Chhatrapati Shivaji Maharaj History in Hindi
भारतीय इतिहास में कई ऐसे पराक्रमी राजा हुए जिन्होनें अपनी मातृभूमि के लिए अपनी जान की बाजी तक लगा दी। लेकिन कभी दुश्मनों के आगे घुटने नहीं टेके। और जब भी हम वीर पराक्रमी राजाओं की बात करते है तो हमारी जुबां पर पहला नाम छत्रपति शिवाजी महाराज का आता है। जिन्होनें मुगलों के आने के बाद देश में ढलती हिंदु और मराठा संस्कृति को नई जीवनी दी।
छत्रपति शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj को भारतीय गणराज्य का महानायक और मराठा साम्राज्य का गौरव माना जाता है। शिवाजी महाराज अत्यंत बुद्धिमानी, शौर्य, निडर, सर्वाधिक शक्तिशाली, बहादुर और एक बेहद कुशल शासक एवं रणनीतिज्ञ थे। उन्होंने अपने कौशल और योग्यता के बल पर मराठों को संगठित कर मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी।
भारत के महान वीर सपूत और राजमाता जीजाबाई के साहसी पुत्र छत्रपति शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj की वीरता की कहानी अद्भुत है, उनके जीवन से न सिर्फ लोगों को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है बल्कि राष्ट्रप्रेम की भावना भी प्रज्वलित होती है।
आज हम आपको इस लेख में मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj के जीवन और इतिहास के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो सकेगी, तो आइए नजर डालते हैं शिवाजी महाराज के बारे में –
शिवाजी महाराज का इतिहास – Shivaji Maharaj History in Hindi
छत्रपति शिवाजी महाराज के बारेमें – Shivaji Maharaj Information in Hindi
पूरा नाम (Name) | शिवाजी राजे भोंसले (छत्रपति शिवाजी महाराज) |
जन्म (Birthday) | 19 फ़रवरी 1630 (Shiv Jayanti) |
जन्मस्थान | शिवनेरी दुर्ग, महाराष्ट्र |
मृत्यु (Death) | 3 अप्रैल 1680, महाराष्ट्र |
पिता का नाम (Father Name) | शाहजीराजे भोंसले |
माता का नाम (Mother Name) | जीजाबाई |
शादी (Wife Name) | सईबाई निम्बालकर |
पुत्र-पुत्री (Childrens) |
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छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक (Rajyabhishek) | 6 जून, साल 1674 को रायगढ़ किले पर |
छत्रपति शिवाजी महाराज का शुरुआती जीवन – Shivaji Maharaj Biography in Hindi
हमारे भारत में समय-समय पर कई वीर और महान पुरुषों ने जन्म लिया है, उन्हीं में से एक थे छत्रपति शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj जिन्होंने अपना पूरा जीवन मानवता की रक्षा करने और देश में मराठा साम्राज्य की स्थापना करने में समर्पित कर दिया था।
वे एक ऐसे योद्दा थे जिन्होंने भारतीय जनता को मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त करवाया था, उन्होनें मुगल शासकों का साहसीपूर्वक सामना कर मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी। भारत भूमि शिवाजी महाराज जैसे महान योद्दाओं के जन्म से गौरान्वित हुई है।
शिवाजी महाराज का जन्म और परिवार – About Shivaji Maharaj and Shivaji Maharaj Family in Hindi
आपको बता दें कि शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj पुणे के जुत्रार गांव के शिवनेरी दुर्ग में 19 फरवरी, 1630 में जन्मे थे। हालांकि इनकी जन्म की तारीख को लेकर कई मतभेद भी हैं।
आपको बता दें कि भारत के वीर और महान सपूत शिवाजी महाराज का वास्तविक और असली नाम शिवाजी भोसले था, जो कि माता शिवाई के नाम पर रखा था, क्योंकि उनकी माता जीजाबाई शिवाई देवी की परम भक्त थी।
शिवाजी महाराज के पिता का नाम शाहजीराजे भोसलें था, वह बीजापुर के सुल्तान, आदिलशाह के दरबार में सैन्य दल के सेनापति और एक साहसी योद्धा थे, जो कि उस वक्त दख्खन के सुल्तान के हाथों में था। उन्हें अपनी पत्नी जीजाबाई से 8 संतानों की प्राप्ति हुई थी, जिनमें से 6 बेटियां और 2 बेटे थे उन्हीं में से एक शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj थे।
ऐसा कहा जाता है कि शाहजी राजे भोसले ने पत्नी जीजाबाई और पुत्र शिवाजी महाराज के सुरक्षा की और उनकी देखरेख की जिम्मेदारी दादोजी कोंडदेव इनके मजबुत कंधो पर छोड़ी थी, और सेनापति की अपनी जिम्मेदारी को निभाने के लिए कर्नाटक चले गए थे।
वहीं कोंडदेव जी ने शिवाजी महाराज को हिन्दू धर्म की शिक्षा देने के साथ-साथ युद्ध कला, घुड़सवारी और राजनीति के बारे में बहुत कुछ सिखाया था और इसके बाद जीजाबाई ने अपने पुत्र शिवाजी का लालन-पालन किया। इसलिए शिवाजी अपने माता के बेहद करीब थे।
