वासुदेव बळवंत फडके एक महान क्रांतिकारी जिन्होंने मातृभूमि के लिये अपना सबकुछ त्याग दिया, अंग्रेजो के खिलाफ भारतीय जागृती करने वाले आद्य क्रांतिकारक ऐसी उनकी ख्याती है।
वासुदेव बलवंत फड़के देश के पहले ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने देश की पहली स्वाधीनता की लड़ाई में हार के बाद फिर से आजादी की ज्वाला भड़काई थी और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया था।
एक सच्चे देशभक्त और राष्ट्रप्रेमी की तरह वे मरते दम तक देश की सेवा में समर्पित रहे और अंग्रेजों के सामने कभी भी नहीं झुके। तो आइए जानते हैं, देश के पहले क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत फड़के के जीवन के बारे में महत्वपूर्ण बातें-
स्वतंत्रता संग्राम के पहले क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत फड़के का जीवन परिचय – Vasudev Balwant Phadke in Marathi
एक नजर में –
पूरा नाम (Name) | वासुदेव बलवन्त फड़के |
जन्म (Birthday) | 4 नवम्बर, 1845, शिरढोणे गांव, रायगढ़ ज़िला, महाराष्ट्र |
पिता (Father Name) | बलवंत फड़के |
माता (Mother Name) | सरस्वती बाई |
मृत्यु (Death) | 17 फ़रवरी, 1883 ई. |
जन्म, परिवार, शिक्षा एवं प्रारंभिक जीवन –
वासुदेव बलवंत जी 4 नवंबर, 1845 में महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के शिरढ़ोणे गांव में रहने वाले एक परिवार में जन्में थे। उनके मां का नाम सरस्वती बाई और पिता का नाम बलवंत था। उनके एक भाई और दो बहने भी थे।
वासुदेव बलवंत जी शुरु से ही बेहद तेज बुद्धि वाले बालक थे, जिन्होंने काफी कम उम्र में ही मराठी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषा में अपनी अच्छी पकड़ बना ली थी। इसके अलावा उनके अंदर बचपन से ही राष्ट्रप्रेम की भावना भरी हुई थी।
वे अपने शुरुआत के दिनों से ही देश के वीर जवानों की कहानियां पढ़ा करते थे। वासुदेव बलवंत फड़के जी ने एक व्यायाम शाला की बनाई थी, जहां उन्होंने महान समाजसेवी और विचारक ज्योतिबा फुले से मुलाकात की थी। इसके अलावा भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने वहां उन्हें अस्त्र-शस्त्र चलाना सिखाया था। वे उनके क्रांतिकारी और देशभक्ति के विचारों से भी काफी प्रभावित होते थे।
बलवंत वासुदेव फड़के ने अपनी शुरुआती पढ़ाई कल्याण और पुणे में रहकर पूरी की थी। वहीं उनकी पढा़ई खत्म करने के बाद उनके पिता चाहते थे कि वे बिजनेसमैन बने, लेकिन उन्होंने अपने पिता की बात नहीं मानी और वे मुंबई चले गए, जहां पर उन्होंने नौकरी करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी।
विवाह एवं व्यक्तिगत जीवन –
वासुदेव फड़के ने 28 साल की उम्र में अपनी पहली शादी की थी, लेकिन पहली पत्नी की मृत्यु के बाद फिर उन्होंने दूसरा विवाह किया था।
जब अंग्रेजों के खिलाफ फड़के ने दी विद्रोह की घोषणा:
वासुदेव फड़के ने ‘ग्रेट इंडियन पेनिंसुला रेलवे’ और ‘मिलिट्री फ़ाइनेंस डिपार्टमेंट’, में ब्रिटिश सरकार के अधीन नौकरी की थी। वहीं जिस दौरान वासुदेव बलवंत फड़के अपनी नौकरी कर रहे थे, तभी उनकी मां की मौत हो गई।
अपनी मां की मौत की सूचना मिलते ही वे फिर अंग्रेजी अधिकारियों के पास छुट्टी मांगने गए, लेकिन उन्हें छुट्टी नहीं दी गई, जिसके बाद बिना छुट्टी मिले ही फड़के अपने गांव चले गए, लेकिन इस घटना के बाद उनके मन में अंग्रेजी अधिकारियों के खिलाफ बेहद गुस्सा भर गया और फिर उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला लिया और क्रूर ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ क्रांति की तैयारी करने लगे।
