Poem on Earth Day in Hindi
हम सभी जानते हैं की सिर्फ पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह हैं जहा पर ही जीवन हैं, लेकिन धीरे धीरे हम यह भूल रहे हैं की अगर यह पृथ्वी सुंदर और खिलखिलाती रहेंगी तभी यहाँ का हर जीव और खास कर मनुष्य ख़ुशहाल, तंदरुस्त रहेंगा। आज हम पृथ्वी पर कुछ कवितायेँ – Poem on Earth Day लायें हैं, आशा हैं आपको जरुर पसंद आएँगी।
पृथ्वी पर कुछ कवितायेँ – Poem on Earth Day
Poem on Earth 1
“माटी”
माटी से ही जन्म हुआ है!
माटी में ही मिल जाना है!!
धरती से ही जीवन अपना!
धरती पर ही सजे सब सपना!!
सब जीव जन्तु धरती पर रहते!
गंगा यमुना यही पर बहते!!
सब्जी फल यहाँ ही उगते!
धन फसल यहाँ ही उपजे!!
धरती माँ की देख रेख कर!
हमको फर्ज़ निभाना है!!
~ अनुष्का सूरी
तेजी से प्रदूषित हो रहे पर्यवारण को सुरक्षित करने और जीवनदाता ग्रह पृथ्वी को संरक्षित करने के लिए लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता है।
इस अवसर पर कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें कुछ प्रेरक कविताएं और स्लोगन द्धारा पृथ्वी के महत्व को समझाया जाता है और पृथ्वी के संरक्षण के उपायों के बारे में बताया जाता है।
वहीं इस पोस्ट में हम आपको पृथ्वी दिवस पर लिखी गईं कुछ खास कविताओं – Poem on Earth Day के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें पढ़कर आपको पृथ्वी के महत्व को समझने में आसानी होगी और इसे संरक्षित करने के लिए आपको प्रोत्साहन मिलेगा।
Dharti par Kavita
“धरती की बस यही पुकार”
धरती कह रही हैं बार बार
सुन लो मनुष्य मेरी पुकार,
बड़े बड़े महलों को बना के
मत डालो मुझ पर भार
पेड़ पौधों को नष्ट करके,
मत उजाड़ो मेरा संसार,
धरती की बस यही पुकार!!
मैं हु सबकी जीवन दाता
मैं हु सबकी भाग्य विधाता,
करने डॉ मुझे सब जीवो पर उपकार,
मत करो मेरे पहाड़ों पर विस्फ़ोटक वार,
मत उजाड़ो मेरा संसार,
धरती की बस यही पुकार!!
सुंदर सुंदर बाग़ और बगीचे हैं मेरे,
हे मनुष्य ये सब काम आयेंगें तेरे,
मेरी मिटटी में पला बड़ा तू,
तूने यहीं अपना संसार गाढ़ा हैं,
फिर से कर ले तू विचार,
मत उजाड़ मेरा संसार,
धरती की बस यही पुकार!!
मैं रूठी तो जग रूठा,
अगर मेरे सब्र का बांध टुटा,
नहीं बचेंगा कोई,
मेरे साथ अगर अन्याय करोंगे,
तो न्याय कह से पाओंगे
कभी बाढ़ तो कभी सुखा,
और भूकंप जैसी आपदा सहते जाओंगे,
धरती की बस यहीं पुकार,
मत उजाड़ों मेरा संसार!!
