Ravan ka Yudh
रावण तमाम बुराईयों से लिप्त एक महापापी राक्षस था, जो कि अपने विद्या, तप, बुद्धि के बल पर प्रकृति के नियमों में कुछ बदलाव करना चाहता था। महाअसुर होने के साथ-साथ रावण, एक महापंडित और महाज्ञानी भी था, जिसने कठोर तपस्या और परम ज्ञान के बल पर कई ऐसी शक्तियां प्राप्त कर ली थी, जिसने उसे बेहद अहंकारी बना दिया था।
रावण खुद को भगवान मान बैठा था। आपको बता दें कि रावण का वध भले ही मर्यादित पुरुषोत्तम श्री राम के हाथों हुआ हो, लेकिन वे खुद भी रावण के ज्ञान का सम्मान करते थे, तो आइए जानते हैं रावण के युद्ध के बारे में विस्तार में –
रावण का युध्द – Ravan ka Yudh
माता-सीता के अपहरण से जुड़़ी है रावण के वध की कथा – Story of Sita
महापापी रावण कामवासना से भरा हुआ था, जो कि हर सुंदर कन्या को देखकर मोहित हो जाता था। वहीं भगवान श्री राम की पत्नी माता सीता के गुण और रुप की चर्चा तो पहले से ही फैली हुई थी और फिर जब अंहकारी रावण ने उन्हें देखा तो उसके ह्रदय में उन्हें पाने की इच्छा और अधिक जागृत हो गई।
हालांकि वह भगवान श्री राम और लक्ष्मण की योग्यता और शक्ति को जानता था, इसलिए उसने राक्षस मारीच के पास जाकर उनसे अपने विद्या और कठोर तप के बल पर कई ऐसी दिव्य शक्तियां प्राप्त कर लीं, जिसके चलते वह कोई भी रुप धारण कर सकता था।
माता सीता को पाने के लिए पहले रावण ने स्वर्ण मृग का रुप धारण कर सीता मैया का ध्यान आर्कषित किया और फिर जैसे ही माता सीता के कहने पर भगवान राम और लक्ष्मण उस मृग को ढूंढने गए तब लंकाधिपति रावण ने इस मौके का फायदा उठाया और एक साधु का वेश धारण कर माता सीता को अपनी चतुराई और कुटिलता से भ्रमजाल में फंसा लिया और उनका अपहरण कर उन्हें अपने साथ लंका ले गया।
जटायु ने माता सीता के अपहरण के बारे में दी थी सूचना – Story of Jatayu
जब लंकाधिपति रावण माता सीता का हरण कर ले जा रहा था, तब जटायु ने रावण को रोकने का भी प्रयास किया लेकिन रावण की शक्ति के आगे वह माता सीता को उस महापापी दैत्य से बचाने में नाकामयाब सिद्ध हुआ।
लेकिन इसके बाद जटायु ने भगवान राम को लंकाधिपति रावण द्धारा माता सीता के हरण की सूचना दी थी और माता सीता को ढूंढने में उनकी मद्द की। जिसके बाद भगवान राम और लक्ष्मण दोनों माता सीता की खोज करने निकल पड़े थे।
सुग्रीव, अंगद और विभीषण ने की थी महाअसुर रावण के वध करने में भगवान राम की मद्द:
हिन्दू धर्म के सबसे बड़े धार्मिक महाकाव्य रामायण के मुताबिक मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने सुग्रीव को उसका राजपाठ लौटाने में उसके दैत्य भाई बालि का वध कर सुग्रीव की मद्द की थी, जिसके बाद सुग्रीव ने भगवान राम की पत्नी सीता की खोज करने के लिए वानर सेना का गठन किया था, जिसमें अंगद में भी उनकी मद्द की थी।
इसके बाद भगवान हनुमान रावण की लंकानगरी में सीता माता से मिलते हैं, और रावण द्धारा अपमानित होने पर वह रावण की पूरी लंका में आग लगा देते हैं, सिर्फ रावण के भेदी भाई विभीषण के महल को छोड़ देते हैं और माता सीता का हाल भगवान राम को बताते हैं।
इसके बाद जब माता सीता को वापस लाने के लिए भगवान राम और लक्ष्मण लंका की तरफ प्रस्थान करते हैं तो मार्ग में एक विशाल समुद्र पड़ता है, जिसे पार कर ही लंका तक पहुंचा जा सकता है, जिसके बाद भगवान राम की वानर सेना रामसेतु पुल का निर्माण करते हैं, जिसकी मद्द से भगवान राम लंका तक पहुंच पाते हैं।
वहीं भगवान राम औऱ रावण के युद्ध से पहले कई छोटे युद्ध होते हैं जिसमें रावण के भाई मेघनाथ और कुंभकर्ण समेत उसके लगभग सभी दैत्यों की मृत्यु हो जाती है।
भगवान राम और रावण का युद्ध – Ram aur Ravan ka Yudh
रामायण के अनुसार भगवान राम और रावण के बीच भयानक युद्ध हुआ था, जिसमें रावण की विशाल सेना ने प्रभु राम की वानर सेना को हराने के लिए अपनी चतुराई के साथ षणयंत्र रचा था।
वहीं इस युद्ध के दौरान जब वानर सेना पर रावण की दैत्य शक्ति भारी पड़ने लगी, तब रावण के भाई विभीषण ने भगवान राम को यह राज बताया कि रावण की नाभि में ही उसका जीवन है और अमृत भरा पड़ा है, तब भगवान राम ने रावण की नाभि में तीर मारा और इस तरह महाअसुर रावण भगवान राम के हाथों मारा गया।
वहीं जिस दिन महादैत्य रावण को मारा गया, वह दिन नवरात्रि के बाद का दसवां दिन था, इसलिए इसे दशहरा के रुप में हिन्दू धर्म के लोगों द्धारा मनाया जाता है। दशहरा को बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रुप में पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।
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