आपको बता दें कि जीजाबाई की बदौलत ही शिवाजी को एक वीर, कुशल और पराक्रमी प्रशासक बनने में मदत मिली थी, उनकी मां ने बचपन से ही उनके अंदर राष्ट्रभक्ति और नैतिक चरित्र के ऐसे बीज बो दिए थे, जिसकी वजह से शिवाजी महाराज अपने जीवन के उद्देश्यों को हासिल करने में सफल होते चले गए और कई दिग्गज मुगल निजामों को पराजित कर मराठा साम्राज्य की नींव रखी।
इसके अलावा अपनी माता जीजाबाई से हिन्दू धर्म के महाकाव्य रामायण और महाभारत की कहानियां सुनकर ही शिवाजी महाराज के अंदर मर्यादा, धैर्य और धर्मनिष्ठा जैसे गुणों का अच्छे से विकास हुआ था।
राष्ट्रमाता जीजाबाई के वीर पुत्र के रुप में शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj Story in Hindi
छत्रपति शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई एक बेहद साहसी, राष्ट्रप्रेमी और धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी, उन्होंने अपने वीर पुत्र शिवाजी के अंदर बचपन से ही राष्ट्रप्रेम और नैतिकता की भावना कूट-कूट कर भरी थी।
इसके साथ ही उन्होंने शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj को समाज के कल्याण के प्रति समर्पित रहने और महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना का विकास किया था। यही नहीं राष्ट्रमाता जीजाबाई ने अपने बुद्धिजीवी पुत्र की क्षमता को समझ कर उन्हें हिन्दू धर्म के महाकाव्य रामायण और महाभारत की वीरता की कहानियां सुनाई, जिससे उनके अंदर मर्यादा, धैर्य, वीरता और धर्मनिष्ठा जैसे गुणों का भलिभांति संचार हुआ।
Shivaji Maharaj Jijamata Photo
इसके अलावा उन्होंने शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj को नैतिक संस्कारों की शिक्षा भी दी। शिवाजी महाराज के अंदर मुगल शासकों से महाराष्ट्र को आजाद करवाने की प्रबल इच्छा उनकी माता जीजाबाई ने की प्रकट की थी। यही नहीं जीजाबाई ने ही अपने प्रिय और वीर पुत्र शिवाजी महाराज को आत्मरक्षा, तलवारबाजी, भाला चलाने की कला और युद्ध कला की शिक्षा देकर उन्हें युद्धकला में निपुण बनाया।
छत्रपति शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj अपनी माता जीजाबाई से अत्यंत प्रभावित थे, उन्होंने अपनी मां जीजाबाई के मार्गदर्शन से ही मराठा साम्राज्य और हिन्दू स्वराज्य की स्थापना की थी। इसके साथ ही एक महान और परमवीर शासक की तरह ही अपने नाम का सिक्का चलवाया।
वहीं आपको बता दें कि मराठा साम्राज्य के महान शासक शिवाजी महाराज अपनी जीवन की सभी कामयाबियों का श्रेय अपनी माता जीजाऊ को ही देते थे।
अत्यंत तेज और प्रखर बुद्धि के थे शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ki Kahani
भारत के वीर सपूत और मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj बचपन से ही काफी तेज, प्रखर और विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। वे दिमाग से इतने तेज थे कि किसी चीज को एक बार बताने में ही उसे अच्छी तरह से सीख लेते थे, यही वजह थी कि वह युद्ध कला में बचपन से ही निपुण हो गए थे।
उन्होंने बचपन में ही तलवारबाजी, अस्त्र-शस्त्र चलाना और घुड़सवारी करना सीख लिया था। उन्हें बचपन से उनकी बहादुर माता जीजाबाई ने जो भी बताया उसे उन्होंने पूरी लगन और मेहनत के साथ सीखा था। इसके साथ ही उन्हें राजनीतिज्ञ शिक्षा का भी बोध हो गया था।
संत रामदास और तुकाराम महाराज का भी शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj पर काफी प्रभाव पड़ा था, समर्थ रामदास स्वामी शिवाजी महाराज के आध्यात्मिक गुरु भी थे। वहीं उनके संपर्क में आने से वह राष्ट्रप्रेमी, कर्तव्यपरायण, कर्मठ योद्धा बन गए थे।
Shivaji Maharaj Ramdas Swami
भारत के वीर सपूत और सच्चे देशप्रेमी शिवाजी महाराज के बारे में यह भी कहा जाता है कि वह बचपन में अपने दोस्तों के साथ ऐसे खेल खेलते थे जिनसे उनके अंदर युद्ध जीतने की क्षमता का तेजी से विकास हुआ था, आपको बता दें कि वे बचपन में अपने आयु के बालकों को इकट्ठा कर उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे।
हालांकि इसके बाद वह वास्तविक में किलों को जीतने लगे जिससे उनका प्रभाव धीरे-धीरे पूरे देश में पड़ने लगा और उनकी ख्याति बढ़ती चली गई।
Shivaji Maharaj Photo
छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह और संतान – Chhatrapati Shivaji Maharaj Spouse and Children
छत्रपति शिवाजी महाराज की 14 मई 1640 को 12 साल की छोटी सी उम्र में सईबाई निम्बालकर के साथ शादी हुईं थी। उनका विवाह लाल महल पूणे में हुआ था, जिनसे उन्हें संभाजी महाराज इस पुत्र की प्राप्ती हुईं। आपको बता दें कि संभाजी महाराज शिवाजी महाराज के सबसे बड़े पुत्र और उत्तराधिकारी थे, जिन्होंने 1680 से 1689 तक राज्य किया।
Shivaji Maharaj Vanshaj
शिवाजी महाराज के माता-पिता – Shivaji Maharaj Family
