Omkareshwar – ओंकारेश्वर भगवान शिव को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह एक है। कहा जाता है की यह द्वीप हिन्दू चिन्ह ॐ के आकार में बना हुआ है।
ॐ के आकार का द्वीप ओंकारेश्वर – Omkareshwar Temple
यहाँ भगवान शिव के दो मुख्य मंदिर है, एक द्वीप पर बना हुआ ओंकारेश्वर (जिन्हें “ओमकार भगवान” का नाम दिया गया है) और दूसरा नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर बना हुआ अमरेश्वर (जिन्हें “भगवान अमरीश” भी कहा जाता है)।
द्वादश ज्योतिर्लिंग में लिखे श्लोक के अनुसार अमरेश्वर ज्योतिर्लिंग का दूसरा नाम ममलेश्वर है। ज्यादातर लोग ओंकारेश्वर और ममलेश्वर दोनों ही मंदिरों को समान रूप से ही पूजते है और दोनों मंदिरों को समान महत्त्व भी दिया जाता है।
कथाओ के अनुसार, विन्द्या देवता विन्द्याचल पर्वत श्रुंखला को नियंत्रित करते है, जहाँ भगवान शिव को पूजा जाता है।
कहा जाता है की वहाँ रेत और मिट्टी से पवित्र शिवलिंग बनाया था। शिवजी अपनी पूजा से काफी खुश हुए और कहा जाता है की वहाँ वे दो रूपों में प्रकट हुए, जिनका नाम क्रमशः ओंकारेश्वर और अमलेश्वर था।
जबसे द्वीप ॐ के आकार का दिखने लगा, तभीसे इस द्वीप को ओंकारेश्वर का नाम दे दिया गया। यहाँ देवी पार्वती और पाँच मुख वाले गणपति का भी मंदिर है।
द्वीप से संबंधित दूसरी कथा मंधाता और उनके पुत्र की तपस्या से जुडी हुई है। इक्ष्वाकु कबिले के राजा मंधाता यहाँ भगवान शिव की पूजा करते थे, जबतक भगवान शिव ने यहाँ खुद को एक ज्योतिर्लिंग में स्थापित नही किया तबतक मंधाता राजा उनकी पूजा करते रहते थे। कुछ विद्वानों का नुसार मंधाता राजा के पुत्रो ने ही कठिन तपस्चर्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और यहाँ ज्योतिर्लिंग की स्थापना करने की प्रार्थना की। इस वजह से इस द्वीप को मंधाता का नाम भी दिया गया है।
इस द्वीप से जुडी हुई तीसरी कहानी के अनुसार एक बार यहाँ देवो और दानवो के बीच एक भीषण युद्ध हुआ था, जिसमे दानवो को जीत मिली। देवताओ के लिए यह गंभीर शिकस्त थी और इसीलिए उस समय देवताओ ने भगवान शिव से प्रार्थना की।
उनकी प्रार्थना से ही खुश होकर भगवान शिव ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने दानवो को परास्त भी किया।
आदि शंकर गुफा: ओंकारेश्वर वही जगह है जहाँ श्री आदि शंकर उनके गुरु गोविन्दपदा से गुफा में मिले थे। आज भी इस गुफा को हम भगवान शिव के मंदिर के निचे देख सकते है, जहाँ आदि शंकर का चित्र भी स्थापित किया गया है।
ओंकारेश्वर मंदिर का इतिहास – Omkareshwar Temple History:
मध्यकालीन समय में ओंकारेश्वर पर धाड़ के परमार, मालवा के सुल्तान, ग्वालियर के सिंधिया ने राज किया और फिर अंत में मंधाता के राजा ने 1824 में इसे ब्रिटिश अधिकारियो को सौप दिया।
उस समय मंदिर की देखरेख मंदिर के शक्तिशाली पुजारी दर्याव गोसाई कर रहे थे। लेकिन इसके बाद जयपुर के राजा ने नाथू भील को मंदिर का पुजारी बनाया।
इस मंदिर में शिव भक्त कुबेर ने तपस्या की थी तथा शिवलिंग की स्थापना की थी। जिसे शिव ने देवताओ का धनपति बनाया था। कुबेर के स्नान के लिए शिवजी ने अपनी जटा के बाल से कावेरी नदी उत्पन्न की थी।
यह नदी कुबेर मंदिर के बाजू से बहकर नर्मदाजी में मिलती है, जिसे छोटी परिक्रमा में जाने वाले भक्तो ने प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में देखा है, यही कावेरी ओमकार पर्वत का चक्कर लगाते हुए संगम पर वापस नर्मदाजी से मिलती हैं, इसे ही नर्मदा कावेरी का संगम कहते है।
इस मंदिर में प्रतिवर्ष दिवाली के समय धनतेरस को ज्वार चढाने का विशेष महत्त्व है। इस रात जागरण होता है तथा धनतेरस के दिन सुबह ४ बजे से अभिषेक पूजन होता हैं।
इसके बाद कुबेर महालक्ष्मी का महायज्ञ, हवन, जिसमे कई जोड़े बैठते हैं, धनतेरस की सुबह कुबेर महालक्ष्मी महायज्ञ नर्मदाजी का तट और ओम्कारेश्वर जैसे स्थान पर होना विशेष फलदायी होता हैं और भंडारा होता है। इस अवसर पर हजारों भक्त दूर-दूर से आते है और कुबेर का भंडार प्राप्त कर प्रचुर धन के साथ सुख शांति पाते हैं।
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