अंडरवर्ल्ड की दुनिया का कुख्यात डॉन “मन्या सुर्वे” | Manya Surve History in Hindi

मनोहर अर्जुन सुर्वे सामान्यतः मन्या सुर्वे – Manya Surve के नाम से जाना जाता है, मुंबई के अंडरवर्ल्ड की दुनिया पर छाप छोड़ने वाला वह एक डॉन था। उस समय मन्या अपनी शैतानी हिम्मत और रणनीतिक योजनाओ के लिए जाना जाता था।

Manya Surve
अंडरवर्ल्ड की दुनिया का कुख्यात डॉन “मन्या सुर्वे” – Manya Surve History in Hindi

मन्या सुर्वे का जन्म 1944 में भारत में महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरी कोकण क्षेत्र के पावस जिलेके रंपर गाँव में हुआ था। 1952 में सुर्वे अपनी माँ और बड़े पिताजी के साथ मुंबई रहने के लिए आ गया था। मुंबई आने के बाद कयी सालो तक वह लोअर परेल की चौल में रहने लगा। मन्या सुर्वे कीर्ति कॉलेज से ग्रेजुएट है और जब उसने कॉलेज में ही छात्रो के साथ एक गैंग का निर्माण किया था, तभी उसे परीक्षा में 78% भी मिले थे। उस समय मन्या सुर्वे की गैंग में मुख्य रूप से सुमेश देसाई और भार्गव दादा शामिल था। भार्गव मुंबई में दादर के अगर बाज़ार का हत्यारा था। 1969 में मन्या दांडेकर नाम के इंसान की हत्या में शामिल था, जिसमे उसका साथी उसी का चचेरा भाई मन्या पोधकर था। इनकी तिकड़ी को पुलिस इंस्पेक्टर ई.एस. दाभोलकर ने जल्द ही गिरफ्तार कर लिया और कोर्ट ने भी उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

मुंबई अंडरवर्ल्ड :

उस समय के सबसे प्रसिद्ध पठान डॉन को पूरी तरह से भयभीत कर दिया था, जो पिछले दो दशको से मुंबई अंडरवर्ल्ड पर राज कर रहे थे। लेकिन पठान ने भी अपनी विरोधी गैंग केसर ग्रुप को पराजित करने के लिए मन्या सुर्वे की सहायता ली थी। इस गैंग का नेतृत्व दावूद इब्राहीम का बड़ा भाई सबीर कर रहा था। मन्या की सफलता का यही सबसे सुलझा हुआ राज था। उस समय शहर की सबसे मशहूर गैंग भी उससे सहायता लेने के लिए आती थी और ऐसा करते हुए वह दूसरो को ख़त्म कर देता था। यह मुंबई के उन अंडरवर्ल्ड का पहला पढ़ा-लिखा हिन्दू गैंगस्टर था, जिसका दादर के आगरा बाज़ार में सम्मान किया जाता था।

मुंबई आने के बाद सुर्वे ने गैंग बनाना शुरू की और अपने दो भरोसेदार साथी धारावी के शेख मुनीर और डोम्बिवली के विष्णु पाटिल के साथ एक सशक्त गैंग का निर्माण किया। मार्च 1980 में उनकी गैंग में एक और गैंगस्टर, उदय भी शामिल हो गया।

इस गैंग ने अपनी पहली डकैती 5 अप्रैल 1980 को की, जिसमे उन्होंने एम्बेसडर कार चोरी थी। बाद में पता चला की इसी गाड़ी का उपयोग करी रोड पर लक्ष्मी ट्रेडिंग कंपनी में 5700 रुपये लूटने के लिए किया गया था। 15 अप्रैल को, उन्होंने सामूहिक रूप से हमला किया और शेख मुनीर के दुश्मन शेख अज़ीज़ को मार दिया। 30 अप्रैल को, अपने सामूहिक विरोधी विजय घाडगे का दादर के पुलिस स्टेशन में मार्गरक्षण करते समय उन्होंने पुलिस कांस्टेबल पर छुरा भी खोप दिया।

जेल से निकलने के बाद मन्या ने एक प्लाट ले लिया था और फिर मन्या ने सरकारी मिल्क स्कीम की बोली के पैसो को लूटा और मुंबई अंडरवर्ल्ड में अपनी पहचान बनाई। इसके बाद इसी गैंग ने दयानंद, परशुराम काटकर और किशोर सावंत के साथ मिलकर महिम के बादल बिजली बरखा के पास एक कार की चोरी की। इसके बाद चोरी की यही गाड़ी मुंबई में बांद्रा के नेशनल कॉलेज के पास पायी गई।

मन्या सुर्वे द्वारा की गयी एक और चोरी में कैनरा बैंक से चुराए गये 1.6 लाख भी शामिल है। लेकिन धीरे-धीरे मन्या सुर्वे की आतंकी गतिविधियाँ बढ़ने लगी। इसके बाद वह नारकोटिक्स ट्रैफिकिंग में भी शामिल था, क्योकि मन्या को यकीन था की इस धंधे में वह ज्यादा से ज्यादा पैसा कमा सकता है।

उसी समय मुंबई पुलिस ने भी अब क्रिमिनल गतिविधियाँ करने वाला लोगो का तमाशा देखना बंद कर दिया था और अब वे उनका एनकाउंटर करने लगे। उस समय पुलिस फ़ोर्स ने इकठ्ठा होकर अंडरवर्ल्ड को एक संदेश भी भेज दिया की : अब वे उनकी गतिविधियों को और ज्यादा सहन नही करेंगे। और इसी के चलते मन्या सुर्वे के ऑपरेशन को शुरू किया। इंस्पेक्टर ईसाक बागवान और राजा ताम्भट ने मन्या सुर्वे के केस को अपने हात में ले लिया था। और उन्होंने मन्या सुर्वे के खिलाफ ऑपरेशन की शुरुवात की और उन्होंने मन्या सुर्वे की गैंग के लोगो को पकड़ना शुरू किया।

22 जून 1981 को पुलिस ने कल्याण के पास की केमिकल कंपनी से शेख मुनीर से गिरफ्त कर लिया। इसके कुछ दिनों बाद ही, पुलिस ने गोरेगाँव के एक लॉज से दयानंद और परशुराम काटकर को भी गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद अपनी गिरफ्त से घबराकर मन्या 19 नवम्बर 1981 को भिवंडी चला गया। और जब पुलिस ने मन्या सुर्वे के अपार्टमेंट की छान-बिन की तो उन्हें वहाँ देश में बने अवैध हथियार, ग्रेनेड और गोला-बारूद मिले।

एक सिस्टेमेटिक ऑपरेशन के चलते सुर्वे को आसानी से मार दिया गया। अपने साथी उदय की गिरफ्तारी के बाद मन्या सुर्वे की गैंग में वह अकेला बच गया था, जो जेल में नही था।

कारावास और पलायन :

उन्हें पुणे के येरवडा जेल में रखा गया, जहाँ सुर्वे ने वहाँ दुसरे गैंगस्टर सुहास भटकर उर्फ़ पोत्या भाई के साथ भयंकर प्रतिद्वंदिता विकसित की। इसके बाद सुर्वे की आतंकी रणनीति से परेशान होकर जेल अधिकारियो ने उन्हें रत्नागिरी जेल में स्थनान्तरित कर दिया। वहाँ सुर्वे ने भूख हड़ताल में हिस्सा लिया और इसके चलते स्थानिक अस्पताल में भर्ती करवाने से पहले उनका वजन 20 किलो कम हो गया था। सुर्वे ने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया और 14 नवम्बर 1979 को भागने में सफल हुआ और 9 सालो तक जेल में रहने के बाद आख़िर भागकर मुंबई वापिस आ ही गया।

एनकाउंटर :

11 जनवरी 1982 को मन्या वडाला के आंबेडकर कॉलेज जंक्शन से एक टैक्सी से बाहर आ रहा था। कहा जाता है की दावूद इब्राहीम ने ही मुंबई पुलिस को मन्या सुर्वे को मारने की टिप दे रखी थी, कहा जाता है की दावूद ने ही मन्या सुर्वे के लोकेशन की जानकारी पुलिस को दी थी। 1.30 PM बजे 18 क्राइम ब्रांच ऑफिसर अपनी तीन टीम के साथ वहाँ मन्या का इंतजार कर रहे थे। तक़रीबन 20 मिनट बाद जब सुर्वे टैक्सी से अपनी गर्लफ्रेंड को पिक-उप करने के लिए अपनी टैक्सी से उतर रहा था, तभी पुलिस ने उसे देख लिया था।

मन्या ने जब पुलिस स्क्वाड को अपने पास पाया तो सुर्वे ने अपनी रिवाल्वर बाहर निकाली। लेकिन सुर्वे के ट्रिगर दबाने से पहले ही दो पुलिस अधिकारी राजा ताम्बट और ईसाक बागवान ने उनपर प्राणघातक हमला कर दिया, उन्होंने सुर्वे की छाती और कंधे पर पाँच गोलियाँ दाग दी थी।

इसके बाद सुर्वे को तुरंत एम्बुलेंस में डाल दिया गया। कहा जाता है की सियोन अस्पताल जाते समय मन्या सुर्वे बडबडा रहा था की पुलिस ने उन्हें खुद को साबित करने का एक भी मौका नही दिया। बाद में कुछ समय बाद ही उन्होंने अपनी चोटों के सामने घुटने टेक दिए। एक और आश्चर्यजनक बात यह भी थी की 12 मिनट के रास्ते को पूरा करने में उस समय पुलिस की कार को 30 मिनट का समय लगा। इसी एनकाउंटर के साथ ही मन्या सुर्वे की दहशत मुंबई के अंडरवर्ल्ड से गायब हो गयी। अपने दो वर्षो के अंतराल में मन्या सुर्वे में दावूद इब्राहीम को काफी भयभीत कर रखा था, जो आज तक कोई नही कर पाया। कहा जाता है की अंडरवर्ल्ड डॉन दावूद इब्राहीम ने पुलिस को मन्या सुर्वे को मारने की टिप दी थी।

1982 में महाराष्ट्र पुलिस द्वारा किये गये एनकाउंटर में मन्या सुर्वे की मौत हो गयी, उस समय महाराष्ट्र पुलिस का मुंबई शहर में यह चौथा एनकाउंटर था। मुठभेड़ होने के बावजूद 1980 के बाद मुंबई पुलिस द्वारा किये जा रहे एनकाउंटर की संख्या बढ़ने लगी और 1993 के मुंबई बम ब्लास्ट के बाद, पुलिस एनकाउंटर में तक़रीबन 622 लोग मारे गये थे।

प्रसिद्ध फिल्म:

मन्या सुर्वे के जीवन पर आधारित 2013 में एक फिल्म शूटआउट एट वडाला बनायी गयी, जिसमे जॉन अब्राहम ने मन्या सुर्वे का किरदार निभाया था। इस फिल्म में मन्या सुर्वे के जीवन को 100% सही तो नही दिखाया गया लेकिन इसी फिल्म में उनके बारे में काफी कुछ बताया गया है। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई और फिल्म ने 75 करोड़ का कारोबार किया था।

Read More:

Hope you find this post about ”Manya Surve History in Hindi” useful. if you like this information please share on Facebook.

Note We try hard for correctness and accuracy. please tell us If you see something that doesn’t look correct in this article About Manya Surve biography… And if you have more information biography of Maya Dolas then help for the improvements this article.

9 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here