Shaheed Diwas (Martyrs’ Day)
जब भारत गुलामी की जंजीरों से जकड़ा हुआ था, उस समय भारत के वीर सपूतों ने आजाद भारत का न सिर्फ सपना देखा बल्कि अपने देश को आजाद करवाने के लिए अपना पूरे जीवन भर संघर्ष करते रहे और देश के लिए हंसते-हंसते अपनी प्राणों की आहूति दे दी। ऐसे वीर सपूतों के त्याग और बलिदान से ही आज भारत देश आजाद हो सका है, उनकी बदौलत ही आज हम आजाद भारत में चैन की सांस ले पा रहे हैं।
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों और वीर जवानों ने संघर्ष की लड़ाई नहीं लड़ी होती तो शायद अभी भी भारत, अंग्रेजों की गुलामी करता रहता।
स्वतंत्रता की लड़ाई में खुद को देश की वेदी पर चढ़ाने वाले भारत के महान क्रांतिकारी और महापुरुषों की शहादत को याद करने के लिए भारत में शहीद दिवस मनाया जाता है। आपको बता दें कि भारत में शहीद दिवस – Shaheed Diwas (Martyrs’ Day) कई अलग-अलग दिनों में मनाया जाता है।
“शहीद दिवस” देश के सच्चे सपूतों की शहादत – Shaheed Diwas (Martyrs’ Day)
लेकिन मुख्य रुप से 2 शहीद दिवस को ही ज्यादा जाना जाता है। सबसे पहला शहीद दिवस (सर्वोदय दिवस) 30 जनवरी को पूरे भारत में मनाया जाता है, जबकि दूसरा शहीद दिवस 23 मार्च को मनाया जाता है। वीर शहीदों की शहादत के इन दोनों शहीद दिवस मनाने की वजह भी अलग-अलग हैं -जिनके बारे में हम आपको अपने इस आर्टिकल में बताएंगे –
30 जनवरी को क्यों मनाया जाता है शहीद दिवस – 30 January Shaheed Diwas
भारत की आजादी के महानायक, महान स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एक प्रमुख राजनैतिक और अध्यात्मिक नेता थे। जब 15 अगस्त, साल 1947 को भारत देश, अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुआ तो गांधी जी ने देश में भाईचारे और शांति को बढ़ावा दिया।
इसके बाद 30 जनवरी, साल 1948 में नाथूराम गोडसे ने देश की आजादी की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। आपको बता दें कि, बिरला हाउस में जब महात्मा गांधी शाम के समय प्रार्थना कर रहे थे, तभी गोडसे ने गोली चलाकर बापू की हत्या कर दी।
गांधी जी अपने पूरे जीवन में खुद भी शांति और सत्य, अहिंसा के मार्ग पर चले और लोगों को सच्चाई के मार्ग पर चलने की सीख दी, लेकिन उनकी हत्या इस तरह हिंसात्मक तरीके से मोडसे द्दारा की गई, जो कि बेहद दुखद है।
गोडसे ने महात्मा गांधी जी को भारत के बंटवारे का जिम्मेदार बताकर उनकी हत्या कर दी थी, यह दिन देशवासियों के लिए सबसे दुखद दिन था। हालांकि गोडसे को 15 नवंबर, 1949 को फांसी दे दी गई।
30 जनवरी को आजादी के महानायक और सच्चे देशभक्त महात्मा गांधी की मौत के बाद ही भारत सरकार की तरफ से इस दिन को शहीद दिवस के रूप में घोषित कर दिया गया। इसके बाद से हर साल 30 जनवरी को भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने के लिए शहीद दिवस मनाया जाता है।
इस दिन देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और रक्षा मंत्री एक साथ राजघाट स्मारक पर महात्मा गांधी की समाधि पर इकट्ठा होते हैं। वहां पर भारतीय शहीदों और महात्मा गांधी के सम्मान और श्रद्धांजलि दी जाती है। लोग भारतीय शहीदों की स्मृति में दो मिनट का मौन भी धारण करते हैं।
इस दिन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देश की संप्रभुता की रक्षा करते हुए सैनिकों की शहीदता को याद किया जाता है। शहीद दिवस पर कई स्कूलों में कार्यक्रमों का भी आयोजन होतो है, जिसमें छात्र देशभक्ति के गीतों को और नाटकों का प्रदर्शन करते हैं और शहीदों को नमन करते हैं।
23 मार्च को क्यों मनाया जाता है शहीद दिवस – 23 March Shaheed Diwas
