डौल गोविन्द मंदिर – Doul Govinda Temple
डौल गोविन्द मंदिर का निर्माण 150 साल पहले किया गया था और बाद में फिर सन 1966 में इस मंदिर को फिर से बनाया गया जिसके कारण यह मंदिर बिलकुल नया दिखता है। यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित यह मंदिर भारत के आसाम में कामरूप जिले में स्थित हैं।
डौल गोविन्द मंदिर का इतिहास – Doul Govinda Temple History
डौल गोविन्द मंदिर से जुडी एक बहुत ही पुराणी कहानी है। उस कहानी के अनुसार एक बार नलबारी के गंगा राम बरुआ ने भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को संध्यासागर से लाया और उसे राजादुआर के मंदिर में स्थापित किया था।
बाद में फिर गंगा राम बरुआ हर रोज भगवान की पूजा और अर्चना करता था। तभी से ही इस मंदिर में हर रोज भगवान की पूजा नियमित रूप से की जाती है और होली का त्यौहार मनाया जाता है।
यहाँ का जो पुराना मंदिर है उसका निर्माण देडसो साल भी पहले किया गया था। लेकिन बाद में फिर 1966 में इस मंदिर को फिर से बनवाया गया।
अभी इस मंदिर की देखभाल करने का काम 25 लोगो की समिति करती है।
सुबह सात बजे ही डौल गोविन्द मंदिर को खोला जाता है और भगवान पूजा की जाती है। इस मंदिर का पुजारी पहले भगवान को स्नान करवाता है और फिर भगवान की अर्चना करता है।
पूजा करने के एक घंटे के बाद में भक्तों का मंदिर में आना शुरू हो जाता है, पुरे दिन भर लोग भगवान के दर्शन लेते है। इसी बिच दोपहर के समय में मंदिर कुछ समय के लिए बंद किया जाता है।
शाम के समय में कोई भक्तिपूर्ण गीत या कीर्तन से भगवान की आरती की जाती है। हर रोज दोपहर के समय सभी भक्तों को प्रसाद के बाद भोग भी दिया जाता है। बहुत सारे भक्त रोज भोग के लिए कुछ ना कुछ मंदिर को दान देते है। ऐसे भक्तों को भोग का थोड़ासा हिस्सा घर ले जाने की अनुमति दी जाती है।
इस मंदिर में पुरे साल भर कुछ ना कुछ उत्सव मनाना शुरू ही रहता है। लेकिन इस मंदिर की सबसे रोचक बात यह है की यहापर होली और जन्माष्टमी का त्यौहार बड़े आनंद और उल्हास के साथ मनाया जाता है।
यहापर जो होली का त्यौहार मनाया जाता है वो केवल एक दिन नहीं बल्की पुरे पाच दिन तक मनाया जाता है। होली के पाच दिनों में अलग अलग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जो सबके लिए एक नयी बात है। इस त्यौहार को मनाने के लिए सारे तीर्थयात्री आते है।
होली जिस तरह से मनाई जाती है बिलकुल उसी तरह जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। इसी वजह से ही मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त लोग आते है। जन्माष्टमी के दौरान यहापर पूरी रात भर ‘पूजा’ और ‘होम यज्ञ’ का आयोजान किया जाता है।
इस मंदिर में माघ पूर्णिमा का उत्सव ही बड़े आनंद से मनाया जाता है। इस त्यौहार के दौरान भक्तों में ‘भोग’ का प्रसाद दिया जाता है।
डौल गोविन्द मंदिर का नाम पढ़कर ही हम बड़ी आसानी से बता सकते है की यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण वासुदेव का है। जब कोई मंदिर गोविन्द का हो, या श्री कृष्ण का हो, और तब वहापर भगवान की जन्माष्टमी ना मनाई जाए ऐसा हो ही नहीं सकता।
इस नियम से यह मंदिर भी बंधा हुआ है। इसीलिए जब भी हर साल जन्माष्टमी आती है तो सारे भक्त सब कुछ भूलकर भगवान की अष्टमी मनाने में लग जाते है। जन्माष्टमी के दौरान यहाँ पर बहुत बड़ी पूजा का आयोजन किया जाता है, साथ ही उत्सव के दौरान एक बहुत बड़े और भव्य यज्ञ का भी आयोजन किया जाता है।
उस यज्ञ के दौरान मंदिर का पूरा नजारा ही अनोखा बन जाता है।
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great information dude ..this is very informative . great job
hey friend, es se pehle mai es temple ke history ke bare mai nhi janta tha ..thanks for giving information about the temple history.