- शाहाजी भोंसले – पिता
- राजमाता जिजाबाई – माता
शिवाजी महाराज के भाई/बहन – Shivaji Maharaj Brother Name
१. संभाजी – शिवाजी महाराज के सगे भाई
२. व्यंकोजी – सौतेले भाई
३. संताजी – सौतेले भाई
शिवाजी महाराज की पत्निया – Shivaji Maharaj Wife Name
- सईबाई – पहली पत्नी
- सोयराबाई
- सगुणाबाई
- पुतलाबाई
- लक्ष्मीबाई
- सकवारबाई
- काशीबाई
- गुणवंताबाई
शिवाजी महाराज की संताने – Shivaji Maharaj Children’s Name
- धर्मवीर संभाजी राजे – सईबाई से हुआ पुत्र
- राजाराम – सोयराबाई से हुआ पुत्र
- सखुबाई, राणूबाई,अंबिकाबाई – सईबाई से हुयी पुत्रीया
- दीपाबाई – सोयराबाई से हुयी पुत्री
- राजकुंवरबाई- सगुणाबाई से हुयी पुत्री
- कमलाबाई – सकवारबाई से हुयी पुत्री
शिवाजी महाराज के पोते:
- शाहू महाराज (सातारा)- रानी येसूबाई और संभाजी के पुत्र
- शिवाजी महाराज द्वितीय (कोल्हापूर) – रानी ताराबाई और राजाराम के पुत्र
- संभाजी महाराज – रानी राजसबाई और राजाराम के पुत्र
शिवाजी महाराज के प्रपौत्र/परपोते
- शिवाजी महाराज तृतीय
- रामराजा
अपनी बुदिमत्ता और चतुराई से जमाया था बीजापुर पर अधिकार:
साल 1640 और 1641 की बात है, जब महाराष्ट्र के बीजापुर पर विदेशी शासक समेत कई शासक अपना अधिकार जमाने के मकसद से बीजापुर पर हमला कर रहे थे। इसी दौरान महान और वीर शासक शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ने इनका मुकाबला करने का फैसला लिया और बेहद चतुराई के साथ रणनीति बनाई, जिसके तहत उन्होंने मावलों को बीजापुर के खिलाफ इकट्टा किया।
शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj की आदर्श, कुशल रणनीति और विचारों का मावलों पर इतना प्रभाव पड़ा कि सभी मावलों ने शिवाजी महाराज का पूरे श्रद्धा भाव से साथ दिया। आपको बता दें कि उस बीजापुर की हालत बेहद खराब थी, उस समय बीजापुर में आपसी संघर्ष और मुगलों के युद्ध को झेल रहा था, जिसकी वजह से उस समय के बीजापुर सुल्तान आदिलशाह ने बहुत से दुर्गों से अपनी सेना को हटाकर, इसकी जिन्मेदारी स्थानीय शासकों के हाथों में सौंप दी थी।
इसके बाद महाराष्ट्र के बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह गंभीर बीमारी की चेपट में आ गए, जिसके चलते वह इसकी देख-रेख नहीं कर पा रहे थे।
इसी का फायदा उठाते हुए, अपनी बुद्धिमत्ता और चतुराई से शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ने बीजापुर पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया और फिर शिवाजी ने अपनी कुशल रणनीतियों का इस्तेमाल कर बीजापुर के दुर्गों पर अपना कब्जा जमाने की नीति अपनाई, उन्होंने सबसे पहले तोरणा के दुर्ग में अपना अधिकार जमाया था।
शिवाजी की विस्तार नीति से जब घबराया आदिलशाह:
शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj एक ऐसे महान योद्धा और शासक थे, जो बचपन से ही युद्धकला और अस्त्र-शस्त्र विद्या में निपुण हो गए थे, उन्होंने बचपन से ही जनता पर मुगल शासकों द्धारा किए गए अत्याचारों को देखा था, इसलिए उनके मन में शुरुआत से ही मुगल शासकों के प्रति नफरत पैदा हो गई थी, और उन्होंने छोटी सी उम्र में मुगलों के शासन को उखाड़ देने और हिन्दू धर्म की रक्षा करने का संकल्प ले लिया था।
वहीं 15 साल की छोटी सी उम्र में ही शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ने अपनी अद्भुत शक्ति का इस्तेमाल कर तोरणा किले में हमला किया और उस पर जीत हासिल कर ली थी, इसके बाद उन्होंने कोंडाना और राजगढ़ किले में भी विजय प्राप्त की।
यही नहीं अपनी बुद्दिमत्ता और कुशलता से शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ने भिंवडी, कल्याण, चाकण, तोर्ण जैसे किलो पर भी अपना कब्जा जमा लिया था। शिवाजी महाराज की इस विस्तार नीति से आदिलशाह के साम्राज्य में हड़कंप मच गया और वह साहसी शिवाजी की शक्ति को देखकर घबरा गया।
शिवाजी की शक्ति से घबराकर पिता शाहजी भोसले को बनाया बंदी:
शिवाजी महाराज की अदम्य और अद्भुद शक्ति का अंदाजा लगाकर, बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने शिवाजी महाराज के पिता शाहजीराजे भोसले को बंधक बना लिया।
आपको बता दें कि उस वक्त शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj के पिता शाह जी आदिलशाह की सेना में सेनापति थे। पिता को बंदी बनाए जाने के बाद शिवाजी महाराज ने कई सालों तक आदिल शाह से कोई युद्ध नहीं किया। इस दौरान शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ने अपनी सेना को युद्ध कौशल में निपुण कर और मजबूत बनाया और अपनी सेना का विस्तार भी किया।
