Bijapur Fort
दक्षिण भारत के कर्नाटक में बीजापुर का पुराना और मशहूर किला है उसे बीजापुर किले के नाम से जाना जाता हैं। कनाडा भाषा में इस किले को विजापुर कोटे कहा जाता है।
मशहूर बीजापुर किले का इतिहास – Bijapur Fort History
आदिल शाही वंश के दौरान इस किले का निर्माण किया गया। इस किले में बहुत सारे ऐसे ऐतिहासिक स्मारक है जिन्हें वास्तुकला की दृष्टि से काफ़ी महत्व दिया गया है। इस किले के इलाके में लगभग 200 साल तक आदिल शाही ने शासन किया था।
आलीशान किला और आजूबाजू के शहरों की इमारते मध्यकाल के ज़माने की तरह होने के कारण बीजापुर को दक्षिण भारत का आगरा भी कहा जाता है।
सम्मिलित रूप से किला, गढ़ और अन्य स्मारकों का समृद्ध इतिहास बीजापुर शहर के इतिहास में आता है, जिसका निर्माण 10-11 शताब्दी में कल्याणी चालुक्य के समय किया गया था। उस समय इसे विजयपुरा (विजय का शहर)) कहा जाता था।
13 वी शताब्दी में यह शहर खिलजी वंश के राजा के नियंत्रण में था। 1347 में यहाँ के इलाके को गुलबर्गा के बहमनी सुलतान ने जीत लिया था। उस दौरान शहर को विजापुर या बीजापुर कहा जाता था।
जब किला बनाने का काम शुरू किया गया तो आजू बाजु के लोगों को नहीं लिया गया। राजा ने किले को ओर खास और शानदार बनाने के लिए पर्शिया तुर्की और रोम से लोगों को बुलाया था।
युसूफ आदिल शाह जो तुर्की का सुलतान मुराद 2 का लड़का था उसने 1481 में सुलतान के बीदर दरबार में चलाया गया था।
उस वक्त मोहम्मद 3 सुलतान था। उस राज्य के प्रधान मंत्री महमूद गवान ने उसे गुलाम के रूप में खरीद लिया था। राज्य के प्रति उसकी ईमानदारी और बहादुरी को देखकर 1481 में उसे बीजापुर के गवर्नर पद पर नियुक्त किया गया था।
किला और गढ़ यानि अर्किला और फारुख महल को उसने निर्माण किया था। उसके लिए पर्शिया, तुर्की और रोम से कारीगर और कुशल वास्तुकारों को किले के निर्माण के लिए बुलाया गया था। आखिरकार युसूफ ने सुलतान के साम्राज्य से ख़ुद को अलग करके स्वतंत्र होने की घोषणा की थी और 1489 में आदिल शाही वंश या बहमनी राज्य की निर्मिती की थी।
इब्राहीम आदिल शाह उसके पिता युसूफ आदिल शाह 1510 में गुजरने के बाद सिंघासन पर आये थे। आदिल शाह की पत्नी पूंजी हिन्दू धर्म की थी और वो एक मराठा योद्धा की लड़की थी।
जब उसके पिता गुजर गए थे तब वो छोटा था तो उस उक्त उसका सिंघासन छिनने की कोशिश की गयी थी लेकिन उसकी मा ने सिंघासन छिनने वाले लोगों के खिलाफ बड़ी बहादुरी से सामना किया।
और उसकी मा के बहादुरी के कारण ही बाद में वो बीजापुर का सुलतान बन गया। उस किले को बड़ा बनाने का काम उसने किया और उसमे जामी मस्जिद को भी उसने बनवाया था।
इब्राहीम आदिलशाह के बाद सिंघासन पर अली आदिल शाह 1 आया था। उसने दक्खन में अन्य मुस्लिम शासक के साथ मिलकर काम किया था। उनमे अहमदनगर और बीदर के शाही राज्य भी शामिल थे।
अली ने किले के अन्दर और शहर में बहुत सारी इमारते बनाई थी, जैसे की अली राजा (उसकी ख़ुद की कब्र), गगन महल, चाँद बावड़ी (एक बड़ा कुवा) और जामी मस्जिद।
जैसे की अली को ख़ुद का लड़का नहीं था, इसीलिए उसके भतीजे इब्राहीम 2 को राजा बनाया गया था। लेकिन वो भी छोटा ही था जब वो गद्दी पे बैठा था। लेकिन उसकी मा चाँद बीबी ने राज्य के प्रतिनिधि के रूप में उसकी और राज्य दोनों की रक्षा की। वो उस समय बीजापुर की राजप्रतिनिधि थी।
