Saragarhi War
सारागढ़ी का युद्ध भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण युद्धों में से एक हैं। 12 सितंबर,1897 में लड़ा गया सारागढ़ी के युद्ध में महज 21 सिख सैनिकों ने करीब 10 हजार अफगान सैनिकों को परास्त कर अपनी जाबांजी का अद्भुत प्रदर्शन किया था, साथ ही गुलिस्तान और लॉकहार्ट किलों पर अपना अधिकार हासिल कर लिया था।
सारागढ़ी के इस ऐतिहासिक युद्ध में सभी बहादुर सिख सैनिक शहीद हो गए थे। इसलिए 12 सितंबर को सारागढ़ी दिवस के रुप में भी मनाया जाता है, जिसमें 36वीं सिख रेजिमेंट के सभी जाबांज सैनिकों को सच्चे मन से श्रद्धांजली अर्पित की जाती है। भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध इस सारागढ़ी के युद्ध पर ”केसरी” जैसी कई फिल्में भी बनाई जा चुकी हैं, आइए जानते हैं सारागढ़ी युद्ध के बारे में विस्तार से –
सारागढ़ी का युद्ध – Saragarhi War
सारागढ़ी युद्ध का सारांश – battle of saragarhi summary
कब हुआ युद्ध – 12 सितंबर, 1897 में।
किस-किसके बीच हुआ युद्ध – अफगान सैनिक और सिखों ( ब्रिटिश भारतीय सेना) के बीच
कहां हुआ युद्ध – उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत के एक छोटे से गांव सारागढ़ी में हुआ था, जो कि वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है।
क्यों हुआ था सारागढ़ी का युद्ध – लॉकहार्ट और गुलिस्तान के किलों पर कब्जा करने के उद्देश्य से अफ़रीदी और औरकज़ई कबायलियों (अफगान सैनिकों) ने यह जंग छेड़ी थी।
सारागढ़ी दिवस (Saragarhi Day) – 12 सितंबर को मनाया जाता है।
कब और कहां हुआ था सारागढ़ी का युद्ध – saragarhi ka yudh
भारतीय इतिहास का सबसे प्रमुख युद्ध 12 सितंबर 1897 को उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत के एक छोटे से गांव सारागढ़ी में लड़ा गया था, जो कि वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है।
यह युद्ध बिट्रिश भारतीय सेना और अफगान ओराक्जई जनजातियों के बीच लड़ा गया था, जिसमें 36वीं सिख बटालियन के सभी सिख सैनिकों ने अपनी वीरता का अद्भुत प्रदर्शन कर अफगान सैनिकों को युद्ध भूमि में बुरी तरह परास्त कर दिया था।
सारागढ़ी का युद्ध क्यों लड़ा गया इसका पूरा इतिहास – saragarhi the true story
करीब 10 हजार अफगान सैनिकों ने सारागढ़ी चौकी के पास स्थित लॉकहार्ट और गुलिस्तान के किले पर अपना अधिकार जमाने के मकसद से 21 सितंबर, सन् 1897 में सारागढ़ी चौकी पर हमला किया था, जिसके बाद 36वीं बटालियन के सभी 21 सिख सैनिकों और अफगान पश्तूनों के बीच जंग छिड़ गई थी।
आपको बता दें कि जिस वक्त इतनी बड़ी संख्या में अफगान पश्तूनों ने ब्रिटिश भारतीय सैनिकों पर हमला किया था, उस वक्त सारागढ़ी चौकी में रक्षा के लिए सिर्फ 21 सिख सैनिक ही तैनात थे।
अफगान सैनिकों द्धारा किए गए इस भयंकर हमले के बाद इसकी खबर बहादुर सैनिक गुरमुख सिंह ने आनन-फानन में लॉकहार्ट किले में मौजूद कर्नल हौटन को दी।
