जैन धर्म के सर्वोच्च तीर्थों में शिरोमणी “श्री शत्रुंजय तीर्थ” – Shatrunjay

Shatrunjay Tirth

शत्रुंजय तीर्थ जैन धर्म के शिरोमणि तीर्थस्थानों में से एक है। सुख, शांति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए इस तीर्थ की यात्रा करने का बेहद महत्व है। यह एक अनेकों अनंत तीर्थंकरों के समय से मुख्य एवं शाश्वत तीर्थ रहा है, जहां असंख्य तीर्थकरों, योगी मुनियों ने तपस्या कर मोक्ष प्राप्त किया।

इस पावन स्थल पर तमाम महान तीर्थकरों ने अपने मन में क्रोध, ईर्ष्या, मोह, लोभ, द्धेष समेत कई विकार रुपी शत्रु पर जीत हासिल की, इसलिए इसे शत्रुंजय तीर्थ कहा जाता है।

Shatrunjay
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जैन धर्म के सर्वोच्च तीर्थों में शिरोमणी “श्री शत्रुंजय तीर्थ” – Shatrunjay

इसके साथ ही यह जगह कई महान जैन तीर्थकरों का धार्मिक क्रीड़ा स्थली भी रह चुकी है। यहां जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव का विहार 11 बार हुआ था, ऐसा कहा जाता है कि, जैन धर्म के इस पावन तीर्थ शत्रुंजय का एक – एक कण तीर्थकर ऋषभदेव चरण स्पर्श से पवित्र हुआ है।

महातीर्थ शत्रुंजय की महिमा का जैन धर्म के कई बड़े ग्रंथों और शास्त्रों में भी उल्लेख मिलता है।

शत्रुंजय तीर्थ भारत के गुजरात राज्य के भावनगर जिले के पालिताना शहर की चोटियों पर स्थित है, जो कि 2000 फुट की ऊंचाई पर बना हुआ है। श्री शत्रुंजय महातीर्थ के शिखऱ पर 863 से भी ज्यादा शिखरबंधी जिनालय हैं, और करीब 7 हजार मंदिर हैं और 17 हजार से भी ज्यादा भगवान की प्रतिमाएं शोभायमान हैं।

इसके साथ ही आपको बता दें कि तलहटी से भगवान आदिनाथ के टूंक के रास्ते में करीब 3 हजार 750 सीढ़ियां हैं, इसके साथ ही इस रास्ते में भक्तों के लिए जगह-जगह पर विश्राम गृह बन हुए हैं।

वहीं विश्राम घर के सामने जैन तीर्थकर नेमिनाथ भगवान के गणधर वरदत्त, आदिश्वर और पार्श्वनाथ भगवान की चरण पादुकाएं शेलकसूरी, जाली, उवयाली समेत कई भगवान की प्रतिमाएं विराजमान हैं।

इसके साथ ही आपको बता दें कि शत्रुंजय तीर्थस्थल में जाने के लिए दो रास्ते हैं, एक रास्ता जो कि भगवान आदिनाथ के मंदिर की तरफ से जाता है, जबकि दूसरा रास्ता नौ टूंकों की तरफ से जाता है, मुख्य टूंक की तरफ जाने से पहले वाघणपोल भी आते हैं, जबकि आगे हाथीपोल में घुसते समय ईश्वर कुंड, भीम कुंड और सूरज कुंड के दर्शन होते हैं।

यहां का नजारा अति मनोरम और धार्मिक है। जैन धर्म के शिरोमणि तीर्थस्थल में एक साथ असंख्य मंदिरों के दिव्य दर्शन अपने आप में अनूठा है।

जैन धर्म के महान ग्रंथों और शास्त्रों में असंख्य भारत मुनियों की पुण्य भूमि और अनंत तपस्वियों का आराधना केन्द्र श्री शत्रुंजय को 108 अन्य नामों से जाना जाता है। वहीं इस पावन तीर्थ के दक्षिण दिशा में पवित्र और धार्मिक महत्व रखने वाली शत्रुंजय नदी बहती है, जिसमें स्नान करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है, इस पवित्र नदी में बड़े ही भाग्यशाली लोग स्नान कर पाते हैं।

आपको बता दें कि जैनधर्म के इस पावन और सर्वोपरि तीर्थस्थल श्री शत्रुंजय के 16 उद्दार हुए हैं।
शत्रुंजय तीर्थ की मान्यता

जैन धर्म के इस पावन तीर्थस्थल शत्रुंजय के बारे में यह मान्यता है कि जो भी यहां दर्शन के लिए आता है, खाली हाथ नहीं लौटता है, यहां आने वाले भक्तों की हर मुराद पूरी होती है, और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इसके साथ ही इस पवित्र और दिव्य स्थल के दर्शन से भक्तों को सुख-शांति का अनुभव होता है।

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