Shahaji Raje Bhosale – शहाजी राजे भोसले को हम सभी सम्मान से शहाजी राजे भोसले कहते है। शहाजी राजे भोसले वेरुल के राजा के बेटे और मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता थे।
शहाजी राजे भोसले – Shahaji Raje Bhosale History
शहाजी राजे भोसले मराठा योद्धा मालोजी भोसले के बेटे थे। मालोजी एक बहुत ही सक्षम और बहादुर सरदार थे और इसीलिए उन्हें सर गिरोह बना दिया गया था और साथ ही पुणे और सुपे जिले का जागीर भी सौपा गया था। तब मालोजी भोसले अहमदनगर के निज़ाम शाह के दरबार के सदस्य थे। बहुत लम्बे समय तक मालोजी राजे को कोई बेटा नहीं था। फिर कुछ समय पश्चात उन्हें दो लड़के हुए।
मालोजी उन दोनों लडको के नाम शहाजी राजे और शरीफजी रखा था। जब शहाजी राजे छोटे थे तभी उनकी शादी जिजाबाई से कर दी गयी थी। जिजाबाई लखुजी जाधव की बेटी थी और वो भी अहमदनगर के निज़ाम शाह के मराठा सरदार थे।
जब मुग़ल दक्खन पे हमला करनेवाले थे तब शहाजी राजे भोसले ने कुछ समय के लिए मुग़ल सेना में काम किया था। उस समय मुग़ल साम्राज्य के बादशाह शाहजहान का शासन था। लेकिन कुछ समय बाद जब उनके जागीर उनसे छीन लिए गए तो उन्होंने सन 1632 में बीजापुर के सुलतान की मदत से पुने और सुपे जागीर फिर से हासिल किये।
बीजापुर ने जब केम्पे गोडा 3 पर हमला किया था, तब सन 1638 में उन्हें बंगलौर का जागीर भी प्राप्त हुआ। आखिरी में वो बीजापुर के प्रमुख बन गए थे।
एक बार जब शहाजी राजे महुली के किले में थे तब उन्हें चारो तरफ़ से घेर लिया गया था। मुग़ल की ताकत से डर कर पोर्तुगीज ने भी समुन्दर के रास्ते से शहाजी राजे की मदत नहीं की।
शहाजी राजे जितने बहादुर और निडर योद्धा थे उससे भी ज्यादा एक समझदार व्यक्ति थे। इस युद्ध में शहाजी राजे ने आखिर तक लड़ाई लड़ी। उस लड़ाई में सब कुछ ठीक हो रहा था लेकिन मुघलो ने अचानक निज़ाम के छोटेसे लड़के मोर्तजा को अपने कब्जे में कर लिया था। मगर उस छोटेसे बच्चे की जान बचने के लिए मुघलो ने पूरी निजामशाही का राज्य मांग लिया था। मगर उस बच्चे के खातिर शहाजी राजे ने मुघलो को पूरा राज्य दे डाला मगर बच्चे की जान बचा ली।
जिसके कारण पूरी निजामशाही ख़तम हो गयी थी। शहाजी राजे किसी भी हालत में छोटेसे मोर्तजा निजाम को बचाना चाहते थे इसीलिए उन्होंने उसे शाहजहाँ को सौप दिया था।
शाहजहाँ ने भी बहुत सावधानी बरतते हुए शहाजी राजे को दक्षिण में भेज दिया था क्यों की वो शाहजहाँ के लिए कोई खतरा ना पैदा कर सके। लेकिन शहाजी राजे ने वहापर भी खुदकी काबिलियत पर आदिलशाही में भी सबसे ऊपर का पद हासिल कर लिया था। वहापर शहाजी राजे को बंगलुरु में भेजा गया था और वहासे वो जागीर संभालते थे। यह शहाजी राजे के जिंदगी का एक पड़ाव था।
सन 1638 मे बीजापुर की सेना का नेतृत्व करते हुए रानादुल्ला खान और शहाजी राजे ने केम्पे गोडा 3 को लड़ाई में पूरी तरह से हरा दिया था और बाद में फिर बंगलौर का जागीर शहाजी राजे को दिया गया था। शहाजी राजे ने खुद के नेतृत्व में कई सारी लड़ाई लड़ी और दक्षिण के बहुत सारे राजा को लड़ाई में मात दी थी।
