पेन का इतिहास और कैसे हुई इसकी शुरुआत – History of Pen

History of Pen

कलम या फिर आधुनिक पेन जिसका इस्तेमाल आज हम लिखने के लिए करते हैं और यह हर किसी के जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण है। पेन की सहायता से न सिर्फ शब्दों को स्वरुप दिया जाता है, बल्कि अपनी कल्पना और विचारों का उल्लेख किया जा सकता है। यह मनुष्य को शिक्षित बनाने में भी अपनी अहम भूमिका निभाता है।

कलम या फिर आधुनिक पेन की वजह से ही आज हमें इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य पता लग सके हैं इसके साथ ही इससे हमें अपने पूर्वजों की जानकारियां भी मिली हैं।

वहीं ऐसा भी माना जाता है कि हिन्दू धर्म का महाकाव्य महाभारत लिखने के लिए गणेश जी ने ‘कलम’ का अविष्कार किया था। पेन का इतिहास काफी दिलचस्प और रोचक है, आइए जानते हैं इसके इतिहास के बारे में –

पेन का इतिहास और कैसे हुई इसकी शुरुआत – History of Pen

History of Pen
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महाभारत से जुड़ा है पेन का इतिहास

कलम और आधुनिक पेन ने काफी लंबा सफर तय किया है, इसका इतिहास काफी पुराना है। ऐसा माना जाता है कि हिन्दू धर्म के सबसे बड़े दो महाकाव्यों में से एक महाभारत की रचना के लिए श्री गणेश जी ने अनोखी कलम का अविष्कार किया था।

दरअसल जब महान ऋषि वेद व्यास जी ने महाभारत को अपने लिपिक गणेश जी से लिखवाना शुरु किया तो गणेश जी ने वेद व्यास जी से बिना रुके महाभारत लिखने की शर्त रखी।

और इसके बाद गणेश ने अपना एक दांत तोड़कर नुकीले भाग से तामपत्रों पर लिखना शुरु किया और इस तरह महाभारत जैसे महाकाव्य को पूरा किया।

इराक से हुई थी दुनिया की पहले कलम की शुरुआत – First Pen in the World

अगर श्री गणेश की कलम की बात छोड़े तो ऐसा माना जाता है कि दुनिया की सबसे पहली कलम की शुरुआत मेसोपोटामिया, जो कि आज इराक में है, वहां के निवासियों ने करीब 5 हजार साल पहले कलम की शुरुआत की थी।

भारत में हड़प्पा और मोहनजोदड़ों को देते हैं कलम शुरु करने का क्रेडिट

भारत में कलम और आधुनिक पैन की शुरुआत करने का क्रेडिट करीब 5 हजार साल पहले हड़प्पा और मोहनजोदड़ों के रहने वाले लोगों को दिया जाता है।

दरअसल, करीब 3 हजार लेख युक्त मोहरे उस समय सिर्फ मोहनजोदड़ों शहर से मिली थी, इसी के आधार पर भारत में पैन की शुरुआत को इससे जोड़कर मानते हैं।

आपको बता दें कि यह मोहरे किसी धातु, लकड़ी, बांस, हाथी के दांत या फिर किसी मजबूत पदार्थ की बनी होती थी, वहीं इससे अक्षर लिखने के बाद उसमें एक पाउडर डाल देते थे ताकि शब्द उभर सकें और पढ़ने योग्य दिख सकें।

भोजपत्रों या फिर तामपत्रों में सिर्फ एक ही तरफ लिख पाना मुमकिन था, यह किसी बड़ी चुनौती और मुश्किल काम से कम नहीं था। वहीं अलग-अलग पत्रों को इकट्ठा कर बराबर भागों में काटकर पोथी तैयार की जाती थी।

रॉक पेंटिंग से भी जुड़ी है कलम की उत्पत्ति (पेंटिंग के लिए नुकीले पत्थर का इस्तेमाल पेन के रुप में)

आज से करीब 40 हजार साल पहले और ईसा से करीब 25 हजार साल पहले दुनिया में नुकीले पत्थरों से लिखने का काम शुरु किया गया था। उस वक्त जो लोग गुफाओं में रहते थे, उन्होंने नुकीले पत्थरों से दीवारों पर पेन्टिंग की, इस पेंटिंग में उनकी जिंदगी की झलक थी।

आपको बता दें कि उनकी यह पेंटिंग खेती और शिकार पर आधारित थी। वहीं यह पेंटिंग दक्षिण पश्चिम के दीवारों पर और नामीबिया पर मिली थी, इनको अब तक की सबसे पुरानी रॉक पेंटिंग भी माना जाता है।

मोम की पटल पर लिखने के लिए नुकीले धातु का इस्तेमाल

समय के आगे बढ़ने के साथ लोगों ने पत्थरों से विकसित होना शुरु कर दिया और विकास के पथ पर आगे बढ़ते हुए पत्थरों पर लिखना बंद कर दिया था। कागज के आने से पहले लोग लिखने के लिए मोम की पटल या फिर मिट्टी की पटल का इस्तेमाल करने लगे, जिसमें वह कुछ नुकीले धातु का इस्तेमाल करते थे।

मिस्त्र में पेपर जैसी चीज पैपीरिस की खोज

करीब 6 हजार साल पहले मिस्त्र के लोगों ने पेपर जैसी चीज का अविष्कार किया। इसका नाम पैपीरस रखा। इससे पहले पेपर जैसी किसी चीज की खोज नहीं की गई थी, तब तक वह लिखने की लिए मोम की पटल, क्ले या दीवारों का इस्तेमाल करते थे।

