Mahatma Gandhi Nobel Peace Prize
हर साल वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल (Alfred Nobel)की याद में विभिन्न क्षेत्रों में दिया जाने वाला नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize)चर्चा विषय में बना रहता है। वैसे तो भौतिकी और रसायन के क्षेत्रों में नोबेल पुरस्कार (Nobel Puraskar)उपलब्धियों के आधार पर दिया जाता है। यानी किसी ऐसी नई खोज के लिए जिसे मानव कल्याण के लिए उपयोग किया जा सकता है।
लेकिन शांति में नोबेल पुरस्कार का कोई पैमाना नहीं है क्योंकि ये मानवता के लिए दिया जाता है। दुनियाभर से उन लोगों कों शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए नामंकित किया जाता है। जिन्होनें समाज के लिए कुछ किया हो और जिसने मानवता की एक नई नींव रखी हो।
साल 2018 का शांति में नोबेल पुरस्कार (2018 Nobel Peace Prize) सामजिक कार्यकर्ता नादिया मुराद (Nadia Murad) और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर डेनिस मुकवेगे (Denis Mukwege)को दिया है। पर जब भी हम शांति में नोबेल पुरस्कार की बात करते है तो हमारे मन में अक्सर ये सवाल जरुर आता है कि आखिर महात्मा गाँधी को कभी नोबेल पुरस्कार क्यों नहीं मिला, जिनकी अहिंसा वादी सोच की छाप आज भी दुनियाभर में है।
भारत में महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता का दर्जा प्राप्त है वहीं दुनियाभर के कई बड़े देश भी महात्मा गाँधी की सोच को बहुत मानते है। ऐसे में महात्मा गाँधी को नोबेल पुरस्कार क्यों नहीं मिला ये सोचने वाला विषय है चलिए आपको बताते है ऐसा क्यों हुआ था।
आख़िर क्यों नहीं मिला महात्मा गाँधी को नोबेल पुरस्कार – Mahatma Gandhi Nobel Peace Prize
1901 से शांति के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार दिए जा रहे है और तब से बहुत से लोगों को ये पुरस्कार दिया जा चुका है। हालांकि इस दौरान कई साल ऐसे भी आए जिस साल किसी को भी शांति में नोबेल पुरस्कार के लिए काबिल नहीं समझा गया। और 27 बार ऐसा हुआ जब शांति का नोबेल पुरस्कार किसी व्यक्ति को नहीं बल्कि संस्था को दिया गया है।
जिस वजह से ये सवाल हमेशा उठता रहा कि आखिर महात्मा गाँधी को नोबेल पुरस्कार क्यों नहीं दिया गया जिस पर आज तक नोबेल कमेटी ने कोई भी स्पष्ट बयान नहीं दिया है। लेकिन जब महात्मा गांधी जीवित थे। तो उनके जीवनकाल के दौरान उनका नाम 4 बार इस पुरस्कार के लिए नामंकित हुआ था।
पहली बार साल 1937 में उसके बाद 1938, 1939 और फिर आजादी के साल 1947 में महात्मा गाँधी का नाम शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए नामंकित हुआ था। इसके बाद साल 1948 में भी महात्मा गाँधी का नाम शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित हुआ था लेकिन उसके कुछ दिनों बाद ही महात्मा गाँधी की मृत्यु हो गई। और नोबेल पुरस्कार कभी भी मरणोपरांत नहीं दिया जाता है। इसलिए वो आखिरी आस भी खत्म हो गई।
लेकिन यहां पर ये सवाल जरुर उठता है कि चार बार नामंकन के दौरान एक बार भी नोबेल कमेटी को महात्मा गाँधी योग्य क्यों नहीं लगे? कुछ तथ्यों की माने तो शायद नोबेल कमेटी महात्मा गाँधी को नोबेल पुरस्कार देकर अंग्रेजों की नाराजगी नहीं झेलना चाहती थी। क्योंकि उन दिनों अंग्रेजो के खिलाफ भारत में आंदोलन तेजी पर था। जिसका नेतृत्व महात्मा गाँधी कर रहे थे।
हालांकि ये बात कही ना कही खारिज भी हो जाती है क्योंकि आजादी के बाद साल 1948 में खुद क्वेकर ने महात्मा गाँधी का नाम नोबेल के लिए नामंकित किया था। और शायद 1948 में महात्मा गाँधी को ये पुरस्कार मिल भी जाता लेकिन उसे पहले ही उनकी मृत्यु हो चुकी थी।
हालांकि इसके बाद भी कमेटी के पास विशेष स्थिति में मरणोपरांत नोबेल पुरस्कार देने का कानूनी रास्ता था। लेकिन कमेटी की दुविधा ये थी कि महात्मा गाँधी का न कोई ट्रस्ट था ना कोई वसियत। जिस वजह से ईनाम की रकम किसे दी जाए ये तय करना बहुत कठिन था। जिस वजह से अंत में कमेटी की तरफ से फैसला किया गया कि इस साल किसी को भी शांति पुरस्कार नहीं दिया जाएगा।
सोचने वाली बात है कि महात्मा गाँधी की राह पर चलने वाले नेल्सन मंडेला सहित कई लोगों को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। लेकिन महात्मा गाँधी को ये सम्मान नहीं मिला। हालांकि अगर महात्मा गाँधी को ये सम्मान दिया जाता तो शायद नोबेल कमेटी का ही कद बढ़ता क्योंकि महात्मा गाँधी की लोकप्रियता दुनिया के हर देश में थी।
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