लेकिन जितने भी राजा को शहाजी राजे ने हराया था उन सबको दंड देने या फासी देने की बजाय उन्होंने उन सब राजा को माफ़ कर दिया और उनके साथ मित्रता बढाकर उनसे जब भी काम पड़ने पर उनसे लश्करी मदत लेने का आश्वासन प्राप्त कर लिया था।
आगे बंगलौर से शहाजी राजे के अलग ही जिंदगी की शुरुवात होती है। उन्होंने पत्नी जिजाबाई और अपने छोटे बेटे शिवाजी महाराज को पुणे का जागीर सँभालने के लिए पुणे भेज दिया था।
सुलतान का शहाजी राजे पर पूरा भरोसा था वो शहाजी राजे को राज्य का आधार मानते थे। लेकिन कुछ समय बाद ही शिवाजी महाराज ने पुणे के आजूबाजू में जिस प्रदेश पर आदिलशाह का नियंत्रण था उनपर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया था।
शिवाजी महाराज की हरकतों को देखकर आदिलशाह ने शहाजी राजे को फसकर जेल में डाल दिया था क्यों की उसे लगा था शहाजी राजे ने ही उसके बेटे शिवाजी को ऐसा काम करने के लिए प्रेरित किया होगा। जल्द ही उसने शिवाजी महाराज और उनके भाई संभाजी महाराज को नियंत्रण में लाने के लिए दो बार लड़ाई लड़ी थी लेकिन शिवाजी महाराज ने आदिलशाह की सेना को लड़ाई में पूरी तरह से हरा दिया था।
कुछ समय गुजरने के बाद आदिलशाह ने शहाजी राजे को कैद से रिहा कर दिया था।
लेकिन एक लड़ाई के दौरान अफजल खान के विश्वासघात के कारण शिवाजी महाराज के बड़े भाई संभाजी मारा गया। उसके बाद ही शिवाजी ने खुद अफजल खान को मार डाला था।
शहाजी राजे महाराज ने शुरुवात के कुछ लड़ाई में शिवाजी महाराज को सभी तरह की मदत की थी खास तौर पर जब शिवाजी ने अफजल खान के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी तब शहाजी राजे ने शिवाजी महाराज का मार्गदर्शन किया था।
लेकिन घुड़सवारी करते समय सन 1665 में शहाजी राजे महाराज की घोड़ेपर से निचे गिरने से मौत हो गयी।
बहुत ही पराक्रमी और शुर होने के कारण उन्होंने अपने भोसले परिवार का नाम बहुत बड़ी उचाई पर पंहुचा दिया था। तंजोर, कोल्हापुर और सातारा का पूरा प्रदेश भोसले परिवार में नियंत्रण में था।
मराठा साम्राज्य की असली स्थापना छत्रपति शिवाजी महाराज ने की थी इस बात को सभी जानते है। मगर हम सब जानते है की कोई भी बड़े काम की शुरुवात किसी छोटेसे काम से ही शुरू होती है। ठीक उसी तरह शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज्य का सपना पूरा करने के लिए शहाजी राजे महाराज ने बहुत बड़ा योगदान दिया था।
उन्होंने बचपन से ही शिवाजी सहित अपने सभी बेटों को अच्छा प्रशिक्षण दिया था जिसके कारण सभी बेटें एक अच्छे प्रशासक, योद्धा बन सके। साथ ही उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज को अपने संस्कृति और सभ्यता का ज्ञान भी दिया था। जिसके कारण एक मजबूत और हिन्दवी राज्य की स्थापना हो सकी। अगर शहाजी राजे महाराज नहीं होते तो छत्रपति शिवाजी महाराज भी नहीं होते थे।
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