Brihadeeswarar temple – थ्न्जवर पेरीयाकोविल (ब्रिहदिश्वरर मंदिर) तमिलनाडू के थ्न्ज्वर में स्थित भगवान शिव का एक हिंदु मंदिर है। इसे राज-राजेश्वर, राज-राजेश्वरम एवं ब्रिहदिश्वरर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है एवं चोला वंश की वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है।
1010 इसवी में राजा राजा चोला प्रथम के द्वारा बनवाया गया यह मंदिर 1000 साल पुराना है। यह मंदिर UNESCO “वर्ल्ड हेरिटेज साईट” के “द ग्रेट लिविंग चोला टेम्पल” के 3 मंदिरों में से एक है। बाकी के 2 मंदिर गंगईकोंडा चोलपुरम और ऐरावटेश्वर मंदिर हैं।
ब्रिहदिश्वरर मंदिर का इतिहास – Brihadeeswarar temple history in Hindi
16वि शताब्दी में मंदिर के चारो और दीवारों का निर्माण किया गया। 198 फीट का विमानं खम्बा दुनिया के सब से ऊंचे खम्बों में से एक है। गुम्बद का वजन ही 80 टन है। एक ही शीला से बनी नंदी की प्रतिमा 16 फीट लंबी और 13 फीट ऊंची है; यह प्रतिमा द्वार पर स्थित है।
ग्रेनाइट से बने मंदिर के पत्थर 60 मिल की दुरी से लाये गये हैं। तमिलनाडू के सबसे आकर्षक पर्यटन स्थलों में से एक यह मंदिर है।
एक स्वप्न से हुए अनुभव के आधार पर राजा अरुलमोशीवर्म, जिन्हें राजराजा चोला प्रथम के नाम से भी जाना जाता है, ने यह मंदिर अपने साम्राज्य को इश्वर का आशीर्वाद दिलाने के लिए बनवाया था। इसका भूमि पूजन 1002 इसवी में किया गया।
यह मंदिर महान चोला वास्तुशिल्प का शानदार उदाहरण है। ज्यामिति के नियम को आधार बना कर यह मंदिर बनाया गया है। इस काल के मंदिर चोला वंश के संपत्ति, ताकत और कलात्मक विशेषता के उदहारण हैं।
राजा के इश्वर से ख़ास संबंध और उसकी ताक़त को दर्शाने के लिए मंदिर में तरह-तरह के पूजन कराये जाते थे। जैसे की राजकीय अभिषेक और उसी तरह से राजा का भी पूजन।
चोला साम्राज्य की सोच और तमिल सभ्यता के साथ ही द्रविड़ वास्तुशिल्प का द्योतक है यह मंदिर। यह मंदिर चोला वास्तुशिल्प, मूर्तिकारी, चित्रकारी और कांसे की कारीगरी का उदाहरण है।
संस्कृति:
ब्रिहदिश्वरर मंदिर का उल्लेख मूवर उला औरकलिंगथूपारणी में भी किया गया है। ऐसा माना जाता है की यह मंदिर सामाजी, वित्तीय एवं राजनैतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। मंदिर में संगीत, नृत्य और कला को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न आयोजन किये जाते थे।
विशेषज्ञों के राय में यह मंदिर द्रविड़ियन वस्तुशिप के चरमोत्कर्ष की कहानी बयान करते हैं। मंदिर को एक धरोहर के रूप में भारतीय पुरातात्विक विभाग के द्वारा अन्रक्षित किया गया है। तमिलनाडू के सबसे ज्यादा पर्यटक यहां आते हैं। ग्रे
ट लिविंग चोला टेम्पल की लिस्ट में इस मंदिर को 2004 में जोड़ा गाया था। सभी 3 मंदिर चोला वंश के द्वारा 10वी से 12वी शताब्दी में बनाए गए थे ओर इन सभी मंदिरों में बहुत सी समानताएं हैं।
ग्रेट लिविंग छोले टेम्पल कहलाने के पीछे का कारण यह है की आज भी इन मंदिरों में विभिन्न आयोजन एवं पूजा पाठ नियमित तौर पर होती है।
राजराजा चोला प्रथम के जीवन पर ख्यात तमिल उपन्यासकार कल्कि ने पोंनियीं सेल्वन नामक उपन्यास लिखा है। बालाकुमारण ने भी उदइयारमें राजराजा चोला प्रथम और मंदिर के निर्माण के बारे में बताया है।
ब्रिहदिश्वरर मंदिर रथ यात्रा : Brihadeeswarar temple Rath Yatra
पहली बार मंदिर के रथ को विपरीत दिशा में स्थित रामार मंदिर से 20 अप्रैल 2015 को निकाला गया। हज़ारों लोगों ने इस रथ यात्रा में हिस्सा लिया। नौ दिनों के बाद 29 अप्रैल 2015 को रथ के ऊपर देवताओं की मूर्तियाँ रख कर इसे फिर घुमाया गाया। यह रथ यात्रा सौ सालों के बाद निकाली गयी है।
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bahot achhi jankari di hai aapne. sir is jankari keliye dhanywad
thanks for sharing