Poem on Prithvi in Hindi
“आओ, धरती बचाएँ।”
बड़ी-बड़ी बातों से, नहीं बचेगी धरती
वह बचेगी, छोटी-छोटी कोशिशों से
हम नहीं फेंकें कचरा इधर-उधर, स्वच्छ रहेगी धरती,
हम नहीं खोदें गड्ढे धरती पर, स्वस्थ रहेगी धरती,
हम नहीं होने दें उत्सर्जित विषैली गैसें, प्रदूषणमुक्त रहेगी धरती,
हम नहीं काटे जंगल, पानीदार रहेगी धरती,
धरती को पानीदार बनाएँ, आओ, धरती बचाएँ।
जाहिर है कि जब हमारी पृथ्वी संरक्षित होगी तभी हमारा जीवन में खुशहाली आएगी और हमारा जीवन सुरक्षित रहेगा, इसलिए धरती मां की अहमियत को समझना हम सबका मूल कर्तव्य है, क्योंकि धरती पर रहकर ही हम सभी मनुष्य, जीव-जन्तु, पेड़-पौधे, वनस्पति आदि का कल्याण संभव है।
वहीं सिर्फ पृथ्वी ही ब्राहांड का एकमात्र ऐसा ग्रह है जो, जीवन जीने के लिए हवा, पानी, भोजन समेत तमाम उपयोगी साधन उपलब्ध करवाती है।
इसलिए पृथ्वी दिवस पर लिखी गई इन कविताओं – Poem on Earth Day के माध्यम से हम सभी को धरती मां को संरक्षित करने के लिए प्रेरणा लेने की जरूरत है और ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधे लगाने, वाहनों के सीमित इस्तेमाल करने समेत औद्योगीकरण की वृद्धि को रोकने की दिशा में सशक्त कदम उठाए जाने का संकल्प लेने की भी जरूरत है।
वहीं अगर इन कविताओं को आप अपनी सोशल मीडिया साइट्स पर शेयर करेंगे तो ज्यादा से ज्यादा लोग पृथ्वी को संरक्षित के लिए आगे बढ़ सकेंगे और धरती के आस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे को कम करने में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभा सकेंगे ।
Poem on Prithvi Diwas
“सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।”
ग्रह-ग्रह पर लहराता सागर
ग्रह-ग्रह पर धरती है उर्वर,
ग्रह-ग्रह पर बिछती हरियाली,
ग्रह-ग्रह पर तनता है अम्बर,
ग्रह-ग्रह पर बादल छाते हैं, ग्रह-ग्रह पर है वर्षा होती।
सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।
पृथ्वी पर भी नीला सागर,
पृथ्वी पर भी धरती उर्वर,
पृथ्वी पर भी शस्य उपजता,
पृथ्वी पर भी श्यामल अंबर,
किंतु यहाँ ये कारण रण के देख धरणि यह धीरज खोती।
सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।
सूर्य निकलता, पृथ्वी हँसती,
चाँद निकलता, वह मुसकाती,
चिड़ियाँ गातीं सांझ सकारे,
यह पृथ्वी कितना सुख पाती;
अगर न इसके वक्षस्थल पर यह दूषित मानवता होती।
सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।
Poem on Earth 5
“हमको सबक सिखाती धरती”
ऊँची धरती नीची धरती,
नीली, लाल, गुलाबी धरती।
हरे-भरे वृक्षों से सज्जित,
मस्ती में लहराती धरती।
कल -कल नीर बहाती धरती,
शीतल पवन चलाती धरती,
कभी जो चढ़े शैल शिखर तो,
कभी सिन्धु खा जाती धरती।
अच्छी -अच्छी फसलें देकर,
मानव को हर्षाती धरती,
हीरा, पन्ना, मोती, माणिक,
जैसे रतन लुटाती धरती।
भेद न करती उंच-नीच का,
सबका बोझ उठाती धरती,
अंत-काल में हर प्राणी को,
अपनी गोद में सुलाती धरती।
जाती धर्म से ऊपर उठ कर,
सबको गले लगाती धरती,
रहे प्रेम से इस धरती पर,
हमको सबक सिखाती धरती।
~ डॉ. परशुराम शुक्ल
Poem on Earth 6
“धरती माता हमारी जीवन दाता”
धरती माँ हमारी जीवन दाता
इस माता से जुड़ा हुआ हैं सारे जहाँ का नाता…!!
जन्म हुआ यही हमारा जीवन भी संवारा हमारा,
हमारी धरती बड़ी अपार, इसमें फैला हैं सारा संसार…!!
धरती को नहीं जरा भी अभिमान, हमारी धरती बड़ी महान,
धरती के हम पर अनगिनत उपकार, ये सब हैं धरती का परोपका…!!
सुंदर सुंदर बाग़ बगीचें हैं धरती पर, खुबसूरत पर्वतों का नजारा हैं धरती पर,
नदियों की बहती धारा हैं हमारे इस धरती पर…!!
सारे रिश्तें नाते हैं इस धरती पर,
बड़े बड़े महल और छोटे छोटे मकान हैं इस धरती पर…!!
खेतों में हरी भरी फ़सलो की बहार है इस धरती पर,
पेड़ों पर ची ची करती चिड़िया की पुकार हैं इस धरती पर…!!
सब कुछ हरा भरा हैं इस धरती पर,
इसीलिए धरती माता हमारी जीवन दाता,
इस माता से जुड़ा हुआ हैं सारे जग का नाता…!!
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