ब्रिटिश शासकों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए फड़के ने गली, चौराहों पर ढोल और थाली बजाकर एवं अपने सशक्त भाषणों के दम पर न सिर्फ आदिवासियों की सेना को संगठित किया, बल्कि कई बड़े-बड़े जमींदारों और वीर साथियों को एकजुट किया और महाराष्ट्र में अपने क्रांतिकारी विचारों के माध्यम से नवयुवकों को भी संगठित किया।
फिर अपनी पूरी तैयारी के साथ साल 1879 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की घोषणा कर दी। यही नहीं इस दौरान धन जुटाने के लिए उन्होंने अंग्रेजी सरकार के खजाने भी लूटे और अपने संगठन के साथ कई अत्याचारी अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया।
वासुदेव बलवंत को बंदी बनाना अंग्रेजों के लिए बन गई थी चुनौती, रखा था ईनाम:
वासुदेव बलवंत फड़के की क्रांतिकारी गतिविधियों के सामने अंग्रेजी सरकार भी थर-थर कांपने लगी थी और फिर इसके लिए अंग्रेजी सरकार ने उनकी गिफ्तारी के लिए कई योजनाएं बनाईं, लेकिन अपनी चतुराई और साहिसक गतिविधियों से वे हर बार अंग्रेजों की योजनाओं पर पानी फेर देते थे।
यही नहीं बाद में तो फड़के को जिन्दा या फिर मुर्दा पकड़वाने के लिए अंग्रेजी सरकार ने 50 हजार रुपए के ईनाम तक की घोषणा कर दी थी। हालांकि, बाद में फिर साहसी बलवंत ब्रिटिश पुलिस अधिकारियों के हत्थे चढ़ गए थे।
वासुदेव बलवंत फड़के एक ऐसे क्रांतिकारी थे, जिनसे अंग्रेज इतना डरते थे कि उन्हें बंदी बनाए जाने के बाद भी उन्हें डर था कि अगर उन्हें महाराष्ट्र की जेल में बंदी रखा गया तो किसी तरह का विद्रोह न भड़क जाए।
इसलिए बाद में अंग्रेजी सरकार ने उन पर राजद्रोह का मुकदमा कर और कालापानी की कठोर सजा देकर अंडमान भेज दिया और उनके साथ काफी क्रूर व्यवहार किया था, एवं अमानवीय यातनाएं दीं थीं।
मृत्यु –
महाराष्ट्र में जन्में देश के प्रथम क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत फड़के अपने पूरे जीवन भर देश की सेवा में लगे रहे। उन्हें स्वाधीनता की लड़ाई के दौरान काफी कष्ट और अमानवीय यातनाए सहनी पड़ी थी।
आपको बता दें कि साल 1879 ई. में वासुदेव बलवंत फड़के जी को क्रूर ब्रिटिश पुलिस अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और अजीवन कारावास यानि की आजीवन कालापानी की सजा सुनाई दी गई।
इस दौरान जेल में उन्होंने तमाम शारीरिक यातानाएं दी गईं, जिसके चलते जेल के अंदर ही उन्होंने 17 फरवरी, साल 1883 में अपनी आंखिरी सांस ली। इस तरह मरते दम तक वे राष्ट्र की सेवा में लगे रहे और तमाम कष्ट और यातनाएं सहने के बाबजूद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी बल्कि एक सच्चे देशभक्त और क्रांतिकारी के तरह लड़ते रहे।
वासुदेव बलवंत फड़के जैसे क्रांतिकारियों का भारतभूमि में जन्म लेना हम सब के लिए फक्र की बात है। हर किसी को उनकी देशभक्ति से प्रेरणा लेने की जरूरत है।
वहीं उन्हें आज भी देश के स्वतंत्रता संग्राम के पहले क्रांतिकारी के रुप में याद किया जाता है। वासुदेव बलवंत फड़के द्वारा देश के लिए किए गए बलिदान, त्याग, और समर्पण को कभी नहीं भुलाया जा सकता है।
आज वासुदेव बलवंत फड़के जैसे क्रांतिकारियों की बदौलत ही हम सभी भारतीय आजाद भारत में चैन की सांस ले रहे हैं। ऐसे क्रांतिकारी को ज्ञानी पंडित की टीम की तरफ से सादर श्रद्धांजली।
Hindee prajasaptak ki shuruwat ki thi