Jatindra Mohan Sengupta
भारत को आजाद करने के लिए लाखों क्रांतिकारियों ने अपने अलग अलग रास्ते से कोशिश की थी। भारत को आजाद करने की शुरुवात तो असल में सन 1857 में ही हो चुकी थी। लेकिन इस शुरुवात को आगे ले जाने के लिए समय समय पर क्रांतिकारी का योगदान भी महत्वपूर्ण था।
क्रांतिकारियों के बिना इस लम्बी लड़ाई को कभी जीता नहीं जा सकता था और सभी लोग इस बात को अच्छी तरह से समझ भी चुके थे और इसीलिए वे हर दिन देश को किसी ना किसी तरीके से आजाद करने के लिए काम में लगे रहते थे। इसी काम को जारी रखने में और देश को स्वतन्त्र करने में बंगाल प्रान्त में भी कई क्रांतिकारी गतिविधि करते थे।
क्रांतिकारी जतिंद्र मोहन सेनगुप्त – Jatindra Mohan Sengupta
देश को आजादी दिलाने में बंगाल प्रान्त का बहुत ही बड़ा योगदान रहा है। इस प्रान्त में समय पड़ने पर कोई ना कोई क्रांतिकारी देश के लिए अपनी जान भी देने के लिए तैयार हो जाता था। एक ऐसे ही क्रांतिकारी की जानकारी हम आपको देने जा रहे जो इसी प्रान्त से थे जिन्होंने देश को आजाद करने के लिए अपना पूरा सहयोग दिया। आखिरी सास तक उन्होंने देश की सेवा की ऐसे महान देशभक्त जतिंद्र मोहन की जानकारी निचे दी गयी है।
जतिंद्र मोहन सेनगुप्त का जीवन परिचय – Jatindra Mohan Sengupta Biography
जतिंद्र मोहन सेनगुप्त का जन्म 22 फरवरी 1885 में बरमा के ज़मीनदार परिवार में हुआ था। उनका यह बरमा ब्रिटिश भारत के चिट्टागोंग जिले में आता था लेकिन आज चिट्टागोंग बांग्लादेश में स्थित है। उनके पिताजी मोहन सेनगुप्त एक वकील थे और वे बंगाल विधान परिषद के सदस्य थे।
जतिंद्र मोहन कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढाई करते थे। कॉलेज की पढाई पूरी करने के बाद में जतिंद्र मोहन कानून की डिग्री हासिल करने के लिए इंग्लैंड चले गए थे।
जतिंद्र मोहन सेनगुप्त के कार्य – Jatindra Mohan Sengupta Work
इंग्लैंड में रहने के बाद एक बार उनकी मुलाकात एडिथ एलेन ग्रे से हुई और बाद में उन्होंने उनसे शादी भी कर ली। शादी के बाद उनकी पत्नी का नाम बदलकर नेल्ली सेनगुप्त रखा गया।
कैंब्रिज के डाउनिंग कॉलेज में पढाई करने के बाद में जतिंद्र मोहन उनकी पत्नी के साथ में भारत आ गए थे। भारत में आने के बाद में उन्होंने बतौर बैरिस्टर के रूप में काम करना शुरू कर दिया था।
फरीदपुर में आयोजित किये गए बंगाल प्रांतीय सम्मलेन में उन्होंने चिट्टागोंग का प्रतिनिधित्व किया था और इस तरह से उनके राजनीती करियर की शुरुवात हुई थी। उसके बाद में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गये थे। उन्होंने बर्मा आयल कम्पनी के कर्मचारियों की यूनियन बनाने के लिए उन्हें इकट्ठा किया था।
सन 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बंगाल रिसेप्शन समिति के अध्यक्ष पद पर जतिंद्र मोहन का चयन किया गया था। उसी साल बर्मा आयल कम्पनी के कर्मचारियों ने हड़ताल की थी और जतिंद्र मोहन कर्मचारी यूनियन के सेक्रेटरी भी थे।
असहकार आन्दोलन में विशेष रूप से योगदान देने के लिए उन्होंने वकील का काम भी छोड़ दिया था क्यों की इस आन्दोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी कर रहे थे। सन 1923 में जतिंद्र मोहन बंगाल विधानसभा के सदस्य बन गए थे।
सन 1925 में चित्तरंजन दास की मृत्यु होने के बाद में बंगाल स्वराज पार्टी के अध्यक्ष के रूप में जतिंद्र मोहन को चुना गया था। वे बंगाल प्रांतीय कांग्रेस समिति के भी अध्यक्ष बन गए थे। जतिंद्र मोहन सेनगुप्त ने 10 अप्रैल 1929 से 29 अप्रैल 1930 के दौरान कलकत्ता के मेयर पद पर भी काम किया था। लोगो को अंग्रेज सरकार के खिलाफ भड़काने और भारत-बर्मा का विभाजन का विरोध करने के आरोप मे उन्हें 30 अप्रैल 1930 को रंगून में आयोजित एक समारोह में गिरफ्तार कर लिया गया था।
जतिंद्र मोहन सेनगुप्त की मृत्यु – Jatindra Mohan Sengupta Death
जतिंद्र मोहन राजनितिक गतिविधियों में काफी सक्रिय रहते थे इसीलिए उन्हें बार बार गिरफ्तार किया जाता था। जनवरी 1932 में उन्हें गिरफ्तार किया गया और उन्हें पुणे में बंदी बनाकर रखा गया और फिर बाद मे उन्हें दार्जिलिंग में कैद करके रखा गया। बाद में फिर उन्हें रांची में भेजा गया। रांची में पहुचने के बाद उनकी तबियत ख़राब होना शुरू हो गयी थी। 23 जुलाई 1933 को जब जतिंद्र मोहन रांची के जेल में थे उस वक्त उनकी मृत्यु हो गयी।
जतिंद्र मोहन सेनगुप्त (1885-1933) एक महान भारतीय क्रांतिकारी थे जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई थी।
जतिंद्र मोहन कानून की पढाई करने के लिए इंग्लैंड गए थे। लेकिन जब वे इंग्लैंड से भारत में आये थे उन्होंने अपनी इस कानून की पढाई से देश की बहुत सेवा। उस समय में क्रांतिकारियों को किसी झूटे मामले में फसाकर जेल में डाल दिया जाता था। लेकिन ऐसे सच्चे देशभक्तों को बचाना बहुत जरुरी था।
इसीलिए जतिंद्र मोहन ऐसे क्रांतिकारियों के केसेस लड़ते थे और उन्हें झूटे मामले में कैद होने से बचाते थे। उन्होंने कई सारे क्रांतिकारियों को इसी तरह से बचाया था। वे राजनीती के माध्यम से भी देश को हर तरह से आजाद करने की कोशिश करते थे और उसके लिए उन्हें कई बार गिरफ्तार भी किया था।
जतिंद्र मोहन सेनगुप्त ने अपना सारा जीवन देश की सेवा में लगा दिया था और जेल में ही उनकी मृत्यु हो गयी थी।
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