इब्राहीम बहमनी राज्य का पाचवा राजा था और साथ ही वो सहिष्णु और एक होशियार राजा भी था। उसने हिन्दू और मुस्लिम के बिच में अच्छे सम्बन्ध बनाने की कोशिश की थी। मुस्लिम के शिया सुन्नी संप्रदाय में भी अच्छे रिश्ते बनाए थे जिसके कारण उसके राज्य में एकता निर्माण हो सकी थी। इसिलिए इतिहास में उसे जगद्गुरु बादशाह कहते है।
उसने 46 साल तक शासन किया था। उसने उसके महल के आजूबाजू के इलाके में हिन्दू देवी देवता के मंदिरे बनवाये थे देवी सरस्वती और गणपति (बुद्धिमता की देवता) पर आधारित कविता की रचनाये भी की थी। वो संगीत और शिक्षा के बहुत बड़े संरक्षक था। उसने विश्व प्रसिद्ध गोल गुम्बज़ की निर्मिती की थी।
उसके शासन काल में किले में एक जगह पर ‘मालिक ए मैदान’ नाम की बंदूके रखने की जगह भी बनाई गयी थी। वहापर आज भी एक बंदूक जो 4।45 मीटर लम्बी है देखने को मिलती है। वो बंदूक आज भी अच्छी हालत में देखने को मिलती है।
बीजापुर का किला
आदिल शाह जब सत्ता के आखिरो दिनों में बीमार पड़ गया था तो उस समय उसकी बीवी बरिबा ने कुछ दिनों के लिए राज्य को चलाया था। जब ओ 1646 गुजर गया तब उसका गोद लिया हुआ लड़का अली आदिल शाह सिंघासन पर आया था।
लेकिन तब भी उसके राजा होने पर कई सारे लोगों ने सवाल उठाये थे और उसके विरुद्ध संघर्ष भी किया और इसी वजह से उनका वंश कमजोर पड़ने लगा। अफजल खान के हारने के बाद बीजापुर काफ़ी कमजोर हो गया था और उसकी 10,000 लोगों की बीजापुर की सेना पूरी तरह से हर चुकी थी।
मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज ने बीजापुर पर कई बार हमले किए थे और बीजापुर को पूरी तरह से लुट लिया था। लेकिन आखिरी में शिवाजी महाराज भी लड़ाई ख़तम करने पर राजी हो गए थे।लेकिन शिवाजी महाराज की म्रत्यु के बाद औरंगजेब की सेना ने 1686 में बीजापुर को कब्जे में कर लिया था और उसके साथ ही आदिल शाही के आखरी राजा सिकंदर आदिल शाह का अंत हो गया था।
और उसीकी साथ ही 200 साल की आदिल शाही का अंत हो गया और सन 1686 से बीजापुर मुग़ल साम्राज्य का हिस्सा बन बन गया था। आदिल शाह ने उसके समय एक बारा कमान नाम का मकबरा बनाने की शुरुवात की थी लेकिन वो पूरा होने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गयी थी।
करीब दो शताब्दी के बाद 1877 में जब अंग्रेजो का शासन काल में सुखा पड़ने के कारण बीजापुर के शहर को सब ने छोड़ दिया था।
शहर में जितने भी इमारते है वो अपने समय की आज भी याद दिलाते है। भव्य वास्तुकला की सुंदरता से सबको अपनी तरफ़ खीचने का काम करते है।
जितने भी मुस्लिम राजा ने किले बनवाये उन्होंने केवल इस्लाम धर्म पर ज्यादा ध्यान दिया था। और अक्सर देखा भी जाता है मुस्लिम राजा जो भी किला बनाता है उसमे कोई भी हिन्दू देवी या देवता का मंदिर नहीं होता। लेकिन बीजापुर का किला उन सब किले से बिलकुल हटके है, क्यु की इस बीजापुर के इस किले में हिन्दू देवी और देवता दोनों के भी मंदिरे देखने को मिलते है।
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bijapur ke raja ka acha ithihas likha hai
Aap ne history ki bahut achhi jankari di hai jisse padh kar achhi knowledge milti hai aap yese hi history ki jankari post karte rahe sir
शुक्रिया वीरेन्द्र जी, हमें यह जानकर अच्छा लगा कि आपको हमारी साइट पर उपलब्ध यह लेख पसंद आया। हम आगे भी इस तरह के पोस्ट अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध करवाते रहेंगे। हमें उम्मीद हैं कि आगे भी आपको हमारे पोस्ट पसंद आएंगे।