Taj-ul-Masjid – ताज-उल-मस्जिद भारत के भोपाल में स्थित एक मस्जिद है। जबकि इसका सही नाम ताज-उल-मसजिद है, ना की ताज-उल-मस्जिद। “मसजिद” का अर्थ “मस्जिद” से है और ताज-उल-मस्जिद का साधारणतः अर्थ “मस्जिदों के बीच का ताज” होता है। भारत के सबसे प्रसिद्ध और विशालतम मस्जिदों में से यह एक है।
ताज-उल-मसजिद का इतिहास – Taj-ul-Masjid History in Hindi
अधिक जानकारी
ताज-उल-मस्जिद एशिया की सबसे विशाल मस्जिदों में से एक है। जो एक विशाल मैदान में बनी हुई है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित इस मस्जिद को “अल्लाह का गुम्बद” भी कहा जाता है। सफ़ेद गुम्बदो और संगमरकर के पत्थरो से बना यह गुलाबी भवन हर किसी को आँखों को एक ही नजर में मोह लेता है। सुल्तान शाह जहाँ ने इसके निर्माण का बीड़ा उठाया था, लेकिन फंड की कमी की वजह से इसका पूरा निर्माण नही किया गया था।
कुछ सालो बाद, भोपाल के अलाम्मा मोहम्मद इमरान खान नादवी अजहरी ने इस अधूरे कार्य को पूरा करने का बीड़ा उठाया और इसका निर्माणकार्य अंततः 1971 में पूरा हुआ। और एक सुन्दर, मनमोहक और विशाल मस्जिद का निर्माण किया गया। उस समय में, मस्जिद मदरसा का काम करती थी। इसके साथ-साथ हर साल मस्जिद में तीन दिन के अलामी तबलीग इज्तिमा जश्न का आयोजन भी किया जाता है, जहाँ पूरी दुनिया से लाखो श्रद्धालु आते है। मस्जिद में कमरों की कमी होने की वजह से वर्तमान में इस जश्न का आयोजन गाजी पूरा, भोपाल में किया जाता है।
सम्पूर्ण इतिहास
मस्जिद का निर्माण कार्य सुल्तान शाह जहाँ बेगम के शासनकाल में शुरू किया गया था और इसके कुछ वर्षो बाद 1971 में भोपाल के अलाम्मा मोहम्मद इमरान खान नादवी अजहरी के शासनकाल में मस्जिद का निर्माणकार्य पूरा हुआ। इस मस्जिद को नयी दिल्ली की जामा मस्जिद और लाहौर की बादशाही मस्जिद के समान ही माना गया है।
ताज-उल-मस्जिद कुल 23,312 वर्ग फीट के मैदान पर फैली हुई है जिसकी मीनारे तक़रीबन 206 फीट ऊँची है। साथ ही मस्जिद में 3 विशाल गोलाकार आकर के गुम्बद, एक सुन्दर प्रार्थना कक्ष और आभूषण जडित पिलर, मार्बल से बनी फर्श और गुम्बद भी है। इसके अलावा मस्जिद में एक विशाल टैंक के साथ बड़ा आँगन भी है। साथ ही प्रार्थना कक्ष की मुख्य दीवार पर जाली काम और प्राचीन हस्तकला का काम भी किया गया है। 27 छतो को विशाल पिलर की सहायता से दबाया गया है, और उन्हें सलाखी काम से अलंकृत भी किया गया है। 27 छतो में से 16 को फूलों की डिजाईन से सजाया गया है। साथ ही फर्श की डिजाईन में भी क्रिस्टल स्लैब का उपयोग किया गया है, जिन्हें सात लाख रुपये खर्च कर इंग्लैंड से इम्पोर्ट किया गया था।
ताज-उल-मस्जिद के मुख्य आकर्षण
मस्जिद का लोटनेवाला आकार ही इसका सबसे बड़ा आकर्षण है। गुलाबी मुखौटा और विशाल सफ़ेद गुम्बद और उसकी मीनारे लोगो को अपनी तरफ आकर्षित करती है। साथ ही मस्जिद की फर्श को तका-तक क्रिस्टल स्लैब से डिजाईन किया गया है और मस्जिद की विशाल मीनारों को अलंकृत किया गया है, जिसे देखते हुए इसकी डिजाईन हमारा मन मोह लेंगी। साथ ही मस्जिद का विशाल मुख्य प्रवेश द्वार हमें बुलंद दरवाजे की याद दिलाता है। इस मस्जिद के दुसरे आकर्षणों में विशाल प्रार्थना कक्ष, विशाल पिल्लर और गुम्बदो का आकार शामिल है।
ज्यादातर लोग अक्टूबर से मार्च तक इस मस्जिद को देखने आते है।
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badhiya jankari hai…thanks for sharing….
1971 me bharat ajad tha phire 1971 me alamma mohammad imran khan nadavi ke shasan kal me tal ul masjid kaise bankar taiyar hui
बहोत ही रोचक जानकारी अपने शेयर की है…