Shaniwar Wada History in Hindi
महाराष्ट्र के पुणे शहर में स्थित शनिवार वाड़ा अपने आप में कई अनसुने रहस्यों को समेटे हुए है। यह विशाल किला मराठा साम्राज्य को नई ऊंचाईयों में पहुंचाने वाले बाजीराव द्धारा 1746 ईसवी में बनवाया गया था।
शनिवार वाड़ा बाजीराव-मस्तानी की अधूरी प्रेमकहानी के साथ ही पेशवाओं के प्रगति और पतन की रहस्यमयी गाथा की याद दिलाता है। इसके अलावा यह विशाल किला अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए भी दुनिया भर में मशहूर है।
आपको बता दें कि 18वीं सदी में यह किला भारतीय राजनीति का प्रमुख केन्द्र माना जाता था। शनिवार वाड़ा किला करीब 1818 ईसवी तक मराठाओं के पेशावाओं के अधिकार में रहा।
इसके बाद 1828 में इस महल का बड़ा हिस्सा भीषण आग की चपेट में आकर तबाह हो गया था और आज एक ऐतिहासिक अवशेष के रुप में यह किला बचा हुआ है, और महाराष्ट्र के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है।
इसके अलावा इस किले को भारत की सबसे रहस्यमयी और भूतहा स्थलों में शामिल किया गया है। दरअसल, स्थानीय लोगों के मुताबिक इस विशाल शनिवार वाड़ा में हर अमावस्या की रात को एक दर्द भरी गूंज सुनाई देती है, जो कि सहायता के लिए पुकारती हुई सी प्रतीत होती है।
इसके अलावा शनिवार वाड़ा किले के बारे में यह भी प्रचलित है कि इस किले में राजनीतिक दांवपेच और सत्ता के लालच में मराठाओं के 5वें पेशवा नारायणराव की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी, जिसके बाद से उसकी आत्मा इसी किले में भटकती है, ऐसा कहा जाता है कि नारायण राव की चीखें आज भी इस ऐतिहासिक किले में गूंजती है।
फिलहाल, अभी तक इस रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका है। हालांकि, यह महाराष्ट्र राज्य के प्रमुख पर्यटक और ऐतिहासिक स्थलों में से एक माना जाता है।
आइए जानते हैं शनिवाड़ा किले के निर्माण का इतिहास और इससे जुड़े कुछ रहस्यमयी तथ्यों के बारे में-
महाराष्ट्र का डरावना शनिवार वाड़ा जहां आज भी सुनाई देती हैं दर्द भरी गूंज – Shaniwar Wada History in Hindi
शनिवार वाड़ा किले का निर्माण – Shaniwar Wada Information
महाराष्ट्र के पुणे में स्थित इस ऐतिहासक किले शनिवार वाड़ा का निर्माण 18वीं सदी में मराठा साम्राज्य को नई ऊंचाईयों पर पहुंचाने वाले सम्राट बाजीराव प्रथम ने करवाया था।
आपको बता दें कि बाजीराव प्रथम, मराठा शासक छत्रपति शाहूजी महाराज के प्रधान थे। इस किले को मराठाओं ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से अपना नियंत्रण खोने के बाद तीसरे आंग्ल-मराठा युद्द के बाद करवाया था।
इस भव्य ऐतिहासिक किले की नींव 10 जनवरी, 1730 में रखी गई थी। वहीं शनिवार के दिन इस विशाल दुर्ग की नींव रखे जाने की वजह से इस किले का नाम ”शनिवार वाड़ा” पड़ गया।
यह किला 1732 में बनकर तैयार हुआ था। वहीं 22 जनवरी, 1732 में इस किले का उद्घाटन शनिवार के दिन ही किया गया था। इस सात मंजिला विशाल दुर्ग की दीवारों पर रामायण और महाभारत के चित्र प्रदर्शित किए गए हैं।
इस भव्य किले की निर्माण की जिम्मेदारी राजस्थान के ठेकेदारों (कुमावत क्षत्रिय) को सौंपी गई थी, किले का निर्माण पूरा होने के बाद उन्हें नाई की उपाधि से भी सम्मानित किया गया था।
इस ऐतिहासिक दुर्ग को पहले सिर्फ पत्थरों का इस्तेमाल कर बनाया जाना था, लेकिन फिर बाद में राजा शाहूजी द्धारा पत्थरों का इस्तेमाल पर निर्माण करने पर आपत्ति जताए जाने के बाद इस किले का ईंट द्धारा निर्माण करवाया गया।
दरअसल उस समय पत्थरों से निर्मित ईमारत के निर्माण का हक सिर्फ राजाओं को ही था, हालांकि राजा शाहूजी के आदेश तक इस ऐतिहासिक किले का आधार बनकर तैयार हो चुका था।
लेकिन बाद में फिर मराठा साम्राज्य के पेशवाओं ने इस दुर्ग की सातों मंजिल ईंट का इस्तेमाल कर बनवाईं थीं। इस विशाल ऐतिहासिक संरचना के निर्माण के लिए लकड़ी जुन्नार के जंगलों, पत्थर चिचवाड़ी की खदानों और चूना जेजुरी खदानों से लायी गई थी।
