Ganga River History
गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र नदी है जिससे करोड़ों लोगों की धार्मिक आस्था जुड़ी हुई है। यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी नदी एवं भारत की चार सबसे लंबी नदियो में से एक है, जो कि भारत और बांग्लादेश में मिलकर करीब 2510 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
यह नदी उत्तराखंड से शुरु होकर अंत में बंगाल की खा़ड़ी में जाकर मिलती है। देश की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक गंगा नदी दुनिया के सबसे उपजाऊ और घनी आबादी वाले क्षेत्रों से होकर बहती है।
भारत की इस सबसे पवित्र गंगा नदी का उद्दगम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री हिमनद से हुआ है। गंगोत्री, हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है, यहां गंगा जी को समर्पित एक अन्य मंदिर भी बना हुआ है।
आपको बता दें कि यह पूजनीय नदी गंगा हिमालय से यमुना, कोसी, गंडक और घाघरा जैसी कई नदियों से जुड़ती है। ऐसी मान्यता है कि गंगा नदी के पानी में बैक्टीरिया से लड़ने से खास शक्ति होती है, इसका पानी महीनों रखे रहने के बाद भी कभी खराब नहीं होता है।
इसलिए हिन्दू धर्म में किसी भी पवित्र काम में गंगा नदी के पानी को गंगाजल के रुप में इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा इसे स्वर्ग की नदी माना जाता है।
इस नदी का धार्मिक, पौराणिक, आर्थिक एवं ऐतिहासिक महत्व भी है, तो आइए जानते हैं, गंगा नदी के उद्भव, इतिहास, विकास एवं इससे जुड़े रोचक तथ्यों के बारे –
सबसे पवित्र नदी “गंगा” मैया का इतिहास – Ganga River History In Hindi
गंगा नदी के बारे में एक नजर में – Ganga River Information
- देश – नेपाल, भारत, बांग्लादेश
- राज्य – उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल।
- मुख्य शहर – हरिद्वार, मुरादाबाद, रामपुर, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, राजशाही।
- लम्बाई (Ganga Nadi Ki Lambai) – 2,704 km
- उद्गम स्थल (Ganga Nadi Ka Udgam Sthal) – गंगोत्री, उत्तराखंड
- सहायक नदियां (Ganga Nadi Ki Sahayak Nadiya) – यमुना, महाकाली, करनाली, घाघरा, कोसी, गंडक, महानंदा, गंडक
- मान्यताएं – पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। गंगा को देवी के रूप में पूजा जाता है।
गंगा नदी का इतिहास एवं उद्गम – Ganga Nadi Ka Udgam, Ganga Nadi Ki Jankari
उत्तर भारत की अर्थव्यवस्था का मेरुदण्ड कही जाने वाले भारत की सबसे पवित्र गंगा नदी ऐतिहासिक रुप से भी काफी महत्वपूर्ण है। जिसका महत्व हिन्दू शास्त्रों, वेदों और पुराणों में भी बताया गया है।
ऐसा कहा जाता है कि जब हड़प्पा सभ्यता को भारतीय सभ्यता का दर्जा प्राप्त हुआ था, उसी दौरान इंडस नदी के तट, गंगा नदी के तट पर धीमे-धीमे शिफ्ट होने लगे थे।
वहीं इतिहास में मौर्य सम्राज्य से लेकर मुगल साम्राज्य तक गंगा नदीं का मैदान ही राज्य की सबसे शक्तिशाली और प्रमुख स्थानों में से एक बन चुका था।
भारत देश के आजाद होने के करीब 5 साल बाद जब भारत ने फरक्का बैरेज बनाने की घोषण की थी, उस दौरान भारत और पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) के मध्य इस पवित्र नदीं के पवित्र जल के साझाकरण को लेकर काफी विवाद खड़ा हो गया था। फिर इसके बाद वास्तविक बैरेज को गंगा से भागीरथी में मोड़ दिया गया था।