इसके साथ ही उन्होंने अपनी विशाल सेना को दो अलग-अलग भागों में बांटा। उसमे थल सेना और घुड़सवार दल भी सम्मिलत थी। उस समय थल सेना की जिम्मेदारी यशाजी कल्क संभाल रहे थे,जबकि घुड़सवार दल की सेना की कमान नेताजी पालकर के हाथों में थी, आपको बता दें कि उस समय शिवाजी के साम्राज्य के तहत करीब 40 किले आते थे।
हालांकि आदिलशाह के कब्जे से अपने पिता शाह जी राजे को बचाने के लिए शिवाजी महाराज और उनके भाई संभाजी ने कोंडाना के किले को वापस कर दिया। वहीं इसके बाद आदिलशाह ने शाहजी भोसले को छोड़ दिया, लेकिन इसका इतना गहरा सदमा लगा कि उनके पिता बीमार रहने लगे, वहीं इसका फायदा उठाते हुए शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ने अपने पिता के क्षेत्र की जिन्मेदारी अपने हाथों में ले ली और वहां के लोगों को लगान देना भी बंद कर दिया था।
हालांकि इस बीच (1964-1965) में शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj के पिता जी की मौत हो गई।
आपको बता दें कि भारत के वीर सपूत और साहसी शासक शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ने चाकन से लेकर निरा तक के सभी भू-भाग पर अपना कब्जा जमा लिया था। इसके बाद शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ने पुरंदर और जवेली की हवेली में भी मराठा का झंडा फहराया था।
जब साहसी योद्धा शिवाजी महाराज को मारने की साजिश हुई नाकाम:
शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj की यश और कीर्ति लगातार बढ़ती जा रही थी, उन्होनें 16-17 साल की उम्र में ही अपने साहस और शक्ति से सबको दंग कर दिया था, वहीं आस-पास के मावलेयों पर भी उनका काफी प्रभाव था, और दिन पर दिन उनका प्रताप बढ़ता ही जा रहा था।
वहीं बीजापुर का सुल्तान आदिलशाह तो उनकी शक्तियों से पहले ही बौखला गया था, और फिर शिवाजी की विस्तार नीति को देखते हुए उसने साल 1659 में अपने सेनापति अफजल खां को शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj को जिंदा या मरा हुआ लाने का आदेश दिया और लगभग 10 हजार सैनिकों के साथ मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी राजे पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया।
आपको बता दें कि अफज़ल खान को शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj से दो गुना ज्यादा शक्तिशाली माना जाता था, लेकिन अफजल खान भूल गया था कि एक बुद्दिमान और ताकतवर वीर योद्धा से टक्कर ले रहा था। अफजल खां बेहद क्रूर और निर्दयी था, इस दौरान उनसे बीजापुर से प्रतापगढ़ किले तक कई मंदिरों को क्षतिग्रस्त किया और तोड़ दिया, और तो और कई बेगुनाहों को भी मार डाला।
और उसने शिवाजी को अपनी कूटनीति से जान से मारने की कोशिश की, हालांकि अफजल खां को यह साजिश भारी पड़ी, क्योंकि शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj इतनी तेज और कुशाग्र बुद्धि के थे कि उन्होंने अफजल खां की साजिश को पहले ही भाप लिया था और जैसे ही अफजल खां ने शिवाजी के गले पर अपना खंजर भोंपना चाहा, उसी समय शिवाजी ने अपनी चतुराई से अफजल खां को मार डाला।
जिसके बाद आदिलशाह की सेनाएं दुम दबाकर वहां से भाग खड़ी हुईं। इसके बाद शिवाजी की सेना ने बीजापुर के सुल्तान को प्रतापगढ़ में हराया था। यहां शिवाजी महाराज की सेना को बहुत से शस्त्र और हथियार भी मिले थे, जिससे शिवाजी की सेना और अधिक मजबूत और ताकतवर हो गई थी।
अफजल खां की मौत के बाद बीजपुर के सुल्तान आदिलशाह ने एक बार फिर शिवाजी जी के खिलाफ अपनी विशाल सेना भेजी थी, जिसका नेतृत्व रुस्तम जमान ने किया था, हालांकि इस बार भी शिवाजी के सेना से अद्भुत साहस और पराक्रम के सामने उसे कोल्हापुर में हार की धूल चाटनी पड़ी।
इसके साथ ही सिद्धी जोहर को भी शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ने अपने साहस और पराक्रम के बल पर बुरी तरह पराजित किया था, वहीं इसके बाद बीजापुर के बाद जब कई सक्षम और प्रभावशाली योद्धा नहीं बचा तो उसने अत्यंत बलशाली शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj से मुकाबले के लिए मुगल साम्राज्य के 6वें शासक औरंगजेब से मद्द मांगी, जिसके बाद औरंगजेब ने अपने मामा शाइस्ता खान को करीब डेढ़ लाख सैनिकों के साथ उनसे युद्ध करने के लिए भेज दिया।
महान वीर शिवाजी महाराज की जब मुगलों से हुई टक्कर:
बीजापुर सुल्तान आदिलशाह द्धारा मद्द मांगने पर मुगल साम्राज्य के शासक औरंगजेब ने उस वक्त दक्षिण भारत में नियुक्त अपने मामा शाहिस्तेखान को शिवाजी के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए भेजा। हालांकि, औरंगजेब भी शिवाजी महाराज के बढ़ते प्रताप और लोकप्रियता से चिंतित थे, उसे शिवाजी महाराज के बारे में पहले से ही मालूम था।
