Irom Chanu Sharmila – इरोम चानू शर्मीला को “आयरन लेडी” या “मेंगौबी” के नाम से भी जाना जाता है। वह एक नागरिक अधिकार कार्यकर्ता, राजनितिक कार्यकर्ता और कवियित्री है, जो भारतीय राज्य मणिपुर में रहती है।
“सबसे लम्बी भूक हड़ताल” करनेवाली “इरोम शर्मीला” – Irom Chanu Sharmila
शर्मीला मणिपुर में ही पली-बढ़ी, भारत के उत्तरी राज्यों में उन्हें दशको तक विद्रोह से गुजरना पड़ा था। 2005 से 2015 तक राजनितिक हिंसा की वजह से तक़रीबन 5,500 लोग मारे गए थे। 1958 में भारत सरकार ने भी सशस्त्र बल का कानून जारी किया, जो केवल सात राज्यों पर ही लागु होता था। इस कानून के तहत अधिकारी बिना वार्रेंट के भी कैदी को गिरफ्तार कर सकते थे। इसी प्रकार का एक कानून जम्मू और कश्मीर में भी लागु किया गया है।
2 नवम्बर 2000 को जब मणिपुर की इम्फाल घाटी में असम सेना ने बस स्टॉप पर बस का इंतज़ार कर रहे 10 बेगुनाह नागरिको की सरेआम हत्या कर दी थी, तब इरोम मानवाधिकारो के दुरूपयोग के चलते स्थानीय शांति आंदोलन में शामिल हो गयी। यह घटना “मालोम नरसंहार” के नाम से जानी जाती है।
मालोम नरसंहार के समय शर्मीला 28 साल की थी और तभी उन्होंने उपवास की शुरुवात की। भारत सरकार ने उनकी प्राथमिक मांग सशस्त्र बलों को निरसन करने की थी। मालोम में 5 नवम्बर को उन्होंने अपने उपवास की शुरुवात की और कुछ न खाने, पिने, बालो को न बनाने और यहाँ तक की शीशे में भी न देखने की कसम खा रखी थी।
तक़रीबन 500 हफ्तों तक वह पीना कुछ खाए पिए रही, उनकी इस हड़ताल को “दुनिया की सबसे लम्बी भूक हड़ताल” भी कहा जाता है।
हड़ताल के तीन दिन बाद ही पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उनपर “आत्महत्या करने का प्रयोग” करने का आरोप लगाया गया, जो उस समय इंडियन पैनल कोड (IPC) के तहत गैरकानूनी था और बाद में उन्हें न्यायिक हिरासत में स्थानांतरित कर दिया गया। उपवास करने के बाद दिन प्रति दिन उनकी हालत बिगडती चली जा रही थी और 21 नवम्बर से उन्हें जिंदा रखने के लिए नासोगाट्रीक इंटूबैषण दिया जा रहा था।
जबसे उनकी भूक हड़ताल शुरू हुई थी तबसे शर्मीला को हर साल बहुत सी बार गिरफ्तार किया जाता और कुछ समय बाद रिहा कर दिया जाता था।
इसके बाद 2004 से शर्मीला “सार्वजानिक प्रतिरोध का चिन्ह” बन चुकी थी। 2 अक्टूबर 2006 को प्रक्रियात्मक रिलीज़ के बाद शर्मीला नयी दिल्ली के राज घाट चली गयी, जहाँ उन्होंने उनके आदर्श महात्मा गांधी को पुष्प श्रद्धांजलि भी दी।
बाद में उसी शाम जंतर मंतर मैदान पर शर्मीला ने विरोध प्रदर्शन किया, जहाँ विद्यार्थियों, मानव अधिकार कार्यकर्ताओ और दुसरे आम लोगो ने भी उनका साथ दिया। असम राइफल हेडक्वार्टर के सामने भी उनकी 30 सहयोगी महिलाओ ने धरना दिया था। उनके हांथो में एक बैनर भी था जिसपर “इंडियन आर्मी ने हमारा बलात्कार किया” लिखा हुआ था और उन सभी को इसके बाद 3 महीने कैद की सजा सुनाई गयी थी।
2011 में उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता अन्ना हजारे को मणिपुर आने के लिए आमंत्रित किया और हजारे ने उनसे मिलने के लिए अपने दो प्रतिनिधि भी भेजे।
नवम्बर में उनके उपवास के ग्यारह साल बाद, शर्मीला ने पुनः प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कानून को निरसन करने की सिफारिश की। 3 नवम्बर को अम्बारी में 100 महिलाओ ने मिलकर महिलाओ की चैन स्थापित की, ताकि वे शर्मीला का समर्थन कर सके। दूसरी महिलाओ के साथ-साथ स्थानिक लोग भी शर्मीला के समर्थन में आगे आए।
