Baidyanath Temple – बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर को साधारणतः बाबा बैद्यनाथ धाम – Baba Baidyanath Dham और बैद्यनाथ धाम – Baidyanath Dham के नाम से भी जाना जाता है।
यह भगवान शिव के पवित्र 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर भारत के झारखण्ड जिले के देवगढ़ में बना हुआ है। मंदिर के परिसर में बाबा बैद्यनाथ के मुख्य मंदिर के साथ-साथ दुसरे 21 मंदिर भी है।
“बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग” मंदिर – Baidyanath Temple
हिन्दू मान्यताओ के अनुसार दानव राजा रावण ने वरदान पाने के लिए इसी मंदिर में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी। रावण ने एक-एक करके अपने दस सिर भगवान शिव पर न्योछावर कर दिए थे। इससे खुश होकर भगवान शिव ने घायल रावण का इलाज किया।
उस समय भगवान शिव ने एक डॉक्टर का काम किया, इसीलिए उन्होंने वैद्य भी कहा जाता है। भगवान शिव के इसी पहलू की वजह से मंदिर का नाम बैद्यनाथ रखा गया।
“बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर” का इतिहास – Baidyanath Temple History
आंठवी शताब्दी में अंतिम गुप्त सम्राट आदित्यसेन गुप्त ने यहाँ शासन किया था। तभी से बाबा धाम मंदिर काफी प्रसिद्ध है।
अकबर के शासनकाल में मान सिंह अकबर के दरबार से जुड़े हुए थे। मानसिंह लंबे समय तक गिधौर साम्राज्य से जुड़े हुए थे और बिहार के बहुत से शासको से भी उन्होंने संबंध बना रखे थे। मान सिंह को बाबाधाम में काफी रूचि थी, वहाँ उन्होंने एक टैंक भी बनवाया जिसे आज मानसरोवर के नाम से भी जाना जाता है।
मंदिर में लगे शिलालेखो से यह भी ज्ञात होता है की इस मंदिर का निर्माण पुजारी रघुनाथ ओझा की प्रार्थना पर किया गया था।
सूत्रों के अनुसार पूरण मल ने मंदिर की मरम्मत करवाई थी। रघुनाथ ओझा इन शिलालेखो से नाराज थे लेकिन वे पूरण मल का विरोध नही कर पाए। जब पूरण मल चले गए तब उन्होंने वहाँ एक बरामदा बनवाया और खुद के शिलालेख स्थापित किये।
बैद्यनाथ की तीर्थयात्रा मुस्लिम काल में भी प्रसिद्ध थी। 1695 और 1699 AD के बीच खुलासती-त-त्वारीख में भी हमें बैद्यनाथ की यात्रा का उल्लेख दिखाई देता है।
खुलासती-त-त्वारीख में लिखी गयी जानकारी के अनुसार बाबाधाम के मंदिर को प्राचीन समय में भी काफी महत्त्व दिया जाता था।
18 वी शताब्दी में गिधौर के महाराजा को राजनितिक उथल-पुथल का सामना करना पड़ा। इस समय उन्हें बीरभूम के नबाब से लड़ना पड़ा। इसके बाद मुहम्मदन सरकार के अंतर्गत मंदिर के मुख्य पुजारी को बीरभूम के नबाब को एक निश्चित राशी प्रतिमाह देनी पड़ती और इसके बाद मंदिर का पूरा शासन प्रबंध पुजारी के हांथो में ही सौप दिया जाता था।
कुछ सालो तक नबाब ने बाबाधाम पर शासन किया। परिणामस्वरूप कुछ समय बाद गिधौर के महाराजा ने नबाब को पराजित कर ही दिया और जबतक ईस्ट इंडिया कंपनी भारत नही आयी तबतक उन्होंने बाबाधाम पर शासन किया।
1757 में प्लासी के युद्ध के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियो का ध्यान इस मंदिर पर पड़ा। एक अंग्रेजी अधिकारी कीटिंग ने अपने कुछ आदमियों को मंदिर का शासन प्रबंध देखने के लिए भी भेजा। बीरभूम के पहले अंग्रेजी कलेक्टर मिस्टर कीटिंग मंदिर के शासन प्रबंध में रूचि लेने लगे थे।
1788 में मिस्टर कीटिंग स्वयं बाबाधाम आए और उन्होंने पुजारी के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप की निति को जबरदस्ती बलपूर्वक बंद करवा दिया। इसके बाद उन्होंने मंदिर के सभी अधिकार और नियंत्रण की जिम्मेदारी सर्वोच्च पुजारी को सौप दी।
श्रावण मेला, देवगढ़ – Shrawan Mela Deoghar
हर साल लाखो तीर्थयात्री इस धार्मिक स्थल के दर्शन के लिए आते है। जुलाई और अगस्त के बीच श्रावण महीने में यहाँ एक प्रसिद्ध मेले का आयोजन किया जाता है।
भारत के अलग-अलग भागो से यहाँ 10 मिलियन से भी ज्यादा लोग आते है और सुल्तानगंज से गंगा नदी का पानी लेकर भगवान शिव के पिण्ड को चढाते है, जो देवगढ और बैद्यनाथ से 108 किलोमीटर दूर है।
कावडीयो में कई लोग पैदल यात्रा कर (नंगे पाव चलकर) गंगा के पानी को लाते है। कावड़ियो की लम्बी कतार हमें यहाँ देखने मिलती है।
भगवे वस्त्र पहले लाखो लोग नंगे पाव पैदल चलकर 108 किलोमीटर की यात्रा करते है। यहाँ बैद्यनाथ मंदिर के दर्शन करने के बाद यात्री बासुकीनाथ मंदिर के भी दर्शन करते है।
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