Jahanara Begum
Jahanara – जहाँआरा बेगम शाहजहाँ की बड़ी बेटी और औरंगज़ेब की बहन है। शाहजहाँ अपनी बेटी से अन्य बच्चों की अपेक्षा ज़्यादा प्यार करते थे। जहाँआरा – Jahanara जब पैदा हुई तब आगरा के लालकिले को बहुत ही सुंदर फूलों से सजाया गया था। आज हम जहाँआरा के जीवन के बारेमें जानेंगे कुछ बातें।
शाहजहाँ की बड़ी और सबसे लाडली बेटी राजकुमारी “जहाँआरा बेगम” – Jahanara Begum
Jahanara – जहाँआरा बेगम का जन्म 23 मार्च 1614 में भारत के अजमेर, राजस्थान में मुग़ल वंश में हुआ था। बेगम के पिता का नाम शाहजहाँ था और माता का नाम अर्जुमन्द बानो था। जहाँआरा बेगम को पादशाह बेगम और बेगम साहब के नाम से भी जाना जाता है। जहाँआरा अपने माता पिता की चौदहवीं संतान थी और औरंगज़ेब की बड़ी बहन थी।
शाहजहाँ और जहाँआरा का अनूठा रिश्ता –
जहाँआरा ने अपने जीवन काल के दौरान वह जब चौदह वर्ष की हुई तभी से अपने पिता शाहजहाँ के राजकार्यों में उनका हाथ बटाने लगी थी।
जहाँआरा – Jahanara मुग़ल सल्तनत की एक अकेली ऐसी राजकुमारी थी, जिसे आगरा फोर्ट के बाहर अपने खुद के महल में रहने की इजाजत थी। अपनी माँ अर्जुमन्द के देहांत के बाद जहाँआरा अपने पिता की सबसे विश्वासपात्र साथी रही थी।
औरंगज़ेब ने अपने पिता शाहजहाँ को अंतिम समय में जब आगरा के किले में कैद कर लिया था। तब भी गुणों से भरपूर जहाँआरा – Jahanara ने अपने पिता की उनकी मृत्यु होने तक धन और मन से सेवा की। शाहजहाँ की मृत्यु जनवरी वर्ष 1666 में हो गयी थी।
जहाँआरा, आग की लपटों में जली थी।
जहाँआरा – Jahanara के जीवन में एक ऐसी घटना घटी थी की जिस ने महल में रह रहे हर शख़्स को चिंतित कर दिया था। वर्ष 1644 में जहाँआरा – Jahanara किसी कारण से आग की लपटों में आ गयी थी और बहुत ही बुरी तरह से जख़्मी हुई थी।
इस हादसे से बेगम का आधे से ज्यादा शरीर का हिस्सा जल गया था। शाहजहाँ को जब इस खबर का पता लगा तो उसने उस समय के बेहतरीन वैधों को जहाँआरा के इलाज के लिए महल में बुलवाया था।
इस घटना के बाद जहाँआरा – Jahanara को करीब चार महीनों तक जिन्दगी और मौत के बीच संघर्ष करना पड़ा था। आखिर में उनकी जान खतरे से बाहर हुई और ग्यारह महीनों के लम्बे आराम के बाद वह महल में फिर से उसी विश्वास के साथ लौटी तब शाहजहाँ – Jahanara ने उन्हें बहुत ही कीमती रत्न व आभूषण दिये साथ ही सूरत के पोर्ट से आये पूरे राजस्व को जहाँआरा के नाम कर दिया था।
जहाँआरा और औरंगज़ेब
दोनों बहन भाई के कई मुद्दों को लेकर विचार मेल नही खाते थे। जिसके कारण इनमें हमेशा ही थोड़ी बहुत नोक झोंक हमेशा रहती थी। जहाँआरा – Jahanara ने अपने भाईयों में सत्ता संघर्ष को टालने के लिए बहुत प्रयास किये पर उसकी सभी कोशिशें विफल साबित हुई।
राजगद्दी के लिए औरंगज़ेब और दारा शिकोह के बीच मुकाबला था। उस वक्त जहाँआरा – Jahanara ने दारा शिकोह का पक्ष लिया था। पर अंत में यह मुकाबला औरंगज़ेब जीत गया था। दारा शिकोह का साथ देने के बावजूद भी औरंगज़ेब ने जहाँआरा को पादशाह बेगम का ख़िताब दिया था।
औरंगज़ेब अपनी बड़ी बहन जहाँआरा – Jahanara का उतना ही सम्मान करते थे जितना की दारा शिकोह और अपने पिता शाहजहाँ का।
जहाँआरा, हिन्दू धर्म के प्रति सम्मान
जहाँआरा, एक राज महल में जन्मी बेटी थी फिर भी वह धर्म और इनसानियत का बहुत सम्मान करती थी। जिसके कारण एक बार उसने अपने भाई औरंगज़ेब के बनाये गये कानून के खिलाफ आवाज़ भी उठाई थी, जिसमें गैर -मुसलमानों से चुनाव के लिए कर वसूला जाता था।
जहाँआरा – Jahanara का मानना था की औरंगज़ेब के इस कानून से देश का बटवारा हो जायेगा और देश बिखर जायेगा। वह हिंदू मुस्लिम धर्म के लोगों को एक साथ लेकर चलना चाहती थी। ऐसी कई कारनामे जहाँआरा – Jahanara ने अपने जीवन काल के दौरान किये जिस के कारण आम जनता उसका तह दिल से उसका सम्मान करती थी।
जहाँआरा की अभिरुचि
जहाँआरा बहुत से चीजों को लेकर रूचि रखती थी। वह एक लेखिका भी थी, उसे हिंदी, उर्दू, अरबी व फ़ारसी भाषा का ज्ञान था। जहाँआरा – Jahanara ने अपने हाथों से एक पानी वाले जहाज का नक्शा तैयार किया था। जिसका नाम सहीबी था।
जहाँआरा का निधन – Jahanara Begum Death
अपना सारा जीवन राजमहल में बिताने के बाद वह अपने जीवन के अंतिम समय में लाहौर के संत मियाँ पीर की शिष्य बन गयी थी। जहाँआरा – Jahanara ने 67 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया था। उसका देहांत 16 सितम्बर 1681 में हुआ और नई दिल्ली की निजामुद्दीन दरगाह के भवन में उनके मृतक शरीर को दफ़नाया गया था।
जहाँआरा, कुछ दिलचस्प बातें – Facts About Jahanara Begum
जहाँआरा – Jahanara जिस सराय में रहती थी उसे आज दिल्ली में चांदनी चौंक के नाम से जाना जाता है। जो कि दिल्ली में काफी प्रसिद्ध है। 1648 में आगरा में जिस जामा मस्जिद को बनाया गया था उसमे जहाँआरा – Jahanara का सबसे ज्यादा योगदान था। जहाँआरा – Jahanara ने उस समय में अजमेर के मुइनुद्दीन चिश्ती के ऊपर जीवनी भी लिखी थी।
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