इसके बाद शाइस्ता खान करीब डेढ़ लाख सैनिकों के साथ पुणे पहुंच गया और 3 साल तक उसने जमकर लूटपाट की।
इसके साथ ही शाइस्ता खान की सेना ने पुणे पर हमला कर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया यही नहीं शाइस्ता खान ने छत्रपति शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj के लाल महल पर भी अपना कब्जा जमा लिया, जिसके बाद जब शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj को इसकी खबर लगी तो वे अपने करीब 400 सैनिकों के साथ बाराती बन कर पुणे में गए।
और वहीं जब शाइस्ता खान की सेना शिवाजी के लाल महल में जब आराम कर रही थी, तभी शिवाजी और उनकी सेना ने शाइस्ता खान और उसकी सेना पर हमला कर दिया।
वहीं इस लड़ाई में शाइस्ता खान किसी तरह अपनी जान बचाकर भाग निकला लेकिन वीर शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj के साथ हुई इस लड़ाई में शाइस्ता खान को अपनी 3 उंगलिया खोनी पड़ी, इस लड़ाई में अधिक शक्तिशाली और साहसी शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ने न सिर्फ शाइस्ता खान की उंगलिया काट दी और सैकड़ों सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था वहीं इसके बाद मुगल शासक औरंगजेब ने शाइस्ता खान को दक्षिण भारत से हटाकर बंगाल का सूबेदार बना दिया। इस तरह इस युद्ध में भी परम योद्धा शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ने जीत हासिल की।
जब सूरत पर भी चला शिवाजी महाराज के जीत का सिक्का:
शाइस्ता खान से जीत के बाद शिवाजी के साहस और पराक्रम के चर्चे और तेजी से हर तरफ होने लगे और शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj की शक्ति और ज्यादा मजबूत हो गई इसके साथ ही उनके साथियों के हौंसले सातवें आसमान पर पहुंच गए।
वहीं दूसरी तरफ मुगल शासक औरंगजेब पहले से और अधिक गुस्से में आ गया और हार के बाद शाइस्ता खान ने करीब 6 साल बाद अपनी सेना के साथ मिलकर शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj के कई क्षेत्रों को जला कर बर्बाद कर दिया।
ये सब देखकर शिवाजी महाराज ने इस तबाही का बदला लेने की ठानी और मुगल साम्राज्य के कई क्षेत्रों पर धावा बोल दिया, उन्होंने अपने साहसी और बलशाली सैनिकों के साथ मुगलों के कई इलाकों में लूटपाट करना शुरु कर दीया।
वहीं सूरत उस समय मुस्लिमों के प्रमुख तीर्थ स्थल हज पर जाने का एक मात्र प्रवेश द्धार था, सूरत में भी शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ने अपनी विशाल सेना के साथ सूरत के व्यापारियों से जमकर लूटपाट की, लेकिन उन्होंने किसी भी आम आदमी को अपनी लूट का शिकार नहीं बनाया।
इस तरह शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ने साल 1664 में मुगलों के क्षेत्रों में घुसकर अपने शौर्य और पराक्रम से अपनी तबाही का बदला लिया और सूरत में भी अपने नाम का सिक्का चलवाया।
शिवाजी ने जब मुगलों से की ‘पुरन्दर की संधि’ – Treaty of Purandar in Hindi
साहसी और वीर शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj से लगातार अपनी हार के बाद मुगल शासक औरंगजेब और भी ज्यादा बौखला गया और इस घटना का बाद उसने शिवाजी महाराज से युद्ध करने के लिए अपने सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली सेनापति मिर्जा राजा जयसिंह भेजा।
करीब 1 लाख सैनिकों के साथ राजा जयसिंह, अत्यंत साहसी और वीर योद्धा शिवाजी महाराजा से युद्ध करने के लिए पहुंचे थे, दरअसल जयसिंह को शिवाजी महाराज की शक्ति का अंदाजा हो गया था।
इसलिए वह इस बार रणनीति बनाकर शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj से मुकाबला करने के लिए निकला था और इसके लिए उसने बीजापुर के सुल्तान के साथ मिलकर शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj को हराने की योजना बनाई थी।
इस दौरान राजा जय सिंह ने पराक्रमी शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj को पराजित कर दिया था, जिसके बाद साहसी योद्धा शिवाजी महाराज को मुगल सल्तनत को करीब 23 किले देने पड़े थे। दरअसल, जयसिंह जब शिवाजी महाराज से मुकाबला कर रहा था तो उस दौरान उसने उन सभी किलों को जीत लिया था, जिनको शिवाजी महाराज ने जीते थे, वहीं इस पराजय के बाद शिवाजी महाराज को मुगलों के साथ समझौता भी करना पड़ा था। वहीं इस दौरान जयसिंह ने अपनी रणनीति के मुताबिक 24 अप्रैल, 1665 में व्रजगुढ़ के किले पर अपना कब्जा कर लिया था।
वहीं इस दौरान पुरन्दर के किले की रक्षा करते हुए शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj का सबसे साहसी और वीर सेनापति ‘मुरार जी बाजी’ मारा गया। इस दौरान शिवाजी महाराज को अंदेशा हो गया था कि पुरन्दर के किले को बचा पाना थोड़ा मुश्किल है, इसी वजह से उन्होंने महाराजा जयसिंह से संधि की पेशकश की। वहीं दोनों नेता संधि की शर्तों पर पूरी तरह से सहमत हो गए और 22 जून, 1665 ई. को ‘पुरन्दर की सन्धि’ हुई थी।