2011 में शर्मीला के संघर्ष की लोगो के सामने लाने के लिए शर्मीला एकता अभियान की स्थापना की और दिसम्बर 2011 में पुणे यूनिवर्सिटी ने भी 39 महिला मणिपुरी विद्यार्थियों के लिए शिष्यवृत्ति की घोषणा की।
जबसे शर्मीला ने उपवास की शुरुवात की तबसे वह केवल एकबार ही अपनी माँ से मिली थी और उनकी माँ हमेशा यही प्रार्थना करती रहती के वह अपना संकल्प तोड़ दे। शर्मीला ने उस समय कहा था की, “जिस दिन AFSPA को निरसर कर दिया जाएगा उस दिन मै अपनी माँ के हांथो से चावल का सेवन करूंगी।”
28 मार्च 1016 को न्यायिक हिरासत से आज़ादी मिली, क्योकि उनपर लगे आरोपों को इम्फाल के स्थानिक कोर्ट ने नकार दिया था। इसके बाद शर्मीला ने भी संकल्प लिया की जबतक उनकी मांग पूरी नही होती तबतक वह घर नही जाएँगी और ना ही अपनी माँ से मिलेंगी।
इसके बाद फिर से इम्फाल के शहीद मीनार में उन्होंने अपना उपवास शुरू किया। जब भी शर्मीला जेल से रिहा होती, उसी दिन से वह अपना उपवास भी शुरू कर देती थी। इसके बाद पुनः उसी गुनाह के लिए पुलिस ने उन्हें दोबारा गिरफ्तार किया। कैद होने और रिहा होने का यह सिलसिला उनके उपवास ख़त्म होने तक चलता ही रहा।
उपवास का अंत:
26 जुलाई 2016 को इरोम शर्मीला ने घोषणा की के 9 अगस्त 2016 को वह अपना उपवास छोड़ेंगी। साथ ही उन्होंने मणिपुर राज्य चुनाव में खड़ा रहने की घोषणा भी की थी। अंततः 2000 से चले आ रहे उपवास का अंत 2016 में हुआ था।
उनके उपवास और राजनीती में प्रवेश करने का मुख्य उद्देश्य AFSPA को हटाना था।
मानव अधिकार की सुरक्षा करने के उपलक्ष में 2007 में उन्हें ग्वांगजू प्राइज से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें मानव अधिकारों की रक्षा करने और लड़ने के लिए दिया गया। इसके बाद संयुक्त रूप से लेनिन रघुवंशी के साथ उन्हें लोगो की सतर्कता समिति ने एक और अवार्ड दिया। भारत के उत्तर-पूर्व में बनी यह मानव अधिकार संस्था है।
2009 में उन्हें मयीलाम्मा संस्था का पहला मयीलाम्मा अवार्ड दिया गया, यह अवार्ड उन्हें मणिपुर में उनके द्वारा किये गए अहिंसावादी आंदोलन के लिए दिया गया था।
2010 में उन्हें एशियन ह्यूमन राइट्स कमीशन का लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड देकर सम्मानित किया गया। उसी साल बाद में उन्होंने भारतीय योजना और निति आयोग का रबिन्द्रनाथ टैगोर शांति पुरस्कार भी जीता। इस पुरस्कार के साथ-साथ उन्हें 51,00,000 की नगद राशी भी दी गयी और हस्ताक्षर प्रशिक्षण केंद्र ने भी उन्हें “शांति और सामंजस्य” का अवार्ड देकर सम्मानित किया।
2013 में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी उन्हें राजनैतिक कैदी घोषित किया। इरोम शर्मीला का महिलाओ पर काफी प्रभाव पड़ा और वर्तमान में वह बहुत सी महिलाओ की आदर्श बनी हुई है।
2014 में इंटरनेशनल विमेंस डे पर MSN पोल में उन्हें टॉप वीमेन आइकॉन ऑफ़ इंडिया का शीर्षक दिया गया था।
उनके जीवन पर आधारित कार्य:
शर्मीला के संघर्षो को टेलीविज़न और फिल्मो में कयी बार दिखाया गया है। लाखो महिलाओ ने उनसे प्रेरित होकर अपने हक़ की लढाई भी लड़ी है। उनकी जीवनगाथा और उनके संघर्षो को बहुत सी विदेशी फिल्मो में दर्शाया भी गया है।
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