विवाद के बाद करीब 300 से 450 M3/S पानी पूर्वी पाकिस्तान के लिए छोड़ दिया गया और फिर बांग्लादेश के साथ संधि कर समझौता कर लिया गया।
जिसके तहत अगर फरक्का में पानी का बहाव 200 क्यूविक मीटर पर सेकंड रहा तो भारत अथवा बांग्लादेश दोनों को आधा-आधा पानी मिलेगा, जिसमें प्रत्येक देश हर 10 दिन के बाद करीबन 1000 क्यूविक मीटर पर सेकंड पानी ले सकता है, लेकिन इस समझौते के बाद भी दोनों देशों के बीच हुए पानी का बंटबारा लगभग नामुमकिन लग रहा था।
इसके बाद साल 1997 में बांग्लादेश में गंगा नदी में पानी का बहाव सबसे निचले स्तर पर जाकर करीब 180 M3/S (क्यूविक मीटर पर सेकंड) हो गया, हालांकि इस बैरेज के चलते बांग्लादेश को पानी का इस्तेमाल करने में काफी सहूलियत हो गई थी।
गंगा नदी की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा – Ganga River Story
राजा बलि से जुड़ी गंगा मैया के उद्भव की कथा:
राजा बलि एक बेहद पराक्रमी, समृद्ध और असुर राजा था, वह भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। उसने भगवान विष्णु को प्रसन्न कर पृथ्वी लोक पर अपना अधिकार जमा लिया था, एवं इतनी अधिक शक्ति प्राप्त कर ली थी कि वह खुद को भगवान समझने लगा था।
यही नहीं राजा बलि ने एक बार अपने अहंकार के आवेश में आकर इंद्र देव को भी ललकारा था, जिसके बाद इंद्र देव ने स्वर्ग लोक पर खतरा मंडराते देख विष्णु जी से मद्द मांगने गए थे, तब विष्णु जी ने वामन ब्राह्मण का रुप धारण किया था।
उस दौरान महाशक्तिशाली राजा बलि अपने राज्य की सुख-समृद्धि के लिए अश्वमेघ यज्ञ कर रहा था, जिसमें उनसे सभी ब्राह्मणों को भोज करवाया था और दान-दीक्षा दी थी।
असुर राजा बलि महाशक्तिशाली होने के साथ-साथ एक दानी राजा था, तभी भगवान विष्णु एक वामन ब्राह्मण के वेश मे राजा बलि के पास पहुंचे और उससे दान मांगा, हालांकि राजा बलि को इस बात का भलिभांति आभास हो गया था कि भगवान विष्णु वामन के वेष में उनके द्दार पर आए हैं, और वह किसी भी ब्राह्मण को खाली हाथ नहीं जाने देता था।
जिसके बाद उसने ब्राह्मण से दान मांगने को कहा, तब भगवान विष्णु ने अपने वामन ब्राह्मण अवतार में राजा बलि से तीन कदम जमीन दान के रुप में मांगी थी, जिसके बाद राजा बलि तैयार हो गए।
वहीं कथा के अनुसार जब वामन ब्राह्मण में अपना पहला पग जमीन पर रखा था उनका पैरा इतना विशाल हो गया कि उन्होंने पूरा पृथ्वीलोक ही नाप लिया, अपने दूसरे पग में उन्होंने पूरा आकाश नाप लिया।
इसके बाद वामन ब्राह्मण ने राजा बलि से पूछा कि वे अपना तीसरा पग कहां रखें, तब राजा बलि ने कहा कि प्रभु अब मेरे पास देने के लिए मेरे सिवाय कुछ भी नहीं है, इसलिए उसने वामन ब्रह्राण के तीसरे पग को अपने ही ऊपर रखने के लिए कहा, जिसके बाद राजा बलि जमीन के अंदर पाताल लोक में समा गया, जहां पर असुरों का शासन था।
इस पौराणिक कथा के मुताबिक यह मान्यता है कि जब भगवान विष्णु ने अपने दूसरे पग को आकाश नापने के लिए उठाया था, उस समय ब्रह्रा जी ने आकाश में उनके पैर धुलाए और विशाल पांव धोकर उनका यह जल एक कमंडल में इकट्ठा कर लिया और इसी जल को गंगा का नाम दिया गया, इसलिए गंगा जी को ब्रह्रा जी की पुत्री कहकर भी संबोधित किया जाता है।
धरती पर कैसें आई गंगा मैया, राजा सागर से जुड़ी पौराणिक कथा:
प्राचीन समय में भारत में कई शक्तिशाली और प्रतापी राजाओं ने जन्म लिया था, उन्हीं में से एक थे राजा सागर जिन्होंने अपने सम्राज्य के विस्तार और इसे शक्तिशाली बनाने के लिए अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन कर अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ दिया था।
जिसके चलते इंद्र देवता को यह चिंता सताने लगी थी कि अगर अश्वमेघ का घोड़ा स्वर्ग से गुजर गया तो, राजा सागर का स्वर्ग लोक पर कब्जा हो जाएगा और महाशक्तिशाली शासक राजा सागर से युद्ध कर पाना उनके लिए असंभव हो जाएगा।
दरअसल, इस यज्ञ में छोड़ा गया घोड़ा जिस राज्य से गुजर जाता था। वह राज्य उस राजा का हो जाता था। जिसके भय से इंद्र भगवान वेष बदलकर गए और राजा सागर के इस घोड़े को चुपचाप कपिल मुनि के आश्रम में उस समय बांध दिया जब वे गहरा ध्यान कर रहे थे।
वहीं जब अश्वमेघ घोड़े को पकड़े जाने की खबर राजा सागर को मिली तब वह भारी क्रोध में भर आए और उन्होंने गुस्से में आकर अपने साठ हजार पुत्रों को घोड़ी की खोज करने के लिए भेज दिया। इसके बाद उनके पुत्रों को कपिल मुनि के आश्रम में वह घोड़ा मिला।
जिसके बाद उनके पुत्रों ने यह मानते हुए कि कपिल मुनि ने ही उनका घोड़ा चुराया है, वे सभी कपिल मुनि से युद्ध करने के लिए आश्रम में घुस गए।
वहीं ध्यान कर रहे कपिल मुनि ने आश्रम में शोरगोल सुनकर अपनी आंख खोली और देखा कि राजा के सभी पुत्र उन पर घोड़े को चुराने का झूठा इल्जाम लगा रहे हैं, तो गुस्से से आग बबूला हो गए हुए और उन्होंने क्रोध में आकर राजा सागर के सभी साठ हजार पुत्रों को अग्नि में भस्म कर दिया।
जिसके बाद राजा सागर के सभी पुत्र प्रेत योनि में भटकने लगे, क्योंकि बिना अंतिम संस्कार किए ही राख में बदल जाने के कारण राजा सागर के पुत्रों को मुक्ति नहीं मिल पा रही थी।
वहीं कई पीढ़ियों के बाद राजा सागर के कुल में जन्मे राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की।
जिसके बाद भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर भागीरथ को स्वर्ग में रहने वाली गंगा को धरती पर उतारने का उनका वचन पूरा किया। माता गंगा बेहद शक्तिशाली और कठोर स्वभाव की थी, वे धरती पर उतरने के लिए इस शर्त पर राजी हुईं कि वे अपने अति तीव्र वेग से धरती पर उतरेंगी और रास्ते में आने वाली सभी चीजों को बहा देंगी।
गंगा के इस शर्त से भयवीत होकर भगवान विष्णु ने शंकर भगवान से यह प्रार्थना की कि वह गंगा को अपना जटाओं में बांधकर उसे अपने वश में करें, नहीं तो यह धरती नष्ट हो जाएगी।
इसके बाद भगवान शंकर ने प्रार्थना स्वीकार करते हुए गंगा को अपनी जटाओं में बांधा और अपनी जटा से पतली धार के रुप में गंगा को धरती पर जाने दिया। इस तरह गंगा धरती पर प्रकट हुईं, गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है।
इन पौराणिक कथाओं और मान्यताओं की वजह से आज गंगा नदी से लाखों श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है। गंगा नदी में लाखों भक्त आस्था की डुबकी लगाते हैं, ऐसा मानना है कि गंगा नदी में डुबकी लगाने से मनुष्य के सभी पापों का विनाश होता है।
गंगा नदी से जुड़े महत्वपूर्ण एवं रोचक तथ्य – Fact About Ganga River
- हिन्दू धर्म की पूजनीय नदी गंगा की प्रमुख शाखा भागीरथी है जो कि हिमालय के गौमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यह नहीं यह भारत की राष्ट्रीय नदी भी है।
- दुनिया की तीसरी सबसे लंबी और पवित्र नदी गंगा के इस उद्गम स्थल की समुद्र तल से ऊंचाई करीब 3 हजार 140 मीटर है। यहां गंगा मैया को समर्पित एक मंदिर भी मौजूद है।
- गुणों की खान गंगा नदी की सबसे खास बात यह है कि गंगा नदी का अन्य नदियों की तुलना में 25 फीसदी ऑक्सीजन का लेवल ज्यादा है।
- धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व वाली गंगा नदी का उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद के प्रयाग में यमुना नदी से संगम होता है। यह संगम स्थल हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थस्थल है, जो कि तीर्थराज प्रयाग के नाम से भी जाना जाता है।
- भारत की इस सबसे महत्वपूर्ण नदी गंगा नदी के बारे में सबसे रोचक बात यह है कि इस नदीं में मछलियों की करीब 375 मछली प्रजातियां उपलब्ध है।
- हिन्दू शास्त्रों और पुराणों के मुताबिक स्वर्ग में गंगा को मन्दाकिनी और पाताल में भागीरथी कहते हैं।
- समस्त संसार में सिर्फ गंगा नदी ही इकलौती ऐसी नदी है, जिसे माता के नाम से पुकारा जाता है।
- वैज्ञानिक खोज से ये पता लगाया गया है कि पवित्र नदी गंगा के पानी में कुछे ऐसे जीवाणु हैं, जो सड़ाने वाले कीटाणुओं को पनपने नहीं देते, यही कारण है कि गंगा जी का पानी काफी लंबे समय तक ख़राब नहीं होता।
- भारत की इस सबसे लंबी नदियों में से एक गंगा नदी के मुहाने पर बना सुन्दरबन डेल्टा दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा है।
- पूजनीय और सबसे पवित्र गंगा नदी की खास बात यह है कि यह दुनिया की पांचवी सबसे प्रदूषित नदी है।
कुम्भ मेला – Kumbh Mela
कुम्भ मेला एक विशाल हिन्दू तीर्थयात्रा है, जिसमे सभी हिन्दू गंगा नदी के तट पर एकत्रित होते है। साधारण कुम्भ मेला हर 3 साल में एक बार आता है, अर्ध कुम्भ मेला हर छः साल में एक बार प्रयाग और हरिद्वार में मनाया जाता है और पूर्ण कुम्भ मेला हर 12 साल में एक बार चार जगहों (उज्जैन, नाशिक, और प्रयाग (अलाहाबाद), हरिद्वार, पर मनाया जाता है। महा कुम्भ मेला जो 12 या 144 साल में एक बार आता है, उसे अलाहाबाद में आयोजित किया जाता है।
गंगा नदी के तट पर बहुत से उत्सव और त्योहारों का आयोजन किया जाता है। जिसमे मुख्य रूप से धार्मिक गीतों के गायन से लेकर बहुत से औषधीय कैंप भी शामिल है। सभी तीर्थयात्राओ में कुम्भ मेले की तीर्थ यात्रा सबसे पवित्र मानी जाती है। देश के लाखो, करोडो लोग इस मेले का आनंद लेने आते है।
इस मेले में देश के कोने-कोने से सभी साधू भगवे वस्त्र धारण कर आते है और साथ ही नागा सन्यासी भी इस मेले में आते है। कहा जाता है की नागा साधू अपने शरीर पर किसी प्रकार का कोई भी वस्त्र धारण नही करते।
गंगा नदी हमारे देश की सबसे प्रवित्र नदी है। भारत में गंगा नदी को लोग गंगा माँ या गंगा मैया के नाम से भी जानते है। हमारे भारत देश में गंगा के प्रति लोगो के मन में बहुत श्रद्धा है, यहाँ के लोग गंगा को पूजते है।
भारत के लोग गंगा के जल को घर में जमा करके रखते है और पवित्र कार्यो में उसका उपयोग भी करते है। गंगा का जल इतना पवित्र होता है की इसे सालो तक रखने के बाद भी यह ख़राब नही होता।
हिन्दू मान्यताओ के अनुसार गंगा को स्वर्ग की नदी भी कहा गया है। लोगो का ऐसा मानना है की गंगा में स्नान करने से उनके सारे पाप धुल जाते है।
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