अपना कलात्मकता के लिए मशहूर इस विशाल महल को बनाने में उस समय करीब 16 हजार, एक सौ 10 रुपए की लागत खर्च हुई थी। आपको बता दें कि शनिवार वाड़ा की खासियत यह थी कि इसमें एक साथ एक हजार से भी ज्यादा लोग रह सकते थे।
इतिहासकारों के मुताबिक इस भव्य दुर्ग के निर्माण के बाद इस पर ब्रिटिश सेना ने इस पर हमला किया था, जिससे इस भव्य महल की इमारत क्षतिग्रस्त हो गई थी। वहीं शनिवार वाड़ा का इस्तेमाल पर बाजीराव प्रथम के निवास स्थल के रुप में होता था।
1818 ईसवी तक इस विशाल किले पर मराठा के पेशवाओं का अधिकार रहा। इस दौरान बाजीराव द्दितीय ने अपने पद से इस्तीफा देकर इस दुर्ग को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सर जॉन मल्कोल्म के हवाले कर दिया था और वे उत्तरप्रदेश के कानपुर चले गए थे।
इसके करीब 10 साल बाद 1828 ईसवी में इस किले में भीषण आग लग गई और इस किले का एक बड़ा हिस्सा भयंकर आग की चपेट में आकर नष्ट हो गया था। आपको बता दें कि आग की लपटें इतनी तेज थीं कि इसे बुझाने में करीब 7 दिन का लंबा वक्त लग गया था।
वहीं शनिवार वाड़ा में लगी आग के कारणों का कभी खुलासा नहीं हो सका। यह अभी तक एक रहस्य बना हुआ है। वहीं आग के बाद इस भव्य किले के अब कुछ अवशेष ही बाकी बचे हैं।
शनिवार वाड़ा किले की संरचना – Shaniwar Wada Architecture
शनिवार वाड़ा किला अपनी कलात्मकता, रचनात्मकता और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। इस विशाल किले में प्रवेश के लिए 5 दरवाजे बनाए गए हैं। जिनमें से दिल्ली दरवाजा, मस्तानी दरवाजा, खिड़की दरवाजा, गणेश दरवाजा, जम्भूल दरवाजा या नारायण दरवाजा प्रमुख है।
आपको बता दें कि दिल्ली दरवाजा इस विशाल किले का मुख्य द्धार है, यह दरवाजा इस विशाल किले के अंदर काफी ऊंचा और चौड़ा है। मस्तानी दरवाजा या अलीबहादुर दरवाजा शनिवाड़ा में उत्तर दिशा की तरफ खुलता है, बाजीराव की दूसरी पत्नी मस्तानी अक्सर बाहर जाते समय इस दरवाजे का इस्तेमाल करती थीं।
इसी कारण इस दरवाजे का नाम ”मस्तानी दरवाजा” पड़ा। इसके अलावा इसे अली दरवाजा के नाम से भी जाना जाता है। वहीं शनिवार वाड़ा में पूर्व दिशा में खिड़की दरवाजा खुलता है, इसके अलावा दक्षिण पूर्व में गणेश दरवाजा है, जिसका इस्तेमाल महिलाएं कस्बा गणपति मंदिर में दर्शन के लिए जाते समय करती थी।
इसके अलावा यहां दक्षिण दिशा में नारायण दरवाजा खुलता है, जिसका इस्तेमाल दासियां आने-जाने के लिए किया करती थी, इस दरवाजे का दूसरा नाम ‘जम्भूल दरवाजा’ है।
यही नहीं इस भव्य शनिवार वाड़ा किले में कई अन्य छोटी-छोटी इमारतें, जलाशय और लोटस फाउंटेन आदि का भी निर्माण किया गया है, जो कि पर्यटकों का ध्यान अपनी तरफ आर्कषित करती हैं।
आपको बता दें कि सात मंजिला ऊंचे इस किले में सबसे ऊपरी मंजिल ”मेघादम्बरी’ के नाम से मशहूर थी।
हालांकि, 1828 में इस किले में भयानक आग लगने की कारण यह इमारत नष्ट हो गई, वर्तमान में इसका पत्थर से बना हुआ एक आधार शेष है, इसके अलावा कुछ छोटी-छोटी इमारतें बची हुई हैं।
शनिवार वाड़े में बना लोटस फाउंटेन यहां आने वाले पर्यटकों के आर्कषण का मुख्य केन्द्र है। यह कमल के फूल के आकार में बनी बेहद खूबसूरत आकृति है, जो कि अपनी बेजोड़ कलात्मकता के लिए कफी प्रख्यात भी है।
प्राचीन समय में इसका इस्तेमाल नृतक आदि के लिए किया जाता था। वहीं इस आर्कषित फाउंटेन के पास स्थित फूलों का सुंदर बगीचा इसकी शोभा और भी अधिक बढ़ाता है।
शनिवार वाड़ा किला से जुड़ी रहस्यमयी घटनाएं – Shaniwar Wada Haunted Story
शनिवार वाड़ा किले को भारत के सबसे रहस्यमयी और डरावने किले में शामिल किया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस किले में अभी भी हर अमावस्या की रात को दर्द भरी चीखें सुनाईं देती है।