आपको बता दें कि पेपर जैसी चीज पैपिरस को बुनाई कर बनाया गया था, यह एक बुनी हुई चटाई की तरह था, जिसे कूटकर पतले से कड़े कागज का रूप दिया गया।

वहीं यूनान के लोग भी इस कागज का इस्तेमाल करते थे, जिसे वह जानवरों की चमड़े से बनी चादरों पर एक विशेष तरह के पेन का इस्तेमाल करते थे। क्योंकि नुकीली हड्डिया अथवा नुकीले धातु से लिखना इस तरह के कागज पर सही नहीं था।

नुकीली धातु के इस्तेमाल से यह फट सकता था। इसलिए रीड पेन का निर्माण किया गया, जिसके माध्यम से बिना किसी खरोंच के पटल पर शब्दों को आसानी से उकेरा जा सके।

इसके बाद लिखने के लिए बांस की पतली लकड़ी का इस्तेमाल किया जाने लगा, बांस के पेड़ की लकड़ी के एक सिरे को नुकीला कर निब या प्वाइंट का रुप दिया गया था, वहीं जब बांस का दूसरे खोखले वाले सिरे में रंग भरकर लिखा जाता था।

वहीं यहीं से पैन अपनी वास्विक रुप से पहचान बनाने लगा था। बाद में इसे ही मिस्त्र के लोगों ने फाउंटेन पेन का शुरुआती रुप दे दिया।

क्विल पेन की खोज (पक्षियों के पंखों से लिखने की शुरुआत) – Quill Pen

वहीं भारत में करीब 1 हजार 300 साल पहले पक्षियों के पंखों को स्याही या फिर रंगमें डूबोकर लिखने की शुरुआत की गई। इसे क्विल पेन (Quill Pen)कहा गया।

इसके लिए हंस का पंख या बत्तख के पंख का इस्तेमाल किया जाता था। आपको बता दें कि हंस के पंख बड़ी मुश्किल से मिलने वाले उच्च कोटि के पंख थे, जो काफी महंगे मिलते थे, जिसका इस्तेमाल साधारण और आम मनुष्य नहीं कर सकता था, इसलिए ज्यादातर लोग लिखने के लिए उस समय बत्तख के पंख का इस्तेमाल करते थे।

वहीं सुंदर पेंटिंग बनाने के लिए कौवा के पंख का इस्तेमाल किया जाता था। इसके बाद पेरु पक्षी, चील और उल्लू के पंख का भी लिखने के लिए इस्तेमाल किया गया।

वहीं इन पक्षियों के पंखों से बने पेन का इस्तेमाल करना काफी महंगा पड़ता था और इसे तैयार करने में भी काफी वक्त लगता था। वहीं इसी दौरान बांस के खोखले हिस्से में भरने के लिए पक्की स्याही की भी तलाश हुई।

आपको बता दें कि कागज में गोंद, कतिपय और जड़ बूटियां समेत अन्य दूसरे फल फूल मिलाकर उन्हें पकाकर काले रंग की स्याही तैयार की जाती थी।

फाउंटेन पेन की शुरुआत – Fountain Pens History

फाउंटेन पेन की शुरुआत से पहले पक्षियों के पंख और बांस के पौधों से लिखना काफी मुश्किल हो रहा था, वहीं इसके बाद लोग लिखने के लिए अलग-अलग तरीके के पेन बनाने लगे, वहीं समय के साथ-साथ विकास होता चला गया, लेखन के क्षेत्र में भी काफी विकास हुआ, इसमें लिखने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले औजार को भी विकसित किया गया।

और इस तरह फाउंटेन पेन का अविष्कार किया गया। पैट्रिच पोयनारु (Petrache Poenaru) ने 1827 में फाउंटेन पेन का अविष्कार किया था। वहीं इस पेन में भी कमी पाई गई, दरअसल इससे लिखने के बाद इसकी स्याही बहुद देर बाद सूखती थी।

आधुनिक बॉल पेन की शुरुआत – Ballpoint Pens History

फाउंटेन पेन की स्याही देर से सूखने की परेशानी को दूर करने के लिए साल 1888 में जॉन जे लाउड (John J Loud) ने बॉल पेन की शुरुआत की थी।

हालांकि यह पेन भी पूरी तरह लिखने के सभी मानकों पर खऱी नहीं उतरा था, आपको बता दें कि इस पेन में इस्तेमाल होने वाली स्याही के पतले होने की वजह से यह लीक हो जाती थी।

इसके करीब 50 साल बाद हंगेरी के रहने वाले Laszlo Biro ने अपने भाई जार्ज (George ) के साथ मिलकर बॉल पेन बनाने की शुरुआत की। इस बॉल पेन को बनाने का आइडिया प्रिंटिंग प्रेस में इस्तेमाल की जाने वाली स्याही को देख कर आया,दरअसल प्रिंटिंग प्रेस में उपयोग में लाई जाने वाली स्याही काफी जल्दी सूख जाती था।

इस तरह बॉल पेन का अविष्कार सफल हुआ और आज लोग लिखने के लिए बॉल पेन का इस्तेमाल करते हैं।

वहीं बॉल पेन के अविष्कार के शुरुआती दौर में यह काफी महंगा आता था, लेकिन धीरे-धीरे इसके रेट कम होते चले गए और आम लोगों तक इसकी पहुंच बढ़ती गई और अब सभी लोग लिखने के लिए बॉल पैन का इस्तेमाल करने लगे हैं।

वहीं अब बाजार में मारकर, स्पारकल समेत तमाम तरह के पैन मिलते हैं। जिनसे की गई लिखावट बेहद सुंदर और आर्कषित लगती है।

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