शिवाजी महाराज की आगरा के दरबार में औरंगजेब से भेंट – Shivaji Maharaj And Afzal Khan Story
मुगल शासक औरंगजेब से समझौते के बाद भी परमवीर और साहसी योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj उनसे आगरा के दरबार में मिलने के लिए तैयार हो गए थे।
9 मई, 1666 ई को परमवीर योद्धा अपने ज्येष्ठ पुत्र संभाजी महाराज और कुछ सैनिकों के साथ मुगल दरबार में पधारे थे, हालांकि मुगल शासक औरंगजेब द्धारा उचित सम्मान न मिलने पर साहसी शिवाजी ने भरी सभा में औरंगजेब को ‘विश्वासघाती’ कहा था, जिसके बाद औरंगजेब ने शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj और उनके बेटे संभाजी महाराज को कैदी बना लिया था, लेकिन अपनी तेज बुद्धी का इस्तेमाल कर शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj चतुराई के साथ 13 अगस्त, 1666 में अपने बेटे के साथ फलों की टोकरी में छिपकर आगरा के किले से भाग निकले और 22 सितंबर, 1666 को रायगढ़ पहुंच गए।
शिवाजी महाराज ने फिर से छेड़ी मुगलों के खिलाफ जंग और दोबारा हासिल किए अपने किले:
जब परमवीर और साहसी योद्धा शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj , मुगल शासक औरंगजेब के चंगुल से फरार हो गए थे, तब उन्होंने एक बार फिर नई शक्ति और अधिक ऊर्जा और सूझबूझ के साथ मुगलों के साथ धावा बोला।
इस बार साहसी शिवाजी ने मुगलों के खिलाफ ऐसी रणनीति तैयार की थी, कि बाद में मुगल शासक ने उनके अद्भुत शक्ति के सामने घुटने टेंक दिए थे।
साल 1674 में शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ने मुगलों के खिलाफ युद्ध कर अपने सभी 23 जिलों पर जीत हासिल कर ली थी और उन सभी प्रदेशों पर अपना कब्जा जमा लिया था, जो कि उन्हें पुरन्दर की संधि के दौरान मुगलों को देने पड़े थे।
यह वह वक्त था जब मुगल शासक औरंगजेब के पास उसका सबसे अधिक साहसी और बलशाली सेनापति जयसिंह नहीं था, हालांकि औरंगजेब ने शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj के खिलाफ अपने दो योद्धा दाउद खान और मोहब्बत खान को भेजा था, लेकिन अति शक्तिशाली, बलशाली और पराक्रमी शिवाजी महाराज की अदभुत शक्ति के सामने दोनों ही योद्धाओं को हार का मु्ंह देखना पड़ा। वहीं इस बीच बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की मौत हो गई।
यह वह समय था जब बीजापुर की सल्तनत कमजोर पड़ने थी। वहीं इसके बाद मुगल साम्राज्य के छठवें शासक औरंगजेब ने शिवाजी महाराज के साहस और शक्ति को देखकर उन्हें राजा मान लिया था।
शिवाजी महाराज को छत्रपति की उपाधि और राज्यभिषेक – Shivaji Maharaj Rajyabhishek
अपने सभी किलों को फिर से हासिल कर जीजाबाई के साहसी और वीर पुत्र शिवाजी महाराज ने पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की, इसके बाद वह महाराष्ट्र के एक ऐसे शासक बने, जिन्होंने हिन्दू रीति-रिवाजों के मुताबिक शासन किया।
Shivaji Maharaj Rajyabhishek
आपको बता दें कि 6 जून, साल 1674 को रायगढ़ में वीर छत्रपति शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj का राज्याभिषेक हुआ। वहीं भारत में कई सालों बाद किसी राजा की हिन्दू परंपरा और रीति-रिवाज के साथ राज्याभिषेक किया गया था, इस राज्यभिषेक में कई अलग-अलग राज्यों के प्रतिनिधियों, दूतों के अलावा कई बड़े और विदेशी व्यापारियों को भी न्योता दिया गया।
इस राज्याभिषेक समारोह में मुख्य रुप से पंडित विश्वेक्ष्वर जी भट्ट को न्योता दिया गया था। इसके बाद उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj का राज्याभिषेक किया। वहीं 12 दिन के बाद उनकी माता जीजाबाई का स्वर्गवास हो गया, जिसके बाद शिवाजी महाराज काफी दुखी हुए क्योंकि शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj अपने माता जीजाबाई के अत्यंत करीबी थे, और वे अपनी जिंदगी की सभी सफलताओं का श्रेय भी अपनी माता को देते थे।
हालांकि कुछ दिन बाद दूसरी बार फिर से उनका राज्याभिषेक किया गया, जिसमें दूर-दूर से पंडितों को बुलाया गया, वहीं इस समारोह में हिन्दू स्वराज्य की स्थापना का भी उदघोष किया गया, वहीं विजयनगर के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था।
शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj एक महान, साहसी और वीर योद्धा थे और सभी धर्मों का आदर करते थे, यही नहीं उन्होंने मराठा साम्राज्य में जातिगत भेदभाव को खत्म कर दिया था और भारत में सबसे पहले नौ सेना के निर्माण का श्रेय भी इन्हीं को जाता है, उन्होंने और कई ऐसे नेक काम किए जिससे समाज का कल्याण हुआ, इसलिए शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj को ‘छत्रपति’ की उपाधि भी दी गई। इस तरह वह मराठा साम्राज्य के एक ऐसे शासक बने, जिन्होंने अपने नाम का सिक्का पूरी दुनिया में चलाया।
हमेशा के लिए सो गए भारत के वीर सपूत शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj Death
अत्यंत साहसी और पराक्रमी योद्धा शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj का प्रभाव सिर्फ महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ा था, इसी वजह से महज 50 साल की आयु में ही उन्होंने मराठा साम्राज्य के बाहर भी अपने राज्य की स्थापना की थी।
आपको बता दें वे एक ऐसे बहादुर शासक थे जिनके पास 300 किले और करीब 1 लाख सैनिकों की विशाल फौज थी और वह अपनी सेना का बेहद ख्याल रखते थे, आपको बता दें कि शिवाजी के सेना में सिर्फ वही लोग भर्ती हो सकते थे, जो कि योग्य और सक्षम होते थे।
ऐसा कहा जाता है कि, अपने जीवन के आखिरी दिनों में वह अपनी राज्य को लेकर काफी चिंतित रहने लगे थे, जिसकी वजह से उनका स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया और लगातार वे 3 सप्ताह तक तेज बुखार में रहे, जिसके बाद 3 अप्रैल 1680 में उनका निधन हो गया।
इस तरह एक महान और साहसी योद्धा शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj दुनिया से हमेशा के लिए चले गए, लेकिन उनके द्धारा किए गए नेक कामों को हमेशा लोगों द्धारा याद किया जाएगा। वह न सिर्फ एक महान योद्धा और वीर शासक थे बल्कि वे एक महान हिंदू रक्षक भी थे, उन्होंने हिन्दू समाज को एक नई दिशा दिखाई।
शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj ने हिंदुओं के उद्धार के लिए कई काम किए, और यही वजह है कि छत्रपति शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj को माननेवाले उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं।
शिवाजी महाराज के विचार / कथन – Shivaji Maharaj Quotes
- “शत्रू को कमजोर ना समझो, तो अत्याधिक बलिष्ठ समझकर डरना भी नही चाहीए।”
- “सर्वप्रथम राष्ट्र, फिर गुरु, फिर माता पिता, फिर परमेश्वर।अतः पहले खुद को नही राष्ट्र को देखना चाहिये।”
- “जब हौसले बुलंद हो, तो पहाड भी एक मिट्टी का ढेर लगता है।”
- “नारी के सभी अधिकारो मे सबसे महान अधिकार माँ बनने का होता।”
- “एक छोटा कदम छोटे लक्ष्य पर, बादमे विशाल लक्ष्य भी हासिल करा देता है।”
- “आत्मबल सामर्थ्य देता है, और सामर्थ्य विद्या प्रदान कराता है।विद्या स्थिरता प्रदान कराती है, और स्थिरता विजय की तरफ ले जाती है।”
- “जरुरी नही है के विपत्ती का सामना, दुश्मन के सम्मुख से ही करने मे विरता हो। विरता तो विजय मे है।”
- “प्रतिशोध मनुष्य को जलाती रहती है,संयम ही प्रतिशोध को काबू करने का उपाय होता है।”
- “जो धर्म,सत्य,श्रेष्ठता और परमेश्वर के सामने झुकता है, उसका आदर समस्त संसार करता है।”
- “एक पुरुषार्थी भी, एक तेजस्वी विद्वान के सामने झुकता है,क्योंकी पुरुषार्थ भी विद्या से ही आता है।”
- “जीवन मे सिर्फ अच्छे दिनो की आशा नही रखनी चाहिये,क्योंकी दिन और रात की तरह अच्छे दिनो को भी बदलना पडता है।”
- “अंगूर को जबतक ना पेरो वो मिठी मदिरा नही बनती,वैसे ही मनुष्य जब तक कष्टों मे पिसता नही, तब तक उसके अंदर की सर्वोत्तम प्रतिभा बाहर नही आती।”
- “एक सफल मनुष्य अपने कर्तव्य की पराकाष्ठा के लिये,समुचित मानव जाती के चुनौती को स्वीकार कर लेता है।”
- “कोई भी कार्य करने से पहले उसका परिणाम सोच लेना हितकर होता है, क्योंकी हमारी आने वाली पिढी उसी का अनुसरण करती है।”
- “स्वतंत्रता एक वरदान है, जिसे पाने का अधिकारी हर कोई है।”
शिवाजी महाराज पर पोवाडा गीत – Shivaji Maharaj Powada
शिवाजी महाराज के चरित्र एवं प्रशंसा पर पोवाडा गीत….
“इंद्र जिमि जंभ पर…बाड्व सुअंभ पर..
रावण सदंभ पर….रघुकुल राज है!
पौन बारिबाह पर….संभू रतिनाह पर..
ज्यो सहबाह पर ……राम द्विजराज है!
कोख मे बच्चे के लिये माता के समान..जनता के लिये धूप मे छाँव समान..
गड किले मंदिर मे …ये शिवशंकर है..
मुक्ती हेतू मंत्र के समान…युक्ती की यंत्रणा है ये…
अधम दृष्टो के लिये …ये प्रलयंकर समान है..
सज्जन संतो के ये रक्षक है …तथा शत्रुओ के विनाशक है..
बंधू भावना के ये संस्थापक है..इसीलिये युगो युगो से ये सबके स्मरणीय है…
किसी के लिये माता पिता के समान तो किसी के लिये मित्र समान …ऐसे ये राजा शिवाजी है..
दावा दृमदंड पर…चिता मृगझुंड पर…
भूषण वितुंड पर….जैसे मृगराज है!
तेज तम अंस पर…कान्ह जिमि कंस पर…
त्यो मलिच्छ् बंस पर…सेर सिवराज है!