इसके पीछ यह तर्क दिया जाता है कि, बाजीराव के बाद इस महल में सत्ता के लोभ-लालच में महज 18 साल के नारायण राव की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।
जिसके बाद से उनकी आत्मा इसी किले में भटकती है और उनकी दर्द भरी आवाज मद्द की पुकार लगाती है।
आपको बता दें कि पेशवा बाजीराव प्रथम के दो बेटे बालाजी बाजीराव उर्फ नानासाहेब और रघुनाथ राव थे। बाद में उनकी मौत के बाद नाना साहेब पेशवा बने। पेशवा नाना साहेब के भी तीन बेटे थे, जिनमें से विशव राव, महादेव राव और नारायण राव शामिल थे।
विशव राव और महादेव राव की मृत्यु के कारण नारायण राव को सिर्फ 17-18 साल की उम्र में ही पेशवा बना दिया गया। वहीं नारायण राव को अल्पायु में ही पेशवा बनाए जाने की वजह से उनके चाचा रघुनाथ राव या राघोबा को उनका संरक्षक बनाया गया।
फिलहाल, रघुनाथ खुद पेशवा बनना चाहते थे, वे अपने तरीके से शासन चलाना चाहते थे। हालांकि, नारायण राव को अपने चाचा रघुनाथ की इस हसरत पर शक था, जिसके चलते दोनों के रिश्तों के बीच कड़वाहट पैदा होने लगी और दोनों के रिश्ते बिगड़ गए।
वहीं हालात इतने खराब हो गए कि दोनों के सलाहकार एक-दूसरे के खिलाफ भड़काने लगे, जिसके बाद नारायण राव ने अपने काका रघुनाथ राव को अपने घर में ही नजरबंद करवा दिया।
जिसके बाद उनकी काकी और रघुनाथ राव की पत्नी आनंदीबाई गुस्से से आग बबूला हो गईं और उन्होंने उनके साम्राज्य में भीलों के एक शिकारी कबीला जो कि गार्दी नाम से प्रसिद्ध थे, उनसे पत्र लिखकर नारायण सिंह को मारने के लिए कहा।
दरअसल, गार्दी के नारायण राव के साथ संबंध खराब थे, इसी का फायदा उठाते हुए आनंदीबाई ने नारायण राव को मारने के लिए सुमेर सिंह गार्दी को चुना था।
नारायण राव की काकी के कहने पर फिर गार्दी के एक ग्रुप ने एक दिन मौका देखकर इस विशाल शनिवार वाड़ा किले पर हमला कर दिया।
इसके बाद जब वे गार्दी हथियार लेकर नारायण राव की तरफ बढ़े तो नारायण राव अपनी जान बचाने को लेकर अपने चाचा रघुनाथ राव के कमरे की तरफ यह कहते हुए भागे कि ”काका मला वाचवा” अर्थात (काका मुझे बचाओ), हालांकि नारायण राव के अपने चाचा के कमरे से पहुंचने से पहले ही गार्दियों ने उन पर बेरहमी से वार कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया था।
हालांकिे, इस घटना को लेकर कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि नारायण राव अपने काका के सामने अपनी जान बचाने के लिए मद्द की गुहार लगाता रहा लेकिन उसके काका ने उसकी जान बचाने के लिए कुछ नहीं किया और फिर गार्दियों ने उनके सामने ही नारायणराव को मौत के घाट उतार दिया और फिर नारायणराव के शव को नदी में बहा दिया गया।
फिलहाल, इस घटना को लेकर स्थानीय लोगों का यह भी मानना है कि शनिवार वाड़ा किले में अभी भी नारायण राव की आत्मा भटकती है और उसके द्धारा कहे गए अंतिम शब्द ”काका मुझे बचाओ” की गूंज आज भी अमावस्या की रात को किले में सुनाई देती हैं।
यही कारण है कि इस किले को भारत के सबसे डरावने और रहस्यमयी किलों में गिना जाता है।
ऐसे पहुंचे शनिवार वाड़ा किला – How to Reach Shaniwar Wada
शनिवार वाड़ा महाराष्ट्र के पुणे शहर में स्थित है, यह शहर देश के प्रमुख शहरों में अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहां सड़क, वायु और रेल तीनों माध्यमों के द्धारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं।
शनिवार वाड़ा लाइट एंड साउंड शो – Light And Sound Show Shaniwar Wada
शनिवार वाड़ा किले में होने वाला लाइट एंड साउंड शो काफी प्रसिद्ध है। यह शो यहां के मुख्य आर्कषण का केन्द्र है, जिसे देखने दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। यह शो हर शाम को मराठी और अंग्रेजी भाषा में आयोजित होता है। सैलानी टिकट खरीदकर इस शो को देखने जाते हैं।
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