सर्वश्रेष्ट संत समर्थ रामदास | Samarth Ramdas

Samarth Ramdas – समर्थ रामदास सारे संसार के सर्वश्रेष्ट संत में से एक थे। वह शिवाजी महाराज के प्रेरणा स्रोत थे और समर्थ रामदास संत तुकाराम के समकालीन थे। वह भगवान हनुमान और प्रभु राम के बहुत बड़े भक्त थे। जब वो छोटे थे तब उन्हें प्रभु श्री राम के दर्शन हुए थे।
Samarth Ramdas

सर्वश्रेष्ट संत समर्थ रामदास – Samarth Ramdas

समर्थ रामदास का जन्म सन 1608 में महाराष्ट्र के जांब गाव में हुआ था। उनका मूल नाम नारायण था. और वह सूर्याजी पन्त और रेनुकाबाई के पुत्र थे। बचपन से ही रामदास ने हिन्दू ग्रंथो का ज्ञान आत्मसात किया और ध्यान और धार्मिक पढाई में उन्होंने अपनी रूचि बढाई।

एक दिन उन्होने खुदको ही एक कमरे में खुद को बंद कर दिया और भगवान पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। जब उनकी मा ने उनसे पूछा की वो बंद कमरे में क्या कर रहे थे तो उन्होंने जवाब दिया की वो ध्यान कर रहे थे और संसार के कल्याण के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे। अपने पुत्र का धार्मिक कार्यो की तरफ़ झुकाव देख कर मा आश्चर्यचकित हुई और उन्हें आनंद भी हुआ।

जब वो 12 साल के थे तब उनके शादी की सारी तैयारिया पूरी हो चुकी थी। वे दुल्हन के सामने बैठे थे। वहा पर दूल्हा और दुल्हन के बिच में एक कपडा था। जब पंडितों ने “सावधान” शब्द का उच्चारण किया उसी क्षण रामदास वहा से भाग गए।

वो इस भौतिक दुनिया से अलग हो गए और उन्होंने जीवनकाल भिक्षा पर गुजारना शुरू कर दिया। लेकिन उन्होंने कभी धन स्वीकार नहीं किया। वो सारे संसार को राम का रूप मानते थे। वो दिन के चोबीसो घंटे राम के मंत्र का ही जप किया करते थे।

अपने आखिरी दिनों में रामदास ने अपना आधा समय साहित्यिक गतिविधि में और आधा समय मठ बाधने में और और शिष्यों को निर्माण करने में लगा दिया वो भी उत्तर और दक्षिण दोनोही दिशा में।

हिन्दू धर्म के पुनर्वास के उन्होंने किए हुए कार्य असाधारण है और इसीलिए उन्हें श्रद्धांजलि के रूप में लोग उन्हें “समर्थ”( सर्वशक्तिमान ) के नाम से पहचानते है। यह नाम उन्हें सर्वथा उचित है। महाराष्ट्र के इस महान गुरु ने अपना अंतिम श्वास सन 1682 में सज्जनगड किले पर लिया। यह किला सातारा जिले में आता है जो की शिवाजी ने समर्थ रामदास को रहने के लिए दिया था।

समर्थ रामदास की साहित्यिक कृतिया – Samarth Ramdas Literary works

  • दासबोध।
  • मनाचे श्लोक (कविताये जो मन को संबोधित है)।
  • करुनाष्टकास ( भगवान के भजन)।
  • रामायण( इसमें केवल राम का लंका पर विजय और रावण पर विजय ही वर्णित है)।

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4 COMMENTS

  1. संत समर्थ रामदास के बारे में आपने बहुत अच्छी जानकारी दी | उन का पूरा जीवन ईश भक्ति व् समाज कल्याण को समर्पित रहा | जैसा की आपने उल्लेख किया की उन्होंने कभी धन नहीं लिया व् भिक्षा पर ही सारा जीवन व्यतीत किया | आज भी इस परम्परा को उनके शिष्य निभा रहे है | वह उनकी समाधी दिवस को दास नवमी के रूप में मनाते है व् जगह – जगह घूम कर भिक्षा ग्रहण करते हैं | उसी भिक्षा से सज्जनगढ़ की व्यवस्था चलती है | आध्यात्म के मार्ग पर चलने वाले महान गुरु संत समर्थ रामदास को शत – शत नमन |

    • मनीष मिश्राजी आप ने जो इच्छा जताई है वह जल्द पूरी होगी। जल्द ही हम हमारी वेबसाइट पर वेदों पर जानकारी प्रकाशित करेंगे। हम यही चाहते है की हमारे पाठको को महत्वपूर्ण जानकारी जल्द से जल्द मिल जाए। आप इसी तरह वेबसाइट पर बने रहे ताकि आपको वेदों पर लिखा गया आर्टिकल पढने को मिले।

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