वहीं इतने कम समय में अफगान सैनिकों के खिलाफ लड़ने के लिए सैनिक टुकड़ी का सारागढ़ी तक पहुंच पाना मुश्किल था, ऐसी स्थिति में सारागढ़ी चौकी पर तैनात सभी सैनिकों ने आत्मसमर्पण करने की बजाय अफगान पश्तूनों के खिलाफ साहस के साथ युद्ध लड़ने का निर्णय लिया।
इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि सारागढ़ी में तैनात सैन्य टुकड़ी में से एक एनसीओ (नॉन कमिशंड ऑफिसर) और 20 ओआर (अन्य रैंक) ऑफिसर शामिल थे, जो कि 10 हजार अफगान सैनिकों के खिलाफ मोर्चा संभाल रहे थे, इस तरह करीब अफगान 476 सैनिकों पर 1 सिख सैनिक ने साहस और वीरता के साथ मोर्चा संभाला।
वहीं इस पूरी यूनिट ने ईशर सिंह की अगुवाई में अपनी अपनी आखिरी सांस तक युद्ध लड़ा।
भारतीय इतिहास की इस सबसे भयंकर लड़ाई में सबसे पहले भारतीय ब्रिटिश सेना के भगवान सिंह बुरी तरह जख्मी हो गए और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। इसके बाद 36वीं बटालियन के वीर सिपाही लाल सिंह पर अफगान पश्तूनों की गोली लगी और वे गंभीर रुप से घायल हो गए।
फिर भी ब्रिटिश भारतीय सैनिकों ने अपने सिपाहियों को इस हालत में देख धैर्य नहीं खोया और फिर घायल सिपाही लाल सिंह और अन्य सैनिक जीवा सिह ने हिम्मत के साथ भगवान सिंह के शव को सारागढ़ी चौकी के अंदर किया।
वहीं चौकी के पास स्थित लॉकहार्ट किले में बैठे कर्नल हौटान अफगान पश्तूनों के हमले को देख रहे थे, और उन्होंने इस बात का अंदाजा लगा लिया था कि कुछ देर बाद ही मिट्टी की दीवार से बनी सारागढ़ी चौकी को अफगान सैनिक रौंद देंगे और उनकी बटालियन के सभी सैनिकों को मार गिराएंगे।
इसलिए उन्होंने अपनी यूनिट के सभी सिपाहियों को अफगानियों के सामने सरेंडर करने के लिए भी कहा, लेकिन चौकी पर तैनात सभपी सिख सैनिक इस बात तो अच्छी तरह से जानते थे कि आत्मसमर्पण करने से उनकी जान तो बच जाएगी लेकिन लॉकहार्ट और गुलिस्तान का किला उनके हाथ से हमेशा के लिए चला जाएगा।
इसलिए सभी सिख सैनिक बड़ी वीरता के साथ अपनी आखिरी सांसा तक अफगानी सैनिकों के साथ युद्ध लड़ते रहे।
वहीं जब तक सारागढ़ी चौकी की दीवार गिरी तब तक सिख सैनिक अफगान सैनिकों को पीछे धकेल कर दो बार कामयाबी हासिल कर चुके थे।
इससे आक्रोशित अफगान सैनिकों ने सिख सैनिकों पर और तेजी के साथ मुकाबला करना शुरु कर दिया। वहीं इस दौरान सिख सैनिक ‘जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल’ के युद्धघोष के साथ करीब 3 घंटे तक वीरता के साथ युद्ध लड़ते रहे और अफगान पश्तूनों के 10 हजार सैनिकों में करीब 600 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।
हालांकि, सारागढ़ी की इस भयंकर लड़ाई में 36वीं सिख बटालियन के सभी 21 जाबांज सैनिक शहीद हो गए। वहीं अफगान पश्तून किले पर अपना कब्जा जमाते इससे पहले ही कर्नल हौटन ने अफगानों के खिलाफ इस युद्ध को जारी रखने के लिए अन्य सैन्य टुकड़ी बुला ली और इस तरह अन्य ब्रिटिश भारतीय सैनिकों ने भी बहादुरी के साथ इस लड़ाई का मोर्चा संभाल लिया औऱ सारागढ़ी की लड़ाई में जीत हासिल कर लॉकहार्ट और गुलिस्तान के किले पर अपना अधिकार जमा लिया।