जय भवानी, जय शिवाजी”
उपरोक्त पोवाडा गीत मे राजे शिवाजी के चरित्र,उनके नेतृत्व कौशल एवं राज्य नीती का वर्णन किया हुआ है।
अफजल खान वध प्रसंग पर पोवाडा गीत
“भवानी माता का किया दर्शन, जिजामाता को किया वंदन,लेकर उन सभी का आशिर्वाद वीर शिवाजी निकले अफजल खान से करने मुलाकात।जीवा महाला,संभाजी कावजी लेकर साथ, अफजल खान का तोडने घमंड दाखिल हुये शिवाजी पंडाल मे, जहा तय हुई थी मिलने की बात।
शरीर बल और देह बनावट से खान था बहुत ताकतवर, उसके सामने राजा शिवाजी लग रहे थे छोटे और बहुत कमजोर।नियत और इरादे अफजल खान के लग रहे थे काफी शातिर, फसाना था उसे शिवाजी राजा को चंगूल मे पर ये उसकी सोच बनी सबसे बडी भूल।
गले मिलाने के बहाने पकडा उसने शिवाजी को अपनी बाहो मे,छल था भरा उसके इरादो मे, अगले ही पल हुआ ये अंदेशा राजा शिवाजी को मन मे।लगा दबाने खान अपना कंधा राजा शिवाजी के गर्दन पर, था इरादा उसका दबोच कर कुचल दु शिवाजी को अगले ही पल।
निकाल खंजर अपना कर दिया अफजल खान ने शिवाजी राजा की पिट पर वार,हक्का बक्का रह गया खान क्योंकी बेअसर हुआ था उसका वार।दबाने लगा था खंजर पीठ पर ताकतवर हाथो से खान, पता नही था उसे शायद शिवाजी भी थे चालाकी मे कई गुना अकलमंद इंसान।
पहना हुआ था पहले से राजा शिवाजी ने लोहे का कवच, जिससे था अफजल खान अंजान।दबा दिया अगले ही पल राजा शिवाजी ने खुदका खंजर खान के पेट के अंदर, निकाल बाहर हुई खान की आंत गिर पडा खान जमीन पर।
छल कपट अफजल खान का खुद्के जान पर बन आया, सय्यद बंडा था जो साथ मे उसके उसे शिवाजी के साथी जीवा महाला ने मार गिराया। अधम छल कपटी अफजल खान के मृत्यू ने मान राजा शिवाजी का था बढाया, भयभीत हुई आदिलशाही, मराठा के बल का शिवबा ने था लोहा मनवाया।”
उपरोक्त पोवाडा गीत शिवाजी महाराज द्वारा अफजल खान के किये गये वध प्रसंग पर आधारित है,जिसमे आदिलशाही के सबसे ताकतवर सेनापती अफजल खान के छल कपट को राजा शिवाजी ने बुद्धीबल और साहस से मात दी थी।
इस घटना ने साबित किया की शक्ती से ज्यादा युक्ती कई गुना सर्वश्रेष्ठ होती है, तथा छल कपट कभी भी ज्यादा देर तक टिक नही सकता।
शिवाजी महाराज राजमुद्रा – Shivaji Maharaj Rajmudra
6 जून “इ.स. 1674” को शिवाजी महाराज का रायगड पर राज्याभिषेक हुवा। और तभी उन्होंने खुदकी राजमुद्रा तयार की। और ये राजमुद्रा संस्कृत भाषा में थी।
संस्कृत: “प्रतिपच्चंद्रलेखेव वर्धिष्णुर्विश्ववंदिता शाहसुनोः शिवस्यैषा मुद्रा भद्राय राजते”
इंग्रजी: The glory of this Mudra of Shahaji’s son Shivaji (Maharaj) will grow like the first day moon. It will be worshiped by the world & it will shine only for well being of people.
छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ी अहम बातें – Facts about Shivaji Maharaj
- शिवाजी महाराज मराठा साम्राज्य के संस्थापक है जिन्होनें पूरे देश में मराठा लहर को हवा दी थी।
- छत्रपति शिवाजी महाराज ने औंरगजेब के सैनिकों को हराकर मुगलों के आधीन सूरत को दो बार लूटा।
- शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक को लेकर कहा जाता है कि मुगलों ने देश के सभी ब्राह्मणों को डराया था जिस पर छत्रपित शिवाजी महाराज ने कसम खाई थी कि वो अपना राज्यभिषेक मुगल शासित राज्य के ब्राह्मण से ही करवाएँगे। जिसके बाद काशी के ब्राह्मणों दारा शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया गया था। जो उस समय मुगलों के आधीन था।
Shivaji Maharaj Forts
- छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने शासन के दौरान 8 अद्भुत किलों का निर्माण कराया जिनमें से रायगढ़, सिंधुदुर्ग का किला, सुवर्णदुर्ग का किला (गोल्डन फोर्ट), पुरंदर का किला प्रमुख है।
- छत्रपति शिवाजी महाराज ने ही गुरिल्ला वार को नया रुप दिया था। और इसे देश में प्रचलित किया था। माना जाता है कि शिवाजी महाराज ने शिवनेरी किले पास मौजूद गुफाओँ में गुरिल्ला वार ट्रेनिंग ली थी।
- शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के 12 दिन बाद उनकी माता जिजाबाई का देहांत हो गया था।
- छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा और संस्कृत भाषाओं को दोबारा देश में महत्व दिलाया।
- छत्रपति शिवाजी महाराज की याद में अरब सागर के एक द्वीप पर उनके अब तक के सबसे बड़े स्मारक की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में रखी थी। रिपोर्टस के अनुसार ये स्मारक तैयार होने के बाद विश्व का सबसे बड़ा स्मारक कहलाएगा।
“छत्रपती शिवाजी महाराज की जय”
अगले पेज पर पढ़े छत्रपति शिवाजी महाराज का ….
सर्वप्रथम बेहतरीन , उच्च गुणवत्ता एवं सम्पूर्ण जानकारी से पूर्ण लेख के लिए आप निश्चित रूप से बधाई के पत्र हैं .. यह इतनी महान हस्ती का जादू ही है की चाहे कश्मीर हो या कन्या कुमारी छत्रपति .. बस यह शब्द काफी है और वीरों के वीर छत्रपति शिवाजी महाराज का चित्र दिमाग में कौंध जाता है ..ऐसा विराट व्यक्तित्व जिसने अपनी बुद्धि , वीरता और युद्ध कौशल से दुश्मनो के दन्त खट्टे किये हो वह वास्तव में पूजनीय है .. और आप जैसे लेखक / ब्लॉगर निश्चित रूप से सराहना के पात्र है जो ऐसी जीवनियों को नए पाठकों के सम्मुख इतने शानदार और सरल शब्दों में रखते हैं की जिनको हिंदी भाषा का अल्प ज्ञान हैं वह भी आसानी से उन्हें समझ कर उनके अंश अपने जीवन में उतार सकें .. उज्जवल भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं लेखक महोदय .. लिखते रहिये और युवाओं को प्रोत्साहित करते रहिये ।