23 मार्च, 1931 को अंग्रेजी हुकूमत ने भारत के तीन वीर सपूतों- भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटका दिया था। इन महान क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए 23 मार्च को भी भारत में शहीद दिवस मनाया जाता है।
वैसे तो यह दिन भारतीय इतिहास के लिए काला दिन माना जाता है, लेकिन देश की आजादी की लड़ाई में खुद को देश की वेदी पर चढ़ाने वाले यह महान क्रांतिकारी हमारे आदर्श हैं। इन तीनों वीरों की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए ही शहीद दिवस मनाया जाता है।
जब क्रूर अंग्रेज शासक भारतीय जनता पर अत्याचार कर रहे थे, उस समय इन वीर सपूतों ने अपने प्रगतिशील और क्रांतिकारी विचारों से भारत के युवाओं में अंग्रेजी शासकों के खिलाफ विरोध की भावना पैदा की और देश की आजादी की इच्छा जागृत की इसके साथ ही देश के नौजवानों में आजादी के लिए जोश भरा।
देश की स्वतंत्रता के खातिर इन सपूतों ने काफी संघर्ष भी किया और हंसते-हंसते देश के खातिर प्राण न्योछावर कर दिए।
इन तीनों पक्के क्रांतिकारी दोस्तों से अंग्रेजी शासन भी खौफ खाती थी। अंग्रेज सरकार को डर लगने लगा था कि कहीं उन्हें यह देश छोड़ कर भागना नहीं पड़े।
आपको बता दें कि 30 अक्टूबर 1928 को हुए लाठी चार्ज से लाला लाजपत राय की मौत हो गई थी। जिसके बाद भगत सिंह ने अपने साथियों राजगुरु, सुखदेव, आजाद और जयगोपाल के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा और तेज कर दिया था।
भगत सिंह ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए अंग्रेज अफसर स्कॉट की हत्या की प्लानिंग भी की थी। पर हमले में अंग्रेस अफसर जे. पी. सैन्डर्स मारा गया। सैंडर्स हत्याकांड की जांच चलती रही, वहीं भगत सिंह आजादी की लड़ाई लड़ते रहे।
1929 में भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अंग्रेज सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए आज की संसद और उस वक्त की सेंट्रल असेंबली में ”इंकलाब जिंदाबाद” का नारे लगाते हुए बम फेंका।
जिसके बाद उनके खिलाफ हत्या का मुकदमा चला और बाद में सुखदेव और राजगुरु की भी गिरफ्तारी हो गई। 2 साल तक मुकदमा चला। लेकिन जब अंग्रेज हारते दिखे तो उन्होंने सैंडर्स हत्याकांड में बिना सबूत भगत सिंह को और कुछ अन्य मुकदमों में राजगुरु और सुखदेव को एकसाथ 24 मार्च 1931 को फांसी देने का ऐलान कर दिया।
इनकी फांसी की बात सुनकर लोग इतने भड़क चुके थे कि भारी भीड़ ने जेल को घेर लिया।
वहीं विद्रोह होने के डर से अंग्रेंजों ने तीनों को एक दिन पहले 23 मार्च 1931 को ही फांसी दे दी। इसी घटना के बाद 23 मार्च को भी शहीद दिवस के रुप में मनाया जाने लगा।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु इन तीनों की शहादत को पूरा देश सम्मान की नजर से देखता है और उनके त्याग और बलिदान को याद करता है।
”सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
देखना है जोर कितना बाजु-कातिल में है।।”
कुछ अन्य शहीद दिवस – Other Martyrs’ Day
13 जुलाई – 13 जुलाई 1931 में कश्मीर के महाराजा हरिसिंह के सामने प्रदर्शन के दौरान रॉयल सैनिकों ने 22 लोगों की हत्या कर दी थी। उनकी याद में जम्मू-कश्मीर में 13 जुलाई को शहीद दिवस मनाया जाता है।
17 नवंबर – लाला लाजपत राय की पुण्यतिथि को मनाने के लिए उड़ीसा में 17 नवंबर को शहीद दिवस मनाया जाता है।
19 नवंबर – मध्यप्रदेश के झांसी में रानी लक्ष्मीबाई के जन्मदिवस 19 नवंबर को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। ये उन लोगों को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है, जिन्होंने 1857 की क्रांति में अपने प्राणों की बलि दी थी।
देश के लिए अपनी जान गंवाने वाले भारत के महान क्रांतिकारी और वीर सपूतों को ज्ञानीपंडित की पूरी टीम की तरफ से शत-शत नमन।
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