वहीं सारागढ़ी की इस लड़ाई में जिस तरह 21 सिख सैनिकों ने वीरता के साथ करीब 3 घंटे तक 10 हजार अफगानियों के खिलाफ डटकर मुकाबला किया, वो वाकई सराहनीय है।
इन शहीदों की शहादत, उनकी जाबांजी एवं वीरता की कहानी आज भी भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।
सारागढ़ी युद्ध मे मुख्य भूमिका अदा करने वाले जाबांज सैनिक – saragarhi war heroes
12 सितंबर, 1897 में हुई सारागढ़ी की लड़ाई में 36वीं बटालियन के 21 जाबांज सैनिकों के त्याग, समर्पण और कुर्बानयों की वजह से ब्रिटिश भारतीय सैनिको को जीत हासिल हुई।
ईशर सिंह की अगुवाई में लड़ी गई इस भयंकर लड़ाई में सिपाही गुरमुख सिंह, बुटा सिंह, राम सिंह, जीवन सिंह, नंद सिंह, भगवान सिंह, जीवान सिंह, हीरा सिंह, भोला सिंह, सुंदर सिंह, साहिब सिंह, उत्तर सिंह समेत अन्य सैनिकों ने अपने अदम्य साहस और बहादुरी का परिचय दिया था।
सारागढ़ी युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को सम्मान:
सारागढ़ी के युद्ध में वीरता के साथ युद्ध लड़ने वाले 36वीं बटालियन के सभी बहादुर 21 सैनिकों को ब्रिटिश सराकर के द्धारा ‘इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट’ सम्मान से नवाजा गया।
आपको बता दें कि यह सम्मान आज के परमवीर चक्र के बराबर है। वहीं भारतीय इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था, जब किसी बटालियन के हर सिपाही को उसकी बहादुरी के लिए नवाजा गया हो।
सारागढ़ी युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के लिए गुरुद्धारा का निर्माण:
सारागढ़ी की लड़ाई में अपनी जाबांजी का प्रदर्शन करने वाले 36वीं बटालियन के सभी सैनिकों को न सिर्फ वीरता पुरस्कार से नवाजा गया, बल्कि इस युद्ध में शहीद होने वाले सभी सिख सैनिकों के सम्मान में सिखों के पवित्र स्थल गुरुद्धारे का निर्माण भी करवाया गया।
आपको बता दें कि शहीदों के सम्मान में सारागढ़ी युद्ध भूमि, अमृतसर समेत फिरोजपुर में तीन गुरुद्धारा बनवाईं गईं हैं, जहां आज भी लाखों सिख भक्त अपना मत्था टेकते और इन शहीदों की शहादत को याद कर उन्हें नमन करते हैं
जाते हैं ।
सारागढ़ी युद्ध पर बनी फिल्में – battle of saragarhi movie
भारतीय इतिहास में लड़ी गई सबसे प्रमुख लड़ाईयों में से एक सारागढ़ी की लड़ाई को बॉलीवुड में बड़े पर्दे पर भी फिल्माया जा चुका है। इस युद्ध पर बॉलीवुड फिल्म ‘केसरी’ बन चुकी है, जिसमें बॉलीवुड के सुपर स्टार अक्षय कुमार ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
सारागढ़ी दिवस – saragarhi day
12 सिंतबर, 1897 को लड़ी गई इस भयंकर लड़ाई में 36वीं बटालियन के शहीद हुए सभी 21 सैनिकों को श्रद्धांजली देने के लिए और उनकी जाबांजी और बहादुरी को याद करने के लिए हर साल 12 सितंबर को सारागढ़ी दिवस के रुप में मनाया जाता है।