Maluk Das – मलूक दास भारत के एक महान संतकवि थे। उन्होंने कविता के माध्यम से लोगो को सुधारने की कोशिश की। जाती और धर्म के नाम पर भेदभाव करने वाले लोगो को उन्होंने अच्छी सिख दी। वह हमेशा केवल यही बात दोहराते थे की सबका भगवान एक ही है।
महान संतकवि मलूक दास – Maluk Das Biography
वह किसी धर्म के व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करते थे। सबके साथ में समानता का व्यवहार करते थे। सभी धर्म के लोग उनके शिष्य थे। मुग़ल सम्राट औरंगजेब भी उन्हें मानते थे और उनका बहुत सम्मान करते थे। वह कविताओ के माध्यम से बताते थे की हम सबका भगवान एक ही है। वह समाज में शांति बनाये रखने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते थे।
मलूक दास का जन्म अलाहाबाद के नजदीक कदा में हुआ था। जो सिख मीराबाई, चैतन्य, कबीर, रूमी और गुरु नानक ने दी थी वही बात मलूक दास भी समझाते थे। समाज में शांतता बनाये रखने के लिए और उसे सुचारू रूप से चलाने के लिए वह कविताओ के माध्यम से सामाजिक सुधारना, धार्मिक सहिष्णुता का महत्व लोगो तक पहुचाने का काम करते थे।
उनकी ख्याति बहुत दूर तक फैली हुई थी। अन्य धर्म के लोग भी मलूक दास की बातो को, उनकी पवित्रता को बहुत मानते थे। मुग़ल बादशाह औरंगजेब भी मलूक दास का बहुत सम्मान करते थे और इसीलिए औरंगजेब ने उनके के लिए दो गाव भी भेट स्वरूप दिए थे जहापर मलूक दास की गद्दी की व्यवस्था हो सके।
अध्यात्मिक क्षेत्र में उन्होंने जो कार्य किया था जिसकी वजह से सभी उनकी तरफ़ आकर्षित होते थे।
“जाती पाती पूछे नाही कोई,
हरी को भजे सो हरी का होई”
इस बात में ही वह हमेशा विश्वास रखते थे। इसका मतलब यह होता है की भगवान के घर में कोई जाती पाती नहीं होती, जो भी इन्सान भगवान का नाम लेता है भगवान उसका ही हो जाता है। इसीलिए सभी तरह के लोग उनसे मिलने आते थे।
मलूक दास जी ने अध्यात्म के क्षेत्र में बहुत बाद योगदान दिया है। उन्होंने खुद भगवान की अनुभूति की है। उन्होंने सत्यम, शिवम् और सुन्दरम जैसे महान गुणो की प्राप्ति करके भगवान को खुद देखा था।
मलूक दास सच में एक महान संत थे जो अपने भक्तों और शिष्यों में कभी भेदभाव नहीं करते थे। एक मुस्लीम अधिकारी भी उनका बहुत बड़ा शिष्य था। उन्होंने उस शिष्य को एक नया नाम ‘मीर माधव’ भी दिया था। उस शिष्य एक खास बात यह है की उसकी समाधी भी मलूक दास की समाधी के बिलकुल पास में ही है।
मलूक दास के दोहें – Maluk das ke Dohe
भेष फकीरी जे करें, मन नहिं आवै हाथ ।
दिल फकीर जे हो रहे, साहेब तिनके साथ ॥
जो तेरे घर प्रेम है, तो कहि कहि न सुनाव ।
अंतर्जामी जानिहै, अंतरगत का भाव ॥
हरी डारि ना तोड़िए, लागै छूरा बान ।
दास मलूका यों कहै, अपना-सा जिव जान ॥
दया-धर्म हिरदै बसे, बोले अमरत बैन ।
तेई ऊँचे जानिए, जिनके नीचे नैन ॥
सुंदर देही देखि कै, उपजत है अनुराग।
मढ़ी न होती चाम की, तो जीवन खाते काग।।
प्रभुता ही को सब मरै, प्रभु को मरै न कोय।
जो कोई प्रभु को मरै, तो प्रभुता दासी होय।।
सुमिरन ऐसा कीजिए, दूजा लखै न कोय।
ओंठ न फरकत देखिये, प्रेम राखिये गोय।।
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