत्ता मिली, उस समय तक मुगलों की शक्ति काफी कमजोर पड़ गई थी, लाल किले के बाहर उनका कोई शासन नहीं बचा था, दिल्ली सल्तनत के पास शासन करने के लिए सिर्फ दिल्ली यानि शाहजहांबाद ही बचा था।
हालांकि, उनके पिता अकबर शाह द्वितीय उन्हें अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाना चाहते थे, वे अपने दूसरे बेटे मिर्जा जहांगीर को सत्ता सौंपना चाहते थे, लेकिन मिर्जा जहांगीर का उस समय अंग्रेजों के साथ काफी संघर्ष छिड गया था, जिसके चलते उन्हें बहादुर शाह जफर को ही मुगल गद्दी सौंपनी पड़ी थी। सौंदर्यानुरागी बहादुर शाह जफर एक अयोग्य शासक थे, जिनकी राजनीति में कोई खास रुचि नहीं थी।
उनकी महत्वकांक्षा को अंग्रेज भी समझ चुके थे, इसलिए वे भी बहादुर शाह से कोई खतरा नहीं मानते थे। हालांकि उनके शासनकाल में संगीत और साहित्य को काफी बढ़ावा मिला था। इसके साथ ही उनके शासनकाल में सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार किया गया। वे हिन्दुओं की धार्मिक भावना का काफी सम्मान करते थे।
1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम के नायक के रुप में बहादुर शाह जफर – Bahadur Shah Zafar as Freedom Fighter
1857 में जब ब्रिटिश शासकों ने अपनी दमनकारी नीतियों से भारतीयों की नाक पर दम कर दिया था, तब अंग्रेजों के बढ़ते हुए अत्याचारों के खिलाफ और भारत से खदेड़ने के लिए कुछ महान क्रांतिकारियों, विद्रोहियों और राजा-महाराजाओं ने उनके खिलाफ विद्रोह शुरु कर दिया था।
उस समय राजा-महाराजाओं ने अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को अपना सम्राट माना और उन्हें क्रांति का नेता घोषित कर दिया था, क्योंकि उस दौरान एक ऐसे केन्द्रीय नेतृत्व वाले शासक की जरूरत थी, जो हिन्दू-मुस्लिमों को एकजुट कर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ सके, जो कि बहादुर शाह जफर भलीभांति कर सकते थे।
इस दौरान बहादुर शाह जफर ने एक नायक की तरह क्रांतिकारियों का पूरा सहयोग दिया एवं अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया। इस लड़ाई में उन्होंने अपने बेटे मिर्जा मुगल को कमांडर इन चीफ भी बनाया था।
हालांकि, 82 साल के जफर अंग्रेजों से हुई इस जंग में हार गए थे और इस हार के बाद उन्हें और उनके परिवार के कई सदस्यों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था।
बहादुर शाह जफर की मृत्यु – Bahadur Shah Zafar Death
वहीं अंत में उन्हें राजद्रोह के आरोप में भारत से निकालकर रंगून भेज दिया गया, जहां उन्होंने 7 नवंबर, 1862 को अपने जिंदगी की अंतिम सांस ली। इस तरह उनकी मौत के साथ भारत में करीब 300 साल तक शासन कर चुके मुगल साम्राज्य का भी अंत हो गया और फिर भारत को 1947 में आजादी से पहले तक ब्रिटिशों की गुलामी का दंश झेलना पड़ा।
बहादुर शाह जफर की मौत के बाद उनके शव को रंगून के श्वेडागोन पगोडा के पास दफनाया गया। फिर इसके कई सालों बाद इसी स्थान पर उनकी दरगाह बनाई गई। वहीं उन्हें लोग एक सूफी संत के तौर पर मानते थे, इसलिए आज भी उनकी कब्र पर सभी धर्मों के लोग श्रद्धा के साथ फूल चढ़ाते हैं।
एक अच्छे शायर और कवि थे अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर – Bahadur Shah Zafar as a Poet
बहादुरशाह जफर एक राजनेता होने के साथ-साथ एक अच्छे कवि थे। उनकी साहित्यिक प्रतिभा काबिल-ए-तारीफ है। उनकी शेरो-शायरी के कई बड़े-बड़े दिग्गज कवि भी मुरीद थे। उनके द्धारा लिखी गई गजल और शायरी आज भी मुशायरों में सुनी जाती हैं।
उनके दरबार के दो मुख्य शायर मोहम्मद गालिब और जौक आज भी शायरों के लिए आदर्श माने जाते हैं। बहादुर शाह जफर खुद भी एक बेहतरीन शायर थे, उनकी ज्यादातर गजलें जिंदगी की कठोर सच्चाई और मोहब्बत पर होती थी।
उन्होंने अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों में रंगून में बहुत सारी गजलें लिखीं। गौर करने वाली बात तो यह है कि, कैदी के तौर पर उन्हें गजल लिखने के लिए कलम तक नहीं दी गई थी, लेकिन उन्होंने जेल में जली हुई तीलियों से दीवार पर गजलें लिखी थीं।
बहादुर शाह जफर एक महत्वकांक्षी शासक तो नहीं थे, लेकिन वे काफी दयालु और दानी स्वभाव के व्यक्ति थे, जो कि सभी धर्मों का आदर करते थे। 1857 में आजादी की पहली लडा़ई में उनके द्धारा दिए गए योगदान के लिए उनके नाम पर 1959 में आल इंडिया बहादुर शाह जाफर एकेडमी की स्थापना की गयी।
इसके अलावा बहादुर शाह ज़फर के नाम दिल्ली में भी एक सड़क मार्ग है। यही नहीं मुगल साम्राज्य के अंतिम शासक बहादुर शाह जफर पर कुछ हिन्दी-उर्दू फिल्में भी बनी हुई थी।
ज़फर महल – Zafar Mahal
ज़फर महल मुघलो के अंतिम शासक बहादुर शाह ज़फर – Bahadur Shah Zafar द्वारा निर्मित एक अंतिम मुघल ईमारत है। ज़फर महल भारत के दिल्ली में स्थापित किया गया है। अकबर द्वितीय, बहादुर शाह जफ़र द्वारा ज़फर महल के प्रवेश द्वार का निर्माण 19 वी शताब्दी के मध्यकाल में किया गया था।
ज़फर महल दिल्ली के मेहरुली में बना हुआ है। मेहरुली एक रमणीय स्थल है जहाँ लोग शिकार करने और साथ ही पिकनिक मनाने के लिए भी आते है। पहले से ही प्रसिद्ध मेहरुली में ज़फर ने ज़फर महल और दरगाह बनाकर इसकी सुन्दरता और बढ़ा दी।
प्रवेश द्वारा के पास बना गुम्बद तक़रीबन 15 वी शताब्दी में बनवाया गया था और महल के बाकी भाग पश्चिमी आर्किटेक्चर के अनुसार बनाये गए है। उस समय शासक और उनका परिवार महल की बालकनी से पुरे शहर का नजारा देखते थे और मेहरुली के सुंदर बागो का दृश्य महल की खिडकियों से भी दिखायी देता है।
ज़फर के शासनकाल में फूल वालो की सैर नामक तीन दिनों तक चलने वाला एक उत्सव होता था। उत्सव के दौरान ज़फर अपने परिवार के साथ मेहरुली के तीर्थ स्थान ख्वाजा बख्तियार काकी के दरगाह पर भी जाते थे। देखा जाए तो इस महल का निर्माण उनके पिता ने करवाया था लेकिन महल के मुख्य द्वार का निर्माण ज़फर ने करवाया था। और ज़फर ने इसका नाम बदलकर फिर ज़फर महल रखा।
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Sir I’m fully confused because I read different history of bahadur shah zafar in class 10th.. Bahadur shah zafar ko to angrejo ne apne desh mein lejakar fasi di thi. Sir plz reply me. Is this right or wrong who I read in class 10th
This is wrong, he was sended to Rangoon. Where he spent his life
nice very very good
mai aap see etnai kaita hu ki jobheh history leekhe us me stye ho kisee ke dabaw me na leekha