Bharhut Stupa
भारतीय संस्कृति को पेश करता भरहुत स्तूप वर्तमान में मध्यप्रदेश के सतना जिले में स्थित है, इससे पहले यह भव्य स्तूप नागोड़ में स्थित था। भरहुत एक ऐसा स्थान है जो, बौद्ध स्तूप और तमाम सुंदर कलाकृतियों एवं तोरणों के लिए विख्यात है।
भारत की समृद्ध संस्कृति का प्रतीक मध्यप्रदेश की भरहुत स्तूप – Bharhut Stupa in Hindi
इस आर्कषक एवं प्राचीन स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक द्धारा करीब 150 ईसा पूर्व में किया गया था, हालांकि इसके निर्माण के वर्ष का कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं है। वहीं साल 1873 में भारतीय पुरातत्व के जनक “अलेक्जेण्डर कनिंघम” ने मध्यप्रदेश के इस प्रख्यात भरहुत स्तूप की खोज की थी।
कुछ ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक श्री कनिंघम ने इस स्तूप को दो बार खोदा था और उसके अतिमहत्वपूर्ण अवशेषों को कलकत्ता के एक शानदार म्यूजियम में सुरक्षित रखा था, जबकि भरहुत स्तूप के कुछ अन्य अवशेषों को इलाहाबाद के एक म्यूजियम में सुरक्षित रखा गया है।
वहीं आज अदभुत मूर्तिकला और वास्तुकला के लिए मशहूर ये भरहुत स्तूप शुंगकालीन है, जो भारत की शान बढ़ा रहा है।
मध्यप्रदेश के भरहुत स्तूप पर बेहद बारीकी से नक्काशी की गई है और अद्भुत वास्तुकला का इस्तेमाल कर इस स्तूप का निर्माण किया गया है।
इस भव्य स्तूप के चारों तरफ करीब 7 फीट ऊंची चाहर दीवारी का निर्माण किया गया था, जिसमें 4 तोरण द्धारा भी थे, वहीं इसका व्यास करीब 68 फीट था।
इस अद्भुत मूर्तिकला के लिए मशहूर भरहुत स्तूप के चाहर दीवारी और तोरण द्धारों पर यक्ष-यक्षिणी, जातक कथाएं एवं कई अर्द्ध देवी-देवताओं की मूर्तियां उल्लेखित हैं।
इस प्रचीनतम भरहुत स्तूप पर करीब तीसरी शताब्दी के दौरान के सभी महत्वपूर्ण किस्से भी बेहद शान ढंग से उल्लेखित हैं।
भारतीय संस्कृति एवं परंपरा को दर्शाता हुए यह स्तूप न सिर्फ महात्मा बुद्ध की परम ज्ञान की प्राप्ति का यात्रा का बखूबी वर्णन करता है बल्कि यक्ष के समय उनके जीवन के हर पल की गाथा एवं उनकी जिंदगी के कठोर संघर्षों का भी बेहद खूबसूरती से वर्णन करता है।
मध्यप्रदेश के इस आर्कषक भरहुत स्तूप में जातक कथाओं की व्याख्या बेहद शानदार ढंग से और विस्तार से की गई है, जो कि आसानी से समझ में आ जाती है।
वहीं, अगर इस प्रख्यात भरहुत स्तूप की रेलिंग की बनावट की बात करें तो यह भी काफी आर्कषक है। इसका निर्माण सुंदर शिल्पकला का इस्तेमाल कर बेहद प्रभावशाली ढंग से लाल पत्थर पर की खुदाई कर किया गया है।
वहीं इस भव्य भरहुत स्तूप के निर्माण में इस्तेमाल किए गए लाल पत्थर इसकी शोभा और भी ज्यादा बढ़ा रहे हैं।
इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि भरहुत स्तूप एवं मध्यप्रदेश के ही रायसेन जिले में स्थित सांची स्तूप की बनावट, शिल्पकला, वास्तुकला एवं मूर्तिकला में काफी हद तक एक सामान ही हैं।
वहीं इन दोनों स्तूपों के एक सामान होने के पीछे एक तर्क दिया जाता है कि इन भव्य स्तूपों का निर्माण एक करीब तीसरी शताब्दी के दौरान लगभग एक ही अवधि में करवाया गया है।
हालांकि, वर्तमान में भरहुत स्तूप पूरी तरह से नष्ट हो चुका है, इसके कुछ अवशेष ही कोलकाता एवं इलाहाबाद के म्यूजियम में सुरक्षित रखे गए हैं। फिलहाल भरहट आर्ट गैलरी आज भी भरहुत स्तूप की विशालता एवं भव्यता को दर्शाती है और इसकी तरफ सैलानियों को आर्कषित करती है।
वहीं भारतीय संस्कृति एवं परंपरा को दर्शाता इस विश्व प्रसिद्ध एवं महान बौद्ध भरहुत स्तूप के स्थल को आज भी देशी-विदेशी सैलानी देखने दूर-दूर से जाते हैं, लेकिन वर्तमान में इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्तूप, स्थल की हो रही बेकदरी से सैलानियों का मन उदास हो जाता है, दरअसल जिस जगह पर भरहुत स्तूप बना हुआ था।
आज यहां जगह-जगह सैकड़ों गड्ढ़े हो गए हैं, जिस पर भारतीय पुरात्तव विभाग एवं सरकार को ध्यान देने की विशेष जरूरत है, क्योंकि भरहुत स्तूप न सिर्फ एक ऐतिहासिक एवं प्राचीनतम मूर्तिकला की याद दिलाता था, बल्कि यह स्तूप भारतीय संस्कृति को पेश करता हुए एक सर्वोत